मैं ये मान कर चलता हूं आप सब सफलता के पथ पर अग्रसर हैं। सफल होंगे या हो चुके होंगे या अपनी मंजिल के करीब हैं। ये पूरी प्रक्रिया संघर्ष के पथ से गुजरती है। जीवन के आसमान पर संघर्ष के बादल हमेशा छाए रहते हैं, चाहे कितनी ही ऊंचाइयां छू लें।
इन ऊंचाइयों तक पहुंचने ही नहीं बने रहने के लिए संतुलन चाहिए। आकाश छू लीजिये पर जमीन कभी न छोड़ें !

जमीन के भीतर जड़ें जितनी मजबूत रहेंगी कितनी ही ऊंचाई तय कर लीजिये जड़ें आपको थामे रहेंगी। जमीन से जुड़े होने के लिए जरूरी है जमीनी समझ, जमीन के लोगों को समझना, जमीनी हालत समझना।
प्रिय नौजवानों ये जमीनी समझ सिर्फ विश्वविद्यालयों, कोचिंग इंस्टिट्यूट या नौकरी के दफ्तरों से नहीं मिलेगी….इसके लिए कोर्स से इतर पढ़ना होगा जमीनी लेखकों को, जनता के लेखकों को और इसके लिए पहला नाम है प्रेमचंद।
गांव के गरीबों के लेखक प्रेमचंद, किसानों के संघर्षों के लेखक प्रेमचंद, नारी प्रश्नों को उठाते प्रेमचंद, खासकर अपने साहित्य से युवाओं को प्रेरित करते प्रेमचंद। प्रेमचंद के उपन्यास वरदान, सेवासदन, प्रतिज्ञा, निर्मला, गबन नारी समस्याओं से रू-ब-रू करवाते हैं तो प्रेमाश्रम जैसे कई उपन्यास आपको किसानों से परिचित करवाएंगे।
प्रेमचंद की ‘मंत्र’ कहानी पढ़कर एक युवक जगह -जगह उन्हें ढूंढता रहा सिर्फ ये बताने के लिए कि कैसे ‘मंत्र’ पढ़ने के बाद वो प्रेरित हुआ और लगातार सफल हुआ। बड़े घर की बेटी और पांच परमेश्वर जैसी कई कहानियों को पढ़कर आपने यदि सच्चा रास्ता चुना है, तो अपने आदर्शों पर मजबूती से कायम रह सकते हैं। आईआईटी, इंजीनियरिंग कर फील्ड में जा रहे हैं तो जरा ‘सज्जनता का दंड’ कहानी पर निगाहें इनायत करियेगा।
इसमें प्रेमचंद व्यंग्य के साथ आगाह करते हैं ” इंजीनियरों का ठेकेदार से कुछ ऐसा ही संबंध है, जैसा मधुमक्खियों का फूलों से …यह मधुरस कमीशन कहलाता है। रिश्वत लोक और पसरलोक दोनों का ही सर्वनाश कर देती है ….।” अगर पहले ही से मन ‘मधुरस ‘ के लिए ललक रहा तो कुछ नहीं कहना पर अगर कहीं सेवा भाव बचाना है, तो प्रेमचांद को जरूर पढ़िए।
जब परीक्षा या नौकरी बहुत तनावपूर्ण हो जाए, अवसादग्रस्त हों, कुछ अच्छा न लग रहा हो तब उन बातों को पढ़िए जो प्रेमचंद ने अपने मित्र को अवसाद से उबरने के लिए लिखा। “खेल के मैदान में वही शख़्स तारीफ का अधिकारी होता है जो जीत से फूलता नहीं और हार कर रोता नहीं ….हम सब के सब खिलाड़ी हैं मगर खेलना नहीं जानते। एक बाजी जीती, एक गोल जीता, हिप -हिप हुर्रे के नारों से आसमान गूंज उठा, टोपियां आसमान में उछलने लगीं, भूल गए कि ये जीत दायमी फतह की गारंटी नहीं है , मुमकिन है कि दूसरी बाजी में हार हो ……”
इसी बात को रंगभूमि में प्रेमचंद ने कुछ यूं लिखा है, “सच्चे खिलाड़ी कभी रोते नहीं , बाजी पर बाजी हारते हैं , चोट पर चोट खाते हैं, धक्के पर धक्के सहते हैं पर मैदान में डटे रहते हैं, उनकी त्योरियों पर बल नहीं पड़ते। खेल में रोना कैसा, खेल हंसने के लिए दिल बहलाने के लिए है, रोने के लिए नहीं ..”
खूब अभ्यास करने की सलाह प्रेमचंद एक नौजवान को देते हुए कहते हैं, ”प्रोपोगंडा से बचें तो अच्छा ही है ….संसार की सर्वश्रेष्ठ कहानियां पढ़ते रहा करो और लिखना तो ईश्वरीय शक्ति है। अभ्यास से इसे चमकाया जा सकता है, लेकिन जहां नहीं है वहां पूरा पुस्तकालय पढ़ जाने से भी नहीं आता ..”
फिर दो महीने बाद उस नौजवान की सफलता और अच्छी कहानी पर प्रेमचंद लिखते हैं -” आज तुम्हारा’ ऊंगली का घाव’ पढ़कर मुग्ध हो गया। तुम यहां होते तो तुम्हारा हाथ चूम लेता।