नेपाल की अर्थव्यवस्था हिमालय की तरह है – चुनौतीपूर्ण, लेकिन अवसरों से भरी हुई। उन अवसरों को चीन लूट लेना चाहता है और भारत उसकी राह का सबसे बड़ा कांटा है। चीन हर तरीके से नेपाल पर लगातार डोरे डालता रहा है और दबाव भी डालता रहा है। पिछली सरकार चीन के दबाव में रही।
बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत चीन ने पोखरा एयरपोर्ट और रेलमार्ग पर निवेश किया। 2025 में नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री के. पी. शर्मा ओली की चीन यात्रा ने फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर किए, जो 10 परियोजनाओं पर केंद्रित थी।
नेपाल की अर्थव्यवस्था पूरी तरह पर्यटन, रेमिटेंस और सेवा क्षेत्र पर निर्भर है, जबकि बुनियादी ढांचे की कमी, प्राकृतिक आपदाओं और राजनीतिक अस्थिरता चुनौतियां बनी हुई हैं।
नेपाल में हुआ राजनीतिक बदलाव न केवल राजनीतिक, बल्कि आर्थिक परिदृश्य को भी प्रभावित कर सकता है। नेपाल ने गरीबी उन्मूलन में सफलता हासिल की है—1995 में 55% से घटकर 2022 में 0.37% हो गई। लेकिन यह रेमिटेंस पर आधारित है, न कि घरेलू विकास पर। आम जनता, विशेषकर ग्रामीण और युवा, संघर्ष कर रहे हैं। युवा बेरोजगारी 20% से ऊपर है, जो विरोध प्रदर्शनों का मूल कारण थी।
सरकारी बदलाव से दशा सुधर सकती है, यदि वर्तमान कार्यवाहक प्रधानमंत्री सुशीला कार्की की सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाए और सामाजिक सुरक्षा मजबूत करे। नेपाल का संविधान सामाजिक सुरक्षा की गारंटी देता है, लेकिन कार्यान्वयन कमजोर है। चाइल्ड ग्रांट कार्यक्रम गरीबी कम कर सकता है, लेकिन बजट सीमित है।
पिछले दिनों की हिंसा से 1,300 लोग घायल हुए थे। 12,500 कैदी भागे, जिससे अपराध बढ़ सकता है। यदि स्थिरता लौटे, तो प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी। लेकिन यदि अराजकता बनी रहे, तो गरीबी बढ़ेगी। कुल मिलाकर, आम लोगों की दशा तत्काल कठिन होगी, लेकिन लंबे समय में सुधार संभव है यदि सुशासन हो।
नेपाल-भारत के संबंध ऐतिहासिक हैं—1950 की शांति संधि से सीमा और व्यापार खुला। भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जो जीडीपी का 60% आयात करता है। 2025 में, भारत ने जलविद्युत परियोजनाओं में निवेश बढ़ाया। बजट 2025-26 में नेपाल को सहायता जारी रखी गई, जो चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए है।
चीन की सहायता 21.94 मिलियन डॉलर है, लेकिन उच्च ब्याज ऋण से ऋण जाल का खतरा है। जनमत सर्वेक्षण (जनवरी 2025) से पता चलता है कि भारत सॉफ्ट पावर में आगे है, लेकिन चीन आर्थिक साझेदार के रूप में उभर रहा।
नेपाल का 60% व्यापार भारत से है, लेकिन चीन से आयात (मुख्यतः मशीनरी और उपकरण) 2025 में 20% बढ़ा। BRI के तहत चीनी युआन का उपयोग बढ़ रहा है, जो डॉलर पर निर्भरता कम करता है लेकिन नेपाल को बीजिंग की मुद्रा नीति के हवाले कर देता है।
एक रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि BRI नेपाल की संप्रभुता को कमजोर कर सकता है, क्योंकि कर्ज चुकाने में असफलता पर चीनी कंपनियां संपत्ति हथिया सकती हैं। नेपाल BRI के चंगुल में 20-25% फंसा है—कर्ज कम है लेकिन प्रभाव गहरा, जो आर्थिक विकास को बाधित कर रहा है।
नेपाल के पूर्व राजदूत, इसे ‘डेट ट्रैप’ की अफवाह बताते हैं। एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल का चीनी कर्ज जीडीपी का मात्र एक % है, और परियोजनाएं आपसी लाभ पर आधारित हैं। जलविद्युत और सड़कें नेपाल की कनेक्टिविटी बढ़ा सकती हैं, जो भारत पर निर्भरता कम करेगी।
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नेपाल की अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता की कमी है। उच्च ब्याज दरें और पर्यावरणीय क्षति नेपाल को तबाही के रस्ते पर ले जा सकती है। अभी नेपाल उच्च-ब्याज ऋण से बच रहा है, लेकिन राजनीतिक दबाव से ग्रांट्स को ऋण में बदलने का खतरा है। हालिया चर्चाओं में भी नेपाल पर ‘डेब्ट स्लेवरी’ का जिक्र है, जहां लोग नेपाल को अंगोला जैसा बता रहे हैं।
क्या नेपाल को चंगुल से निकाल पाएगा? भारत के मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन जैसे प्रोजेक्ट्स चीन को चुनौती देते हैं। यदि कार्की सरकार चुनाव कराए और भारत निवेश बढ़ाए (जैसे हाइड्रोपावर जॉइंट वेंचर्स), तो चीन की निर्भरता कम हो सकती है, लेकिन यदि चीन नेपाल की ग्रांट्स बढ़ाए, तो संतुलन बिगड़ेगा।
भारत को अपनी गलतफहमियां सुधारनी होंगी, क्योंकि नेपाल चीन को लीवर के रूप में इस्तेमाल करता है। भारत सक्रिय सहायता से इसे कमजोर कर सकता है। यदि भारत कूटनीति मजबूत करे, तो नेपाल दक्षिण एशिया का स्थिर बफर बनेगा। अन्यथा, चीनी छाया लंबी हो जाएगी।
भारत नेपाल का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। भारत नेपाल के व्यापार घाटे को कम करने के लिए डिजिटल वित्तीय संपर्क को मजबूत कर सकता है, जैसे सीमा पार डिजिटल भुगतान प्रणाली को बढ़ावा देना। इसके अलावा, भारतीय मानक ब्यूरो की प्रमाणन प्रक्रिया को सरल करके नेपाली उत्पादों के निर्यात को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
भारत नेपाल में सड़क, रेल, और ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश बढ़ाकर सहयोग को मजबूत कर सकता है। 2023 में दोनों देशों ने 10,000 मेगावाट बिजली निर्यात के लिए दीर्घकालिक समझौता किया। ऐसी परियोजनाएं नेपाल की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करेंगी और भारत के लिए आर्थिक लाभ सुनिश्चित करेंगी।
इसके अलावा भारत ने नेपाल में भूकंप जैसे संकटों में तत्काल राहत और पुनर्वास के लिए वित्तीय सहायता (जैसे 75 मिलियन डॉलर का पैकेज) प्रदान की है। ऐसी सहायता से नेपाल में भारत की छवि एक विश्वसनीय भागीदार के रूप में मजबूत होती है। दोनों देशों के बीच खुली सीमा और “रोटी-बेटी” का रिश्ता घनिष्ठता का आधार है।
भारत नेपाल में सांस्कृतिक आदान-प्रदान, पर्यटन (विशेषकर हिंदू और बौद्ध तीर्थ स्थलों जैसे लुंबिनी), और शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाकर जन-जन के स्तर पर रिश्तों को मजबूत कर सकता है। भारत नेपाल को पेट्रोलियम, दवाइयां, और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इन क्षेत्रों में निरंतर सहायता और तकनीकी सहयोग से नेपाल की निर्भरता और विश्वास बढ़ेगा।
भारत ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति से सहायता बढ़ा सकता है, जैसे छात्रवृत्ति और रोजगार। लेकिन यदि चीन अंतरिम सरकार को लुभाए, तो भारत का प्रभाव कम होगा। नेपाल ने चीन-पाकिस्तान के साउथ एशियन ब्लॉक प्रस्ताव को खारिज किया, जो भारत के पक्ष में है। कुल मिलाकर, भारत सहायक बने रह सकता है, यदि कूटनीति मजबूत हो, अन्यथा चीन हावी हो जाएगा।
ऐसे में भारत को सक्रिय सहायता से अपनी भूमिका मजबूत करनी चाहिए, अन्यथा चीन का प्रभाव बढ़ेगा। नेपाल को संतुलित विदेश नीति अपनानी होगी। अगर नेपाल भारत के बजाय चीन के ज्यादा करीब होने लगेगा तो इससे भारत की परेशानियां ज्यादा बढ़ेंगी।
- लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं
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