नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने आज ऑनलाइन समाचार पोर्टल द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और सलाहकार संपादक करण थापर को असम पुलिस द्वारा बीएनएस की धारा 152 के तहत दर्ज एफआईआर में गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण प्रदान किया। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता नित्या रामकृष्णन द्वारा मामले का उल्लेख किए जाने के बाद यह आदेश पारित किया । उन्होंने दलील दी कि असम पुलिस की एक प्राथमिकी में याचिकाकर्ताओं को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अंतरिम संरक्षण दिए जाने के बाद, उन्हें एक अन्य प्राथमिकी में सम्मन जारी किया गया। SC ASAM FIR
न्यायालय ने मामले की सुनवाई 15 सितंबर तक स्थगित कर दी है। सिद्धार्थ और करण थापर के खिलाफ धारा 152 बीएनएस के तहत दर्ज एफआईआर के तहत कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाएगी, बशर्ते वे जांच में शामिल हों और सहयोग करें।”
असम पुलिस ( मोरीगांव पीएस) ने 11 जुलाई को वरदराजन और अन्य के खिलाफ बीएनएस की धारा 152 को लागू किया था। यह मामला ऑपरेशन सिंदूर के संबंध में द वायर द्वारा प्रकाशित लेख “IAF ने राजनीतिक नेतृत्व की बाधाओं के कारण पाकिस्तान के हाथों लड़ाकू जेट खो दिए: भारतीय रक्षा अताशे” के संबंध में दर्ज किया गया था।
इससे व्यथित होकर, फ़ाउंडेशन फ़ॉर इंडिपेंडेंट जर्नलिज़्म (‘द वायर’ का स्वामित्व रखने वाला ट्रस्ट) और वरदराजन ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख़ किया और धारा 152 बीएनएस की संवैधानिकता को इस आधार पर चुनौती दी कि यह राजद्रोह क़ानून का नया रूप है। याचिका में दावा किया गया था कि समाचार लेख में इंडोनेशिया के एक विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक सेमिनार की तथ्यात्मक रिपोर्ट और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इस्तेमाल की गई सैन्य रणनीति पर इंडोनेशिया में भारत के सैन्य अताशे सहित भारत के रक्षा कर्मियों के बयान शामिल थे। यह भी बताया गया कि लेख में रक्षा अताशे की टिप्पणियों पर भारतीय दूतावास की प्रतिक्रिया भी शामिल थी और अताशे की टिप्पणियों को द लेंस समेत कई अन्य मीडिया संस्थानों ने भी रिपोर्ट किया था।