द लेंस डेस्क। नासा और इसरो का संयुक्त उपग्रह निसार (NASA-ISRO Synthetic Aperture Radar) बुधवार को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जीएसएलवी-एफ16 रॉकेट के जरिए सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। यह मिशन भारत और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष अनुसंधान में सहयोग का प्रतीक है।
निसार उपग्रह पृथ्वी की सतह का अध्ययन करने के लिए बनाया गया है और इसे धरती का “एमआरआई स्कैनर” भी कहा जा रहा है। यह सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षा में 740 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित होगा। इसका वजन 2,393 किलोग्राम है और यह दोनों देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों के दशकभर के तकनीकी सहयोग का नतीजा है।
यह उपग्रह भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी, भूस्खलन और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं की अग्रिम चेतावनी देने में सक्षम है। निसार दुनिया का पहला ऐसा उपग्रह है जो एल-बैंड और एस-बैंड रडार का उपयोग करके पृथ्वी की सतह को स्कैन करेगा। यह दिन-रात, किसी भी मौसम में उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरें ले सकता है। इसके अलावा, यह जलवायु परिवर्तन, भूस्खलन, हिमनदों की गतिविधियों, वनों में बदलाव और हिमालय व अंटार्कटिका जैसे क्षेत्रों में मौसमी बदलावों की निगरानी करेगा।
निसार का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी की सतह और बर्फीले क्षेत्रों को हर 12 दिन में स्कैन करना है, जो एक सेंटीमीटर तक की सटीक तस्वीरें प्रदान करेगा। यह नासा द्वारा विकसित एल-बैंड और इसरो द्वारा तैयार एस-बैंड रडार से लैस है, जो विश्व के सबसे उन्नत रडार माने जाते हैं। यह उपग्रह बाढ़, तटीय कटाव, ग्लेशियर गतिविधियों और अन्य प्राकृतिक घटनाओं पर नजर रखने के साथ-साथ दुश्मन देशों की गतिविधियों पर भी निगरानी रखेगा।
इस मिशन की लागत लगभग 1.3 बिलियन डॉलर (करीब 11,240 करोड़ रुपये) है। निसार न केवल भारत और अमेरिका, बल्कि वैश्विक स्तर पर प्राकृतिक आपदा प्रबंधन, कृषि, मिट्टी की नमी और जलवायु परिवर्तन के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान देगा। यह उपग्रह रियल-टाइम निगरानी के जरिए आपदाओं की भविष्यवाणी और प्रबंधन में भी सहायता प्रदान करेगा, जिससे यह भारत के लिए विशेष रूप से उपयोगी साबित होगा।