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‘बच्चों को फोन दे रहे हैं?’ सुप्रीम कोर्ट की पेरेंट्स को चेतावनी, ओटीटी और सोशल मीडिया पर बढ़ता अश्लील कंटेंट!

पूनम ऋतु सेन
Last updated: April 29, 2025 12:00 pm
पूनम ऋतु सेन
Byपूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की...
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SC PIL 'बच्चों को फोन दे रहे हैं?' सुप्रीम कोर्ट की पेरेंट्स को चेतावनी, ओटीटी और सोशल मीडिया पर बढ़ता अश्लील कंटेंट!
SC PIL 'बच्चों को फोन दे रहे हैं?' सुप्रीम कोर्ट की पेरेंट्स को चेतावनी, ओटीटी और सोशल मीडिया पर बढ़ता अश्लील कंटेंट!
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द लेंस डेस्क। 28 अप्रैल 2025 सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका (SC PIL) की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार,ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया कंपनियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। इस याचिका में ओटीटी (ओवर द टॉप) और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील और आपत्तिजनक सामग्री को रोकने के लिए सख्त दिशानिर्देश बनाने की मांग की गयी है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस अगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने इस मामले को गंभीर बताया और कहा कि यह विधायिका और कार्यपालिका के दायरे में आता है लेकिन इस मामले की गंभीरता को देखते हुए नोटिस जारी किया गया है।

खबर में खास
याचिकाकर्ताओं की दलीलें और चिंताएंओटीटी और सोशल मीडिया पर बढ़ता विवादओटीटी और सोशल मीडिया के दौर में चुनौती

याचिकाकर्ताओं की दलीलें और चिंताएं

यह याचिका उदय माहुरकर, संजीव नेवार, सुदेशना भट्टाचार्य मुखर्जी, शताब्दी पांडे और स्वाति गोयल ने दायर की थी। याचिका कर्ताओं की ओर से वकील विष्णु शंकर जैन ने कोर्ट में दलील दी कि ओटीटी और सोशल मीडिया पर बिना किसी नियमन के अश्लील सामग्री प्रसारित हो रही है, जो समाज खासकर बच्चों और युवाओं पर बुरा असर डाल रही है। उन्होंने कहा, “सोशल मीडिया पर ऐसी सामग्री बिना किसी जांच के उपलब्ध है। मैंने पूरी सूची और सेकंड-दर-सेकंड विवरण संलग्न किया है कि क्या दिखाया जा रहा है। यह बच्चों और समाज के लिए हानिकारक है।”

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केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि सरकार इस मुद्दे पर पहले से ही कुछ नियमन लागू कर चुकी है और नए नियमों पर विचार कर रही है। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा, “कुछ कार्यक्रमों में भाषा और सामग्री इतनी विकृत होती है कि दो लोग एक साथ बैठकर इसे देख भी नहीं सकते। इनका एकमात्र मानदंड यह है कि यह 18+ के लिए है लेकिन यह बच्चों तक भी पहुंच रहा है।”

जस्टिस गवई ने इस दौरान टिप्पणी की, उन्होंने कहा “हमने देखा है कि माता-पिता बच्चों को व्यस्त रखने के लिए उन्हें फोन दे देते हैं। यह एक गंभीर मुद्दा है। हालांकि, यह मामला विधायिका और कार्यपालिका के क्षेत्र में आता है। हम पर पहले से ही कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का आरोप लगता है, फिर भी हम नोटिस जारी कर रहे हैं।”

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के साथ-साथ कई प्रमुख ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को नोटिस जारी किया है, जिनमें नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, उल्लू डिजिटल, एएलटी बालाजी, एमयूबीआइ, एक्स कॉर्प (पूर्व में ट्विटर), गूगल, एप्पल, मेटा (फेसबुक और इंस्टाग्राम की मूल कंपनी) और यूट्यूब शामिल हैं। कोर्ट ने इन सभी से जवाब मांगा है कि वे इस मुद्दे पर क्या कदम उठा रहे हैं।

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ओटीटी और सोशल मीडिया पर बढ़ता विवाद

पिछले कुछ वर्षों में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया की लोकप्रियता में भारी वृद्धि हुई है। नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, और डिज्नी+ हॉटस्टार जैसे प्लेटफॉर्म्स ने भारत में लाखों दर्शकों को आकर्षित किया है। हालांकि, इन प्लेटफॉर्म्स पर बिना सेंसरशिप के सामग्री प्रसारित होने की वजह से कई बार विवाद भी हुए हैं। उदाहरण के लिए तांडव (अमेजन प्राइम) और सैक्रेड गेम्स (नेटफ्लिक्स) जैसी सीरीज पर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने और अश्लीलता को बढ़ावा देने के आरोप लगे थे।

सोशल मीडिया पर भी अनियंत्रित सामग्री एक बड़ी समस्या बन गई है। यूट्यूब, इंस्टाग्राम, और एक्स जैसे प्लेटफॉर्म्स पर उपयोगकर्ता-जनित सामग्री की वजह से अश्लील और आपत्तिजनक कंटेंट की भरमार है। भारत सरकार ने इस दिशा में पहले ही कुछ कदम उठाए हैं। 2021 में लागू किए गए इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल मीडिया एथिक्स कोड) रूल्स के तहत ओटीटी और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को कंटेंट को आयु-आधारित श्रेणियों में वर्गीकृत करने और शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करने का निर्देश दिया गया था। फिर भी इन नियमों का प्रभावी कार्यान्वयन एक चुनौती बना हुआ है।

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ओटीटी और सोशल मीडिया के दौर में चुनौती

वर्तमान में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और सोशल मीडिया कंपनियां स्व-नियमन (self-regulation) पर जोर देती हैं। 2020 में नेटफ्लिक्स और अमेजन प्राइम जैसे 15 ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने एक सेल्फ-रेगुलेशन कोड बनाया था जिसमें बच्चों के लिए अनुपयुक्त सामग्री, आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली सामग्री और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली सामग्री को रोकने की बात कही गई थी। हालांकि इस कोड के प्रभावी होने पर सवाल उठते रहे हैं।

निगरानी की चुनौतियां और सुप्रीम कोर्ट का रुख

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी सामग्री की निगरानी के लिए एल्गोरिदम और मॉडरेशन टीमें काम करती हैं लेकिन भारत जैसे विशाल और विविध देश में हर तरह की सामग्री पर नजर रखना एक जटिल कार्य है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी और नोटिस इस बात का संकेत है कि अब तक के नियमन अपर्याप्त हैं और इस दिशा में सख्त कदम उठाने की जरूरत है।

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Byपूनम ऋतु सेन
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पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की उत्सुकता पत्रकारिता की ओर खींच लाई। विगत 5 वर्षों से वीमेन, एजुकेशन, पॉलिटिकल, लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों पर लगातार खबर कर रहीं हैं और सेन्ट्रल इण्डिया के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अलग-अलग पदों पर काम किया है। द लेंस में बतौर जर्नलिस्ट कुछ नया सीखने के उद्देश्य से फरवरी 2025 से सच की तलाश का सफर शुरू किया है।
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