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लेंस संपादकीय

मनमाने कानूनों की तैयारी

Editorial Board
Last updated: August 20, 2025 8:10 pm
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Three bills introduced
Three bills introduced
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केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पांच साल या उससे अधिक की सजा के प्रावधान वाले आपराधिक मामलों में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों के तीस दिन तक जेल में रहने पर उन्हें पदच्युत करने वाले जो तीन विधेयक लोकसभा में पेश किए हैं, वे काफी परेशान करने वाले हैं और इनके दुरुपयोग की आशंकाएं हैं। विपक्ष के भारी शोर-शराबे के बीच गृह मंत्री ने जो संविधान संशोधन विधेयक पेश किए हैं, उनमें संविधान (130वां संशोधन) विधेयक अनुच्छेद 75 में संशोधन किए जाने से संबंधित है। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025 शामिल है। विपक्ष के विरोध के बीच सरकार ने इन बिलों को फिलहाल संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) के पास भेजने का फैसला जरूर किया है, लेकिन इन बिलों ने संसद के भीतर और बाहर तूफान खड़ा कर दिया है। सबसे पहली बात तो यही है कि भ्रष्टाचार या आपराधिक गतिविधियों का किसी भी रूप में बचाव नहीं किया जा सकता। पहले ही देश में ऐसे कानून मौजूद हैं, जिनमें किसी भी अदालत से दो साल या उससे अधिक की सजा मिलने पर सांसदों और विधायकों की सदस्यता जा सकती है और ऐसे कई मामले हमारे सामने हैं भी। हालांकि इनके दुरुपयोग के उदाहरण भी हमारे सामने हैं। पिछली लोकसभा में लक्षदीव से चुने गए सांसद मोहम्मद फैजल की सदस्यता हत्या के प्रयास से संबंधित एक मामले में कवरत्ती सेशन कोर्ट के फैसले से चली गई थी, जिसने उन्हें दोषी ठहराया था। केरल हाई कोर्ट ने उन्हें दोषमुक्त कर दिया, उसके बावजूद उनकी सदस्यता बहाल नहीं की गई, उलटे वहां उपचुनाव की घोषणा तक कर दी गई थी। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट में उनका मामला जाने पर उनकी सदस्यता बहाल हो सकी थी! लोकसभा में पेश विधेयकों के मुताबिक प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और मंत्रियों को तो दोषी ठहराए बिना ही सिर्फ इस आधार पर पद खोना पड़ सकता है कि उन्हें जिन मामलों में कम से कम 30 दिनों तक जेल में रहना पड़ा, उनमें पांच साल या उससे अधिक की सजा का प्रावधान है। वास्तव में यह प्राकृतिक न्याय और कानूनी हलकों के इस सूत्र वाक्य के खिलाफ है कि, ‘जब तक दोष सिद्ध न हो जाए, व्यक्ति निर्दोष है’। इन विधेयकों के विपक्षी दलों की सरकारों के खिलाफ दुरुपयोग की आशंकाएं इसलिए भी हैं, क्योंकि हमारे यहां ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों की सजा दिलाने की दर बहुत कम है। ईडी के मामले में तो हाल बहुत ही बुरा है, जिसके सजा दिलाने के बदतर रिकॉर्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक उस पर सवाल उठा चुका है। राजद सांसद मनोज झा ने यह चिंता जाहिर की है कि यह ‘अभियुक्त और दोषी में फर्क मिटाने की तैयारी है’। एआईएमएईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी सहित कई सांसदों ने आरोप लगाया है कि यह देश को ‘पुलिस स्टेट’ में बदल देने की तैयारी है। राजनीतिक बयानबाजी से इतर यह वाकई गंभीर सवाल है कि क्या यह न्यायपालिका के क्षेत्र में कार्यपालिका और विधायिका का दखल है? क्या इन कानूनों की आड़ में विरोधी दलों की राज्य सरकारों को अस्थिर नहीं किया जाएगा? क्या इन कानूनों का दुरुपयोग सरकार सदन के भीतर और बाहर अपने फैसलों के पक्ष में दबाव में बनाने के लिए नहीं करेगी? भारत एक परिपक्व लोकतंत्र है, और खुद प्रधानमंत्री मोदी बार-बार 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने की बात कर रहे हैं, लेकिन ऐसे कानून देश को आगे नहीं पीछे ले जाएंगे। अच्छा हो कि सरकार इन विधेयकों को वापस ले ले।

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