[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
सड़कों पर पंडाल और स्वागत द्वार पर हाईकोर्ट में सुनवाई, कोर्ट ने कहा- अनुमति लेने की गाइडलाइंस लागू रहेगी
विपक्ष पर जवाबी हमले का मोदी ने दिया मंत्र, 17 विधेयक लाने की तैयारी, उद्धव शिवसेना के सांसदों के टूटने की चर्चा गर्म
पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने ED के बयान पर दी प्रतिक्रिया, साथ में ED को लेकर दो फोटो भी की पोस्ट
राज्यसभा में मल्लिकार्जन खरगे, लोकसभा में राहुल ने ऑपरेशन सिंदूर पर सरकार को घेरा
मानसून सत्र हंगामेदार, लेकिन इस मामले पर पक्ष-विपक्ष एकजुट  
ED का बड़ा खुलासा, चैतन्य बघेल को घोटाले से मिले 16 करोड़ 70 लाख को रियल स्टेट में किया निवेश
केरल के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन का 101 साल की उम्र में निधन
ढाका में स्कूल के ऊपर एयरफोर्स का एयरक्राफ्ट क्रैश, 19 की मौत, 100 से अधिक घायल
वामपंथी ट्रेड यूनियन नेता बी.सान्याल का निधन
अडानी और सीएम साय पर भूपेश बघेल का बड़ा हमला, पोस्ट कर बताया – किस बात के लिए करना पड़ा पांच साल इंतजार
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.

Home » विनोद कुमार शुक्ल जी की कुछ कविताएं

साहित्य-कला-संस्कृति

विनोद कुमार शुक्ल जी की कुछ कविताएं

The Lens Desk
Last updated: March 22, 2025 3:01 pm
The Lens Desk
Share
SHARE

हिंदी के प्रतिष्ठित कवि और कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को इस वर्ष का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई है। साहित्य के क्षेत्र में शुक्ल जी छह दशकों से सक्रिय हैं। ‘द लेंस’ के पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं उनकी कुछ कविताएं…

हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था
हताशा से एक व्यक्ति बैठ गया था।
व्यक्ति को मैं नहीं जानता था, हताशा को जानता था।
इसलिए मैं उस व्यक्ति के पास गया।
मैंने हाथ बढ़ाया।
मेरा हाथ पकड़कर वह खड़ा हुआ।
मुझे वह नहीं जानता था, मेरे हाथ बढ़ाने को जानता था।
हम दोनों साथ चले।
दोनों एक दूसरे को नहीं जानते थे, साथ चलने को जानते थे।

घर से बाहर निकलने की गड़बड़ी में
घर से बाहर निकलने की गड़बड़ी में इतना बाहर निकल आया
कि सब जगह घुसपैठिया होने की सीमा थी।
घुसपैठिया कि देशिहा!
मेरी सूरत मुझको देखती है कि बदला नहीं।
चालाकी से अपनी सूरत की फ़ोटो मैंने खिंचवा ली थी
कि बहुरुपिया होकर भी पहचाना जाएगा।
सब्ज़ी बाज़ार में खड़ा होकर मैं सोचता हूँ
कि विद्रोही न कहलाने के लिए
मुझे कौन-कौन सी सब्ज़ी नहीं ख़रीदनी चाहिए।
मैं हमेशा जाता हुआ दिखलाई देता हूँ।
मैं अपनी पीठ बहुत अच्छी तरह पहचानता हूँ।

सबसे ग़रीब आदमी की
सबसे ग़रीब आदमी की सबसे कठिन बीमारी के लिए
सबसे बड़ा विशेषज्ञ डॉक्टर आए,
जिसकी सबसे ज़्यादा फ़ीस हो।
सबसे बड़ा विशेषज्ञ डॉक्टर उस ग़रीब की झोंपड़ी में आकर
झाड़ू लगा दे, जिससे कुछ गंदगी दूर हो।
सामने की बदबूदार नाली को साफ़ कर दे,
जिससे बदबू कुछ कम हो।
उस ग़रीब बीमार के घड़े में शुद्ध जल दूर
म्युनिसिपल की नल से भरकर लाए।
बीमार के चीथड़ों को पास के हरे गंदे पानी के डबरे
से न धोए, कहीं और धोए।
बीमार को सरकारी अस्पताल जाने की सलाह न दे।
कृतज्ञ होकर सबसे बड़ा डॉक्टर सबसे ग़रीब आदमी का इलाज करे
और फ़ीस माँगने से डरे।
सबसे ग़रीब बीमार आदमी के लिए
सबसे सस्ता डॉक्टर भी बहुत महँगा है।

जाते-जाते ही मिलेंगे लोग उधर के
जाते-जाते ही मिलेंगे लोग उधर के।
जाते-जाते जाया जा सकेगा उस पार।
जाकर ही वहाँ पहुँचा जा सकेगा
जो बहुत दूर संभव है।
पहुँचकर संभव होगा।
जाते-जाते छूटता रहेगा पीछे।
जाते-जाते बचा रहेगा आगे।
जाते-जाते कुछ भी नहीं बचेगा जब,
तब सब कुछ पीछे बचा रहेगा।
और कुछ भी नहीं में सब कुछ होना बचा रहेगा।

अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं
अपने हिस्से में लोग आकाश देखते हैं
और पूरा आकाश देख लेते हैं।
सबके हिस्से का आकाश पूरा आकाश है।
अपने हिस्से का चंद्रमा देखते हैं
और पूरा चंद्रमा देख लेते हैं।
सबके हिस्से का चंद्रमा वही पूरा चंद्रमा है।
अपने हिस्से की जैसी-तैसी साँस सब पाते हैं।
वह जो घर के बग़ीचे में बैठा हुआ अख़बार पढ़ रहा है
और वह भी जो बदबू और गंदगी के घेरे में ज़िंदा है।
सबके हिस्से की हवा वही हवा नहीं है।
अपने हिस्से की भूख के साथ
सब नहीं पाते अपने हिस्से का पूरा भात।
बाज़ार में जो दिख रही है
तंदूर में बनती हुई रोटी,
सबके हिस्से की बनती हुई रोटी नहीं है।
जो सबकी घड़ी में बज रहा है,
वह सबके हिस्से का समय नहीं है।
इस समय।

TAGGED:indian literaturevinod kumar shukla
Share This Article
Email Copy Link Print
Previous Article विधानसभा में बवाल, 18 बीजेपी विधायक निलंबित, मार्शलों ने किया बाहर
Next Article 22 मार्च-जनता कर्फ्यू : जब ताली-थाली बजवाकर हमारी वैज्ञानिक सोच को कुंद कर दिया गया

Your Trusted Source for Accurate and Timely Updates!

Our commitment to accuracy, impartiality, and delivering breaking news as it happens has earned us the trust of a vast audience. Stay ahead with real-time updates on the latest events, trends.
FacebookLike
XFollow
InstagramFollow
LinkedInFollow
MediumFollow
QuoraFollow

Popular Posts

शिलान्यास के पत्थर पर नाम, लेकिन नगर पंचायत अध्यक्ष को शिकायत – ‘मंच पर नहीं बुलाया’

रायपुर। 21 जून को कुनकुरी विधानसभा क्षेत्र में नालंदा लाइब्रेरी के शिलान्यास को लेकर राजनीति…

By Lens News

मुख्यमंत्री साय ने किया प्रदेश के पहले जनजातीय संग्रहालय लोकार्पण

रायपुर। नया रायपुर में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बुधवार को जनजातीय संग्रहालय लोकार्पण (Tribal Museum)…

By Lens News

ऑपरेशन सिंदूर को दुनिया भर में ब्रीफ करेंगे सांसद, ग्रुप लीडर्स में शशि थरूर और ओवेसी भी   

नई दिल्‍ली। भारत सरकार ने आतंकवाद के खिलाफ अपनी निर्णायक कार्रवाई, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ (operation sindoor)…

By Lens News Network

You Might Also Like

Jan sanskriti Manch
साहित्य-कला-संस्कृति

चाहे जो हो जाय नफरत को जीतने नहीं दिया जाएगा..

By Poonam Ritu Sen
Til ka Taad
साहित्य-कला-संस्कृति

दर्शकों की भीड़ के बीच ‘तिल का ताड़’… इस तरह याद किए गए जलील रिजवी

By Lens News
साहित्य-कला-संस्कृति

प्रतिष्ठित कवि और कथाकार विनोद कुमार शुक्ल को ज्ञानपीठ पुरस्कार

By The Lens Desk
साहित्य-कला-संस्कृति

जन संस्कृति मंच के अभिनव आयोजन सृजन संवाद में जुटे रचनाकारों ने मनुष्यता को बचाने पर दिया जोर

By Poonam Ritu Sen
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?