यह अच्छा है कि सर्वोच्च न्यायालय के जजों ने खुद से अपनी संपत्ति के ब्योरे सार्वजनिक करने की पहल की है। न्यायपालिका के भीतर इसे लेकर लंबे समय तक मंथन चला है। 1997 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे एस वर्मा की अध्यक्षता में पूर्ण पीठ ने संकल्प लिया था कि जज मुख्य न्यायाधीश को अपनी संपत्ति के ब्योरे देंगे, लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। इसके बाद 2009 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश के जी बालकृष्णन के कार्यकाल में तय किया गया कि जज स्वैच्छिक रूप से अपनी संपत्ति के ब्योरे सार्वजनिक करेंगे। इस बीच, 2023 में एक संसदीय समिति ने सिफारिश कर दी कि सरकार कानून लाकर जजों के लिए संपत्ति बताना अनिवार्य कर दे। सरकार का पहले ही जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर टकराव चल रहा है, ऐसे में इसे भी स्वाभाविक रूप से न्यायपालिका के काम में दखल माना गया। हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के आवास पर हुई आगजनी के दौरान कथित तौर पर बड़े पैमाने पर नकदी मिलने के बाद न्यायपालिका में कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नए सिरे से बहस शुरू हो गई। इसके बाद ही चीफ जस्टिस खन्ना की पहल पर यह कदम उठाया गया है और यह न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को खत्म करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है। हालांकि संस्थागत भ्रष्टाचार को खत्म करने की दिशा में अभी बहुत काम किए जाने की जरूरत है। और फिर बात, सिर्फ न्यायपालिका की नहीं है, क्या इस पर भी चर्चा नहीं होनी चाहिए कि एडीआर की एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय मंत्रियों की औसत संपत्ति 100 करोड़ रुपये से अधिक है!