नई दिल्ली। आज सुबह मध्य पूर्व में तनाव चरम पर पहुंच गया जब अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले किए। इसके तुरंत बाद, ईरान ने जवाबी कार्रवाई करते हुए इजरायल पर मिसाइल हमले शुरू किए। यह घटनाक्रम इजरायल और ईरान के बीच पहले से चल रहे तनाव को और भड़काने वाला साबित हुआ है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका द्वारा ईरान पर हमला रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के लिए सीधी चुनौती है। दोनों नेताओं ने चेतावनी दी थी कि ऐसा कदम उन्हें युद्ध में शामिल होने के लिए बाध्य कर सकता है। हाल ही में कुछ चीनी मालवाहक विमानों के तेहरान में उतरने की खबरें भी सामने आई हैं।

विदेशी मीडिया के हवाले से खबर है कि जब पुतिन से इजरायल-ईरान संघर्ष के बीच अमेरिकी हमले की संभावना और तीसरे विश्व युद्ध के जोखिम के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने स्पष्ट कहा कि यह कोई हल्की बात नहीं है। उन्होंने इसे मध्य पूर्व में परमाणु आपदा की गंभीर स्थिति बताते हुए कहा कि वैश्विक संघर्ष सभी को प्रभावित करेगा।
चीन ने अमेरिकी हमलों की आलोचना करते हुए कहा कि वाशिंगटन ने अतीत की रणनीतिक गलतियों को दोहराया है, जिसके गंभीर परिणाम होंगे। यह ईरान-इजरायल युद्ध का खतरनाक मोड़ है। इतिहास बताता है कि मध्य पूर्व में सैन्य हस्तक्षेप से विनाशकारी नतीजे सामने आए हैं, जैसे 2003 का इराक युद्ध।
फ्रांस ने स्थिति पर चिंता जताई और सभी पक्षों से तनाव कम करने का आग्रह किया। उसने संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर कूटनीतिक समाधान की बात कही।
संयुक्त राष्ट्र ने जारी किया आपातकालीन बयान

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने एक तत्काल बयान में सभी पक्षों से धैर्य रखने और युद्ध टालने की गुजारिश की है। उन्होंने कहा, “मुझे अमेरिका द्वारा आज ईरान के खिलाफ की गई सैन्य कार्रवाई की खबर से गहरी चिंता हो रही है। यह एक अस्थिर क्षेत्र में खतरनाक उत्तेजना है, जो पहले से ही तनावपूर्ण स्थिति में है और वैश्विक शांति व सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करती है।” इससे पहले, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इस मामले पर चर्चा के लिए एक बैठक बुलाई थी। संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि इस संघर्ष से न केवल मध्य पूर्व, बल्कि पूरे विश्व में आर्थिक और मानवीय संकट उत्पन्न हो सकता है।
मध्य पूर्व के देशों ने क्या कहा
सऊदी अरब ने सतर्क रुख अपनाया है। ईरान के साथ तनाव के कारण वह इजरायल और अमेरिका के प्रति झुकाव दिखा रहा है, लेकिन कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया। कतर और तुर्की ने युद्ध की निंदा की और मध्यस्थता का प्रस्ताव दिया। कतर ने विशेष रूप से मानवीय संकट की चेतावनी दी। संयुक्त अरब अमीरात ने तटस्थता बनाए रखी, लेकिन क्षेत्रीय स्थिरता की वकालत की। मिस्र और जॉर्डन ने युद्ध के क्षेत्रीय प्रभावों पर चिंता जताई और शांति की अपील की। वहीं कतर ने अमेरिका को दी चेतावनी और ओमान ने तुरंत तनाव कम करने को कहा है।
संवाद और कूटनीति ही रास्ता : पीयूष गोयल
भारत ने ईरान-इजरायल तनाव और ईरानी परमाणु संयंत्रों पर अमेरिकी हमले को लेकर अपनी पहली प्रतिक्रिया दी है। भारत ने सावधानीपूर्वक शब्दों में कहा कि समस्याओं का समाधान बातचीत और कूटनीति से होना चाहिए। रविवार को वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए यह बात कही। गोयल ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि युद्ध समस्याओं का हल नहीं है, बल्कि संवाद और कूटनीति ही इसका रास्ता है।
वहीं, AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखी। उन्होंने अमेरिकी हमले की कड़ी निंदा की और इसे अंतरराष्ट्रीय कानून व संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन बताया। ओवैसी ने कहा कि इस तरह के हमले ईरान को नहीं रोक सकते और अगले 5-10 वर्षों में ईरान परमाणु हथियारों से लैस देश बन सकता है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि ईरान ने हमले से पहले ही अपने परमाणु भंडार सुरक्षित स्थान पर स्थानांतरित कर लिए थे। साथ ही, कई अरब देशों का मानना है कि ईरान को परमाणु शक्ति प्राप्त करनी चाहिए।
अमेरिका ने हमले से पहले दी थी जानकारी
मध्य पूर्व की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक वरिष्ठ ईरानी अधिकारी ने पुष्टि की है कि अमेरिका ने हमले से पहले ईरान को पहले से सूचना दी थी। अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर Amwaj.media को बताया कि 21 जून को ट्रंप प्रशासन ने ईरान को सूचित किया था कि उसका इरादा युद्ध शुरू करना नहीं है, बल्कि केवल फोर्डो, नतांज और इस्फहान की परमाणु सुविधाओं को निशाना बनाना है। अर्थात, अमेरिकी समय के अनुसार, हमले से एक दिन पहले ईरान को इसकी जानकारी दे दी गई थी।