रायसेन में शिवराज सिंह चौहान की ‘तिरंगा यात्रा’ का कार्यक्रम पिट गया। फ्लॉप रहा। भीड़ छोड़िये, जो कुर्सियां लगाई गई थीं, उनमें से अधिकांश खाली पड़ी रहीं। इसी कारण चौहान खुद भी कार्यक्रम स्थल पर 45 मिनट देर से पहुंचे। इंतज़ार के बावजूद जब भरी नहीं तो टेंट वाले से खाली कुर्सियों को हटवाया गया, ताकि भद्द न पिटे। यह तो सर्व ज्ञात है कि आजकल राजनीतिक दलों के ऐसे कार्यक्रमों में लोग लाए जाते हैं, भीड़ जुटाई जाती है। इन्हें ‘इवेंट’ कहा जाता है। सारी चीजें मैनेज की जाती हैं। वे दिन गए, जब आम लोग नेता को सुनने-देखने में दिलचस्पी लेते थे। अब तो संगठन और उसके नेता-पदाधिकारी ही सारा इंतजाम करते हैं। इसीलिए, यह सवाल है कि पार्टी या उसके प्रबंधकों ने देश के मौजूदा कृषि मंत्री और 17 बरस सीएम रहे अपने इस नेता के साथ ऐसा क्यों किया? या, ऐसा क्यों और कैसे हो गया? क्या प्राकृतिक कारण हैं या कृत्रिम वजह?

सच जो हो, पर शिवराज की सियासत के लिए पार्टी का यह ‘बर्ताव’ चिंताजनक है। कारण, रायसेन (सांची) विधानसभा क्षेत्र विदिशा संसदीय सीट का हिस्सा है, जो इस समय चौहान का निर्वाचन क्षेत्र है। वे पहले भी पांच बार यहां से सांसद रहे हैं। बावजूद इसके उनके साथ ऐसा हो गया। कहा जा रहा है कि इससे कहीं बड़े-भव्य कार्यक्रम और सभाएं तो तब हो जाया करते थे, जब शिवराज पार्टी के युवा मोर्चा में काम करते थे। मगर, बीते बुधवार को उनके साथ जो हुआ, वैसा देखने सुनने में कभी आया नहीं। वैसे, नेताओं की सभाओं का फ्लॉप होना कोई नई बात नहीं है, पहले भी कईयों के साथ ऐसा होता रहा है। मसलन, 2014 के आम चुनाव से पहले स्वयं नरेंद्र मोदी की भोपाल के दशहरा मैदान की चुनावी सभा इतनी बुरी तरह फ्लॉप रही थी, कि पार्टी में चौहान को नापसंद करने वाले आज भी उसकी याद दिलाते हैं। यह मानकर कि बतौर मुख्यमंत्री चौहान यदि चाहते तो मोदी की सभा फ्लॉप नहीं होने देते। तो, क्या यह मान लिया जाना चाहिए कि शिवराज के कार्यक्रम भी कोई फ्लॉप करवा रहा है? अगर, ऐसा है तो सवाल है, कौन?
विजय शाह को ‘न्यू नॉर्मल’ में दाखिला मिला…

कालजयी रचनाकार हरिशंकर परसाई की पंक्ति है- ‘जब शर्म की बात गर्व की बात बन जाए, तो समझो जनतंत्र अच्छा चल रहा है।’ कर्नल सोफिया कुरैशी के लिए ‘गटर’ वाली भाषा बोलने वाले मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह को किसी ने माफ किया न किया हो, पर लगता है उनकी पार्टी से उन्हें माफी जरूर मिल गई है। तभी, राज्य की सरकार ने 15 अगस्त पर राष्ट्रीय ध्वजारोहण करने वाले मंत्रियों की सूची में उनका नाम रखा। वह न तो शरमाई न हिचकिचाई। कांग्रेस ने लाख विरोध किया, उनके फोटो जलाए, प्रदर्शन किया, मगर शाह ने शान के साथ रतलाम जिला मुख्यालय के सरकारी कार्यक्रम में झंडा फहराया और परेड की सलामी ली। एक स्कूल में बच्चों को नैतिकता का पाठ पढ़ाया। सक्रियता बता रही है कि शाह को अब ‘न्यू नॉर्मल’ में दाखिला मिल गया है। कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश की आन-बान-शान सेना, शाह के बयान का स्वतः संज्ञान लेने वाली मध्यप्रदेश हाईकोर्ट या खुद कर्नल कुरैशी और उनके संगी-साथी क्या सोचेंगे, कैसा उनका मानस बनेगा? वे माथे पर तिलक लगाकर ‘वापसी’ कर चुके हैं। अलग बात है कि सुप्रीम कोर्ट में मामला चल रहा है और 18 अगस्त को तारीख लगी है। बहरहाल, जनतंत्र अच्छा चल रहा है!
इंटरव्यू के पहले कहां गई थीं उमा भारती

कारण जो हो, पर भाजपा के भीतर और बाहर सबको यह समझ आता है कि मोदी-अमित शाह ने उमा भारती को हाशिये पर डाल रखा है। लेकिन, पिछले दिनों एक टीवी चैनल को दिया उनका इंटरव्यू चर्चाओं में है। कुछ लोग इसे उनकी पार्टी की मुख्यधारा में वापसी से भी जोड़कर देख रहे हैं। कहा जा रहा है कि अपने स्वभाव के विपरीत लंबे समय से शांत बैठीं उमा भारती ने इंटरव्यू में नाथूराम गोडसे से लेकर महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के बारे में जितना खुलकर साफ़-साफ़ बात रखी, वो बीजेपी के मौजूदा परिवेश में बगैर किसी ‘अदृश्य ताकत’ के संभव नहीं है। खासकर, नेहरू के बारे में, जिन्हें बीजेपी का मौजूदा नेतृत्व देश की हर समस्या के लिए जिम्मेदार ठहराता है। कई लोग तो यह पता करने में लगे हैं कि इंटरव्यू के पहले उमा भारती कहां-कहां गई थीं? इस सूची में झंडेवालान भी शामिल है।
बिना खुजाए ही मिट गई खाज…

कहा जा रहा है कि अगर एक पत्रकार महोदय सुप्रीम कोर्ट में याचिका लेकर नहीं जाते तो ‘सिया’ के अध्यक्ष एसएनएस चौहान को शायद अब भी भटकना ही पड़ता। वे नाना प्रकार की देहरियों के चक्कर लगा रहे होते और अपनी पीड़ा बता-बता कर अंततः कुंठित हो जाते। और, उन्हें राहत नहीं मिलती। कारण, राज्य सरकार उनकी तकलीफ पर कोई ध्यान नहीं दे रही थी। खासकर, मुख्य सचिव के स्तर पर शिकायत का निवारण नहीं किया जा रहा था। इसकी वजह भी थी। चौहान अपनी शिकायतों में सीधे-सीधे तीन आईएएस, वो भी सीधी भर्ती वाले, अफसरों नवनीत मोहन कोठारी, उमा माहेश्वरी और श्रीमन शुक्ला के नाम लेकर न सिर्फ उन पर अनियमितता का आरोप लगा रहे थे, बल्कि जांच की मांग कर रहे थे। इनमें भी शुक्ला, पूर्व मंत्री के रिश्तेदार हैं। चौहान, जो आरएसएस के एक नेता के मार्फ़त सात माह पहले ‘सिया’ (स्टेट एनवायरनमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट अथॉरिटी) अध्यक्ष नियुक्त हुए थे, को कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। राज्य मंत्रालय से उनको कोई लॉजिस्टिक मदद नहीं मिल रही थी। वे नाम के अध्यक्ष थे। ऐसे में पत्रकार की याचिका ने एक झटके में उनका काम बना दिया। जैसे ही यह खबर आई कि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका सुनने का निर्णय लिया है, कोठारी और माहेश्वरी का तत्काल तबादला कर दिया गया। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने विदेश से लौटते ही निर्णय ले लिया। बहरहाल, बिना खुजाए ही खाज मिट गई।
इतने तो होशियार होते हैं डायरेक्ट आईएएस…
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में जो याचिका लगाई गई है, उसमें गंभीर आरोप लगाए गए हैं। कहा गया है कि ‘सिया’ के सदस्य सचिव द्वारा दी गईं 237 पर्यावरण स्वीकृतियां अवैध हैं और इनमें पर्यावरण कानूनों का सुनियोजित उल्लंघन किया गया है। सबसे बड़ी बात यह कि खुद सीजेआई बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली तीन-न्यायाधीशों की बेंच ने याचिका सुनने का निर्णय किया और केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सिया के अध्यक्ष, सदस्य-सचिव तथा राज्य पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव को नोटिस जारी कर दिया। और, सभी पक्षों से कहा कि दो सप्ताह में जवाब दीजिये। याचिकाकर्ता की तरफ से सीनियर एडवोकेट विवेक तनखा ने कहा कि 11 जून 2024 से 6 जनवरी 2025 के बीच ‘सिया’ या राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति अस्तित्व में नहीं थी। केवल एक दिन में 24 मई को ही कई स्वीकृतियां जारी की गईं। ‘सिया’ के अध्यक्ष द्वारा अप्रैल से जून 2025 के बीच इन अवैध कार्रवाइयों को रोकने के लिए लगभग 48 प्रतिवेदन विभिन्न अधिकारियों — जिनमें सदस्य सचिव, प्रमुख सचिव, मुख्य सचिव और भारत सरकार शामिल हैं — को भेजे गए, फिर भी व्यवस्थित उल्लंघन बिना रुके जारी रहे। इन प्रतिवेदनों पर अधिकारियों ने आंखें मूंद लीं, जो न केवल प्रशासनिक लापरवाही को दर्शाता है, बल्कि राज्य सरकार के उच्चतम स्तर पर पर्यावरण अपराधों की जान-बूझकर और सुनियोजित सुविधा प्रदान करने को भी प्रमाणित करता है। याचिका में यह भी कहा गया कि यह मामला ‘एक क्लासिक उदाहरण’ है कि किस तरह सचिव और वरिष्ठ अधिकारी अपने पद का दुरुपयोग निजी स्वार्थ और लाभ के लिए करते हैं, जिसमें खनन लॉबी और औद्योगिक हितों को अवैध पर्यावरण स्वीकृतियां देने की सुविधा शामिल है। जाहिर है, जिस केस को खुद सीजेआई देख रहे हों, उसको हल्के में लेने की गलती भला कैसे की जा सकती है? और फिर, सीधी भर्ती वाले आईएएस अफसर तो यूपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण करके “लोक सेवक” बनते हैं। इतना तो समझ ही गए होंगे कि सुप्रीम कोर्ट ने ‘सिया’ के अध्यक्ष को भी नोटिस भेजकर जवाब मांगा है और पीड़ित चौहान का क्या जवाब होगा? किसी को क्या मालूम, सिया अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट को क्या-क्या बताएंगे?
सब्सिडी पर कैग की रिपोर्ट ने कान खड़े किए
एमएसएमई विभाग में केपिटल सब्सिडी बांटने के नाम पर खेल किया जा रहा है? सीएजी की ताजा रिपोर्ट कहती है कि विभाग ने 173 अपात्रों को 19 करोड़ की सब्सिडी बांट दी। तीन ईकाईयां तो बंद हो गई थीं, फिर भी उनको लाभ मिल गया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के लिए राहत की बात यह है कि ये मामले 2018 से 2022 के हैं, जब क्रमशः उनके पूर्ववर्ती कमलनाथ और शिवराज सिंह चौहान की सरकारें थीं। दिलचस्प यह है कि मोहन यादव सरकार तो इस मामले में और भी उदार भाव से काम कर रही है। मुख्यमंत्री यादव राज्य में निवेशकों को आकर्षित करने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं और इसीलिए केपिटल सब्सिडी के लंबित प्रकरणों को क्लियर करने में फुर्ती की जा रही है। उनके राज में पिछले साल 5200 करोड़ की सब्सिडी दी गई थी। इस वर्ष अप्रैल में उन्होंने एक कार्यक्रम में 1700 करोड़ की सब्सिडी निवेशकों के खाते में हस्तांतरित की थी। लेकिन, कैग की रिपोर्ट के बाद उच्च स्तर पर सरकार के कान खड़े हो गए हैं और अब इस मामले में सतर्कता बरतने का फैसला किया गया है।