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लेंस रिपोर्ट

क्रांतिकारी डॉक्टर मारंग बाबा, जिसने हथकड़ी में किया फिरंगी दारोगा के बेटे का इलाज

विश्वजीत मुखर्जी
Last updated: July 1, 2025 8:17 pm
विश्वजीत मुखर्जी
Byविश्वजीत मुखर्जी
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:: डॉक्टर दिवस पर खास ::

झारखंड के संथाल परगना के मारंग बाबा से चंपारण के सुप्रसिद्ध डॉक्टर लंबोदर मुखर्जी बनने तक की यह कहानी आज डॉक्टर दिवस पर आपसे साझा कर रहा हूं।

अंग्रेजों के खिलाफ साफाहोड़ आंदोलन के सफल नेतृत्व के बाद संथाल परगना में लंबोदर मुखर्जी मारंग बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो चुके थे। इस वक्त तक कांग्रेस ने इनकी मदद से दुमका, राजमहल, देवघर एवं आसपास के इलाकों में अपनी पकड़ बना ली थी।

विश्वजीत मुखर्जी, स्वतंत्र पत्रकार

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी लंबोदर मुखर्जी की मदद से संथाल परगना में फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की, जिसकी प्रथम अध्यक्ष लंबोदर मुखर्जी की पत्नी उषा रानी मुखर्जी बनीं। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ गतिविधियां जोरों पर थीं। अंग्रेज सरकार की सीआईडी के निशाने पर सबसे पहला नाम लंबोदर मुखर्जी का था।

1930 के दशक के अंत में दुमका में सीआईडी ने आखिरकार मारंग बाबा को गिरफ्तार कर लिया। यह पहली बार नहीं था, जब उनके हाथों में हथकड़ी लगी थी। इससे पहले भी वे जेल की सजा काट चुके थे। मगर इस बार गिरफ्तारी के बाद मारंग बाबा को नजरबंद कर मोतिहारी भेज दिया गया। उन दिनों उत्तर बिहार टाइफाइड से जूझ रहा था। गांव के गांव इस बीमारी की चपेट में आकर उजड़ गए थे।

अगली शाम हो चुकी थी। हाथों में हथकड़ी पहने लंबोदर मुखर्जी को सिपाही मोतिहारी पुलिस थाने ले आया। थाने से सटा हुआ दारोगा का बंगला था, जहां से रोने की आवाजें आ रही थीं। किसी ने बताया कि दारोगा साहब का इकलौता बेटा टाइफाइड का शिकार हो चुका है और सभी बड़े डॉक्टरों ने जवाब दे दिया है। लंबोदर मुखर्जी ने तब सिपाही से कहा, “मुझे साहब से मिलने दीजिए, मैं कुछ दवाएं जानता हूं।” सिपाही लंबोदर मुखर्जी को दारोगा के पास ले गया।

“क्या मैं आपके बेटे की हालत देख सकता हूं?”

“इलाके के सभी बड़े डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए। अब कुछ नहीं हो सकता। तुम क्या कर सकते हो?”

लंबोदर मुखर्जी ने अपने साथ लाए बस्ते से दवा की पुड़िया निकाली। हथकड़ी पहने उन हाथों ने दारोगा के बेटे को हर दो घंटे पर दवा की खुराक दी। मृत्युशैया पर लेटा वह बच्चा सुबह होने तक उठकर खड़ा हो गया। लंबोदर मुखर्जी ने दारोगा से कहा, “अब आपका बेटा बिल्कुल स्वस्थ है।”

साहब ने लंबोदर मुखर्जी को सलाखों के पीछे तो नहीं डाला, मगर हर दिन उन्हें थाने में हाजिरी देनी पड़ती थी। इस घटना ने पूरे इलाके में लंबोदर मुखर्जी को मशहूर कर दिया। यही वह वक्त था, जब लंबोदर मुखर्जी ने मोतिहारी की एक इमारत में होम्योपैथिक चिकित्सा पद्धति को स्थापित किया। वही इमारत बाद में शहर का नामी होटल पैराडाइज बन गया। इस तरह एक स्वतंत्रता सेनानी से डॉक्टर बनने की कहानी पूरी हुई।

साल 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में लंबोदर मुखर्जी की अहम भूमिका का अंदाजा लगाते हुए ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें मोतिहारी में ही गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। लंबोदर मुखर्जी की लोकप्रियता की वजह से उन्हें महीने भर में ही मोतिहारी जेल से हजारीबाग जेल भेज दिया गया। मगर सबसे अहम बात अभी बाकी है।

डॉक्टर लंबोदर मुखर्जी के पास होम्योपैथी की कोई आधिकारिक डिग्री नहीं थी। दरअसल, स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान मिहिजाम के डॉक्टर परेश बनर्जी क्रांतिकारियों को अपने यहां पनाह देते थे। सीआईडी ने जब लंबोदर मुखर्जी पर शूट ऐट साइट का आदेश दिया था, तब वे परेश बनर्जी के चिकित्सालय में कंपाउंडर बनकर कई महीनों तक रहे। इसी दौरान उन्होंने वहां रखीं तमाम होम्योपैथी की किताबें पढ़ डालीं। इस तरह अनजाने में ही उन्होंने होम्योपैथी की शिक्षा ग्रहण कर ली। बाद में स्वयं डॉक्टर परेश बनर्जी ने लंबोदर मुखर्जी को आधिकारिक तौर पर होम्योपैथी चिकित्सा करने की सलाह दी।

आजादी के बाद वे बिहार होम्योपैथिक मेडिकल एसोसिएशन के संस्थापक सदस्य एवं लंबे समय तक अध्यक्ष भी रहे। डॉक्टर लंबोदर मुखर्जी ने अपनी पेंशन की राशि से गरीबों का इलाज किया।

TAGGED:ChamparanDoctor Day SpecialJharkhandLambodar MukherjeeMarang BabaSanthal ParganaTop_News
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