आज मैं निकल चली हूं अपनी कर्मभूमि से अपनी जन्मभूमि की ओर, इसलिए नहीं की मुझे इस जगह की याद आ रही है, बल्कि इसलिए कि इस वक्त इस जगह सबकुछ सही नहीं है, और बतौर जर्नलिस्ट इसपर बात किया जाना और आप तक पहुंचाना बेहद जरूरी है.
DCH : इंसानियत और हौसले की मिसाल
साल 1910, जब छत्तीसगढ़ के घने जंगलों और आदिवासी इलाकों में अस्पताल का नामोनिशान तक नहीं था तब धमतरी क्रिश्चियन हॉस्पिटल DHAMTARI CHRISTIAN HOSPITAL ने एक छोटे से कमरे से अपनी शुरुआत की। मिशनरी संस्थाओं के जुनून और लोगों की जान बचाने के सपने ने इसे जन्म दिया। आज यह धमतरी क्रिश्चियन हॉस्पिटल ट्रस्ट के तहत चलता है और रोज़ाना औसतन 300 मरीजों को न सिर्फ़ स्थानीय बल्कि दूर-दराज़ के इलाकों से इलाज के लिए अपनी शरण देता है।

कल्पना कीजिए, उस दौर में जब न बिजली थी, न सड़कें। बैलगाड़ियों पर लोग सैकड़ों किलोमीटर का रास्ता तय करके यहां इलाज के लिए आते थे। नागपुर से भुवनेश्वर तक, करीब 1000 किलोमीटर के दायरे में ये इकलौता अस्पताल था जहां सर्जरी की सुविधा उपलब्ध थी। 1910 का वो भीषण अकाल, भुखमरी, गरीबी और लेप्रोसी जैसी बीमारियों का कहर, इस अस्पताल ने हर मुश्किल में लोगों का सहारा बनकर राहत पहुंचाई।

Influenza महामारी से लेकर कोविड जंग तक
1918-1920 के Influenza महामारी से लेकर 2021 की COVID जंग तक, DCH ने हर कदम पर लोगों का साथ दिया। मातृ-शिशु स्वास्थ्य, संक्रामक रोग, आपातकालीन सेवाएँ, इसने हर मोर्चे पर जिंदगियां बचाईं। एक कमरे से शुरू हुआ यह अस्पताल आज 250 बेड का मज़बूत ढांचा बन चुका है, जो आयुष एंड हेल्थ साइंस यूनिवर्सिटी ऑफ छत्तीसगढ़ से संबद्ध है। 1950 के दशक में यहाँ के मेडिकल स्टाफ को लुधियाना मेडिकल कॉलेज में प्रशिक्षण के लिए भेजा जाता था ताकि वे और बेहतर तरीके से लोगों की सेवा कर सकें। यहां कार्यरत कुछ डॉक्टर पिछले 30 सालों से और कुछ स्टाफ 15-20 सालों से सेवा दे रहे हैं, जिन्होंने सेवा भाव के साथ मरीजों का इलाज किया।

अस्पताल की खासियतें भी ध्यान खींचती हैं, स्वच्छता, स्टाफ का समर्पण और सबसे खास बात, यहाँ इलाज के रेट पहले ही साफ-साफ लिखे होते हैं। आमतौर पर निजी अस्पतालों में बिल थमा दिया जाता है, लेकिन यहाँ पारदर्शिता और अन्य अस्पतालों की तुलना में कम दरों पर इलाज उपलब्ध है।

कैसे पहुंचा हिंदू संगठनों के निशाने पर अस्पताल?
इतनी शानदार विरासत के बावजूद, पिछले कुछ महीनों से धमतरी क्रिश्चियन हॉस्पिटल विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और दुर्गा वाहिनी जैसे हिंदुत्ववादी संगठनों के निशाने पर है। इन संगठनों ने आरोप लगाया है कि अस्पताल में इलाज में लापरवाही बरती जा रही है, हिंदू मरीजों के साथ भेदभाव हो रहा है और यहां संचालित नर्सिंग कॉलेज में हिंदू छात्रों को अपने धार्मिक रीति-रिवाज़ों का पालन करने की आजादी नहीं दी जा रही। इन आरोपों के आधार पर 28 जून को अस्पताल के मुख्य द्वार पर करीब साढ़े तीन घंटे तक उग्र प्रदर्शन हुआ।

प्रदर्शन के दौरान, प्रदर्शनकारियों ने चैनल गेट के सामने बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ किया, अस्पताल के गेट पर लिखा “क्रिश्चियन” शब्द मिटा दिया, छत पर चढ़कर संगठन के झंडे बांधे और स्ट्रेचर, व्हीलचेयर व सीसीटीवी कैमरे तोड़ दिए। अस्पताल परिसर को गोबर से लिपा गया और एम्बुलेंस सूचना बोर्ड को उखाड़ फेंका गया। इस हंगामे में कुछ महिला पुलिसकर्मी दब गईं और कई लोग घायल हुए।

अस्पताल का जवाब
जब द लेंस ने मेडिकल सुप्रिटेंडेंट डॉ. संदीप पटोंदा से बात की तो उन्होंने इन आरोपों को निराधार बताया। एक चर्चित मामले में जिसे लेकर आरोप लगाए गए थे, उस मामले में मरीज के रिश्तेदार ने स्वयं मुख्य चिकित्सा स्वास्थ्य अधिकारी (CMHO) से अपनी शिकायत वापस ले ली। डॉ. पटोंदा ने बताया कि अस्पताल अपने ध्येय वाक्य ‘To serve, not to be served यानी सेवा करना, सेवा कराना नहीं’ ध्येय वाक्य के अनुरूप कार्य कर रहा है। मरीजों और उनके परिजनों ने भी अस्पताल की स्वच्छता, स्टाफ के समर्पण और किफायती इलाज की तारीफ की। इस घटना के बाद, धमतरी जिले के सर्व आदिवासी समाज ने अस्पताल की मानवता आधारित सेवाओं के समर्थन में रैली निकाली और सामुदायिक आरोपों का विरोध किया।

छत्तीसगढ़ में निशाने पर ईसाई समुदाय
धमतरी क्रिश्चियन हॉस्पिटल का यह विवाद कोई अकेली घटना नहीं है। हाल के महीनों में छत्तीसगढ़ में ईसाई समुदाय को लगातार निशाना बनाया जा रहा है। रायपुर में प्रशासन ने 100 साल पुरानी ईसाई समुदाय की जमीन को लीज खत्म होने का हवाला देकर वापस ले लिया। दुर्ग में दो कैथोलिक ननों की गिरफ्तारी का मुद्दा छत्तीसगढ़ से संसद तक गूंजा । कांकेर में एक ईसाई धर्म अपनाने वाले व्यक्ति के शव को दफनाने को लेकर भी विवाद हुआ। इनमें से अधिकांश मामलों में बजरंग दल प्रत्यक्ष रूप से शामिल रहा।

अस्पताल का विरोध ! क्या गुंडागर्दी ही है एकमात्र रास्ता ?

इतना सब देखने और सुनने के बाद, मेरे मन में बार-बार यही सवाल उठता है आखिर इतने बेहतरीन अस्पताल का विरोध क्यों? क्या सिर्फ इसलिए कि इसके नाम में “क्रिश्चियन” शब्द जुड़ा है? अगर इतने गंभीर आरोप हैं, तो क्या कानूनी रास्ता अपनाने की बजाय गुंडागर्दी और तोड़फोड़ जायज़ है? उस दिन विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ताओं ने अस्पताल के साइनबोर्ड से “क्रिश्चियन” शब्द को पत्थर से घिसकर मिटाने की कोशिश की। यह दाग आज भी अस्पताल के नाम पर नज़र आता है, जिसे एक महीने बाद भी ठीक नहीं किया गया। यह नेमप्लेट आज देश की धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी संस्कृति पर एक हमले की तरह दिखती है।
एसोसिएशन ऑफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स ऑफ इंडिया (Association of Healthcare Providers India AHPI) ने भी इस घटना की कड़ी निंदा की है। द लेंस ने स्थानीय पत्रकारों और आम लोगों से भी इस मुद्दे पर बात की, जिन्होंने इस विवाद को गलत ठहराया।

धमतरी क्रिश्चियन हॉस्पिटल सिर्फ़ एक अस्पताल नहीं, बल्कि हौसले, हिम्मत और इंसानियत की मिसाल है, जो 115 सालों से लोगों की जिंदगियों को रोशन कर रहा है। इस कहानी को आप तक पहुंचाने में मेरा मकसद भावनात्मक जुड़ाव से ज़्यादा सच्चाई को सामने लाना था। इस रिपोर्ट को आप यूट्यूब के इस वीडियो में देख सकतें हैं और अपने विचार या प्रतिक्रियाएं कमेंट्स के ज़रिए हम तक पहुंचा सकतें हैं।