[
The Lens
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Latest News
कैबिनेट के इस फैसले के बाद अब नवा रायपुर में हो सकेंगे चैंपियंस ट्रॉफी और टी 20 वर्ल्ड कप के मैच
कर्नाटक सरकार अब सभी कामकाजी महिलाओं को देगी हर माह एक पेड पीरियड लीव,अधिसूचना जारी
बिहार चुनाव में NDA की बंपर जीत, महागठबंधन की करारी हार, दिल्‍ली में बीजेपी कार्यालय में जश्‍न  
पंडित जवाहरलाल नेहरू का ऐतिहासिक भाषण: ट्रिस्ट विद डेस्टिनी
बिहार विधानसभा चुनाव 2025: महागठबंधन की बुरी हार, एनडीए की फिर से सरकार
पुणे-बेंगलुरु हाईवे पर बेकाबू कटेंनर ने गाड़ियों को ठोका, 8 की मौत, दर्जनों घायल
चैतन्य बघेल की 61.20 करोड़ की संपत्ति कुर्क, जानिए ईडी को जांच में क्‍या मिला ?
भारत के 7 राज्यों में शीतलहर का कहर, दक्षिण भारत में होगी बारिश, दिल्ली में AQI अभी भी गंभीर श्रेणी में
ढाका में शेख हसीना की अवामी लीग पार्टी मुख्यालय में हिंसा, आगजनी और मारपीट,17 नवंबर को फैसला
दिल्ली कार धमाके की जांच में ईडी की एंट्री, फंडिंग और यूनिवर्सिटी के लेन-देन पर नजर, उमर का डीएनए मैच
Font ResizerAa
The LensThe Lens
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
  • वीडियो
Search
  • होम
  • लेंस रिपोर्ट
  • देश
  • दुनिया
  • छत्तीसगढ़
  • बिहार
  • आंदोलन की खबर
  • सरोकार
  • लेंस संपादकीय
    • Hindi
    • English
  • वीडियो
  • More
    • खेल
    • अन्‍य राज्‍य
    • धर्म
    • अर्थ
    • Podcast
Follow US
© 2025 Rushvi Media LLP. All Rights Reserved.
सरोकार

बिहार के प्रवासी मजदूरों की दुविधाः वोट दें या नौकरी पर लौटें

पत्रलेखा चटर्जी
पत्रलेखा चटर्जी
Byपत्रलेखा चटर्जी
Follow:
Published: October 27, 2025 5:47 PM
Last updated: October 27, 2025 7:40 PM
Share
Migrant workers
SHARE

अब जबकि बिहार में विधानसभा चुनाव का प्रचार पूरे शबाब पर है, कुछ मुद्दे नाटकीय तरीके से सामने आने लगे हैं। इन्हीं में से एक है, प्रवासी मजदूरों का मुद्दा अमूमन नीतियों और कार्यक्रमों में अक्सर जिनकी चरचा नहीं होती। राजनीतिक दल खासतौर से भाजपा की अगुआई वाले एनडीए ने छठ पूजा के लिए बिहार आए प्रवासी मजदूरों से संपर्क करने के लिए आक्रामक तरीके से घर घर जाने का अभियान शुरू कर दिया है।

खबर में खास
आखिर भारत की कल्पना में प्रवासी मजदूरों की जगह है कहां?समावेशन की ओर

बिहार में छह और 11 नवंबर को मतदान होना है। इन चुनावों में प्रवासी मजदूरों की भी अहम भूमिका है। पूर्वी चम्पारण जिले में 6.14 लाख प्रवासी हैं, तो सीवान में 5.48 लाख और  दरभंगा जिले में 4.3 लाख। पता चला है कि विभिन्न राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने प्रवासियों के बिहार प्रवास के लिए उनके नियोक्ताओं के साथ बात कर उनकी यात्रा की व्यवस्था में मदद की है। संदेश साफ है, आपका वोट कीमती है! लेकिन यह रिश्ता सिर्फ चुनाव तक है।

चुनाव के दौरान प्रवासी मजदूरों की यह पूछ-परख रणनीतिक होने के साथ ही कपटपूर्ण भी है। बिहार में दशकों से प्रवासी मजदूरों को सिर्फ चुनावों में इस तरह याद किया जाता है, वरना तो राज्य की नजर से वे दूर ही होते हैं। नौकरी की सुरक्षा, आवास, स्वास्थ्य सुरक्षा और उनके वोटर लिस्ट से उनके नाम कट जाने जैसे मुद्दों के ढांचागत समाधान के बारे में शायद ही विचार किया जाता है। उनकी राजनीतिक प्रासंगिकता तब समझ आती है, जब कड़े मुकाबले वाले निर्वाचन क्षेत्रों में उनकी संख्या नतीजों को प्रभावित कर सकती है।

इस बार छठ पूज ऐन चुनाव के बीच में होने से लाखों प्रवासी मजदूरों के लिए दुविधा पैदा हो गई है। उन्हें तय करना है कि वे वोट देने रुकें या दिल्ली, गुरुग्राम और चेन्नई जैसे उनकी नौकरी वाले शहरों में लौट जाएं, ताकि उन्हें आर्थिक नुकसान न हो। यह फैसला अनेक लोगों के लिए वाकई बहुत कठिन है।

चेन्नई में एक बिहारी कंस्ट्रक्शन मजदूर ने एक रिपोर्टर से कहा, हममें से ज्यादातर लोग कंस्ट्रक्शन सेक्टर की साइट पर रुक गए हैं। हम छुट्टियों के दिन भी काम करते हैं और कई बार तो सूर्यास्त के बाद तक ताकि परिवार के लिए कुछ पैसे और कमा सकें। यहां से पटना जाने में नौ दिन की मजदूरी करीब 15 हजार रुपये और पांच से सात हजार रुपये अलग से खर्च हो जाते हैं। हम यह खर्च वहन नहीं कर सकते।

भाजपा की नजर छठ पर लौटने वाले लाखों प्रवासियों पर है। भाजपा के 150 नेताओं की एक टीम त्योहारों का फायदा उठाकर उन्हें मतदान केंद्रों तक लाने की कोशिश कर रही है। दूसरी तरफ, आरजेडी और कांग्रेस के महागठबंधन ने पहले ही सत्ताधारी एनडीए पर मतदाता सूची के गहन पुनरीक्षण (एस आई आर) का इस्तेमाल करके गरीब और ओबीसी, एससी और एसटी जैसे हाशिये के समूहों के प्रवासियों के नाम काटने का आरोप लगाया है।

आखिर भारत की कल्पना में प्रवासी मजदूरों की जगह है कहां?

पांच साल पहले आई कोविड-19 महामारी ने भारत के घरेलू प्रवासियों की दुर्दशा को उजागर कर दिया था। 25 मार्च, 2020 को जब अचानक राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन घोषित किया गया था, तब करोड़ों प्रवासी मजदूर शहरों में बिना किसी काम और आश्रय के फंस गए थे और बेबसी में अपने घरों को लौटने को मजबूर हो गए थे।

इनमें बड़ी संख्या में बिहार के प्रवासी मजदूर थे। तब प्रवासी मजदूरों को सैकड़ों किलोमीटर तक पैदल चल कर अपने गांवों को ओर लौटते देखा गया था। यह पलायन राज्य की उदासीनता के प्रतीक बनकर सामने आया था। उन दृश्यों को देख कर देश की चेतना स्तब्ध रह गई थी।

तब बेहतर सुरक्षा, कल्याण और समावेशी शहरी नियोजन की मांग उठी थी। लेकिन जैसे ही संकट कम हुआ, वैसे ही यह तात्कालिकता भी खत्म हो गई। हाल ही में “द इंडिया फोरम” में स्वतंत्र श्रम और सार्वजनिक नीति शोधकर्ता नम्रता राजू ने अपने शोधपरक निबंध, “फ्रॉम गेस्ट वर्कर्स टू घोस्ट वर्कर्स” में तर्क दिया है कि अंततः श्रमिकों के अधिकार और कल्याण वैकल्पिक नीतियों या लोकलुभावन योजनाओं के दायरे में तो आ गए, लेकिन स्थायी, ढांचागत बदलाव की मांग करने वाला राजनीतिक एजेंडा बनने में विफल रहे।

इस उपेक्षा का सबसे स्पष्ट उदाहरण प्रवासी मजदूरों का लगातार मताधिकार से वंचित रहना है। नागरिक होने के बावजूद, कई लोग वोट नहीं दे पाते, क्योंकि वे अपने गृह निर्वाचन क्षेत्रों में पंजीकृत हैं और वापस यात्रा करने का खर्च नहीं उठा सकते। भारत निर्वाचन आयोग ने 2022 में राजनीतिक दलों को दिए एक कॉन्सेप्ट नोट में उल्लेख किया कि आंतरिक प्रवास कम मतदाता भागीदारी का एक प्रमुख कारण है, जिसमें 2019 के लोकसभा चुनाव में 67.4% भागीदारी थी, जिसके कारण देशभर में 30 करोड़ लोग वोट नहीं दे सके थे।

जनवरी 2023 में चुनाव आयोग ने प्रवासियों को उनके कार्यस्थल से वोट देने की सुविधा के लिए रिमोट इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (RVM) का एक प्रोटोटाइप परीक्षण किया। लेकिन अभी तक, लाखों प्रवासी “वोट या आजीविका” की दुविधा में फंसे हैं—उन्हें अपने लोकतांत्रिक अधिकार का इस्तेमाल करने और नौकरी बनाए रखने के बीच चयन करना पड़ रहा है।

इस साल के चुनाव कार्यक्रम ने इस दुविधा को बढ़ाया ही है। इस बार छठ पूजा 27 अक्टूबर से शुरू हुई है और बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर बिहार लौटे हैं। लेकिन यदि वे पंद्रह-बीस दिनों बाद होने वाले मतदान में हिस्सा लेने के लिए रुकते हैं तो उनके लिए नौकरी का संकट आ सकता है।

अनेक प्रवासियों के लिए मतदान तक घर में रुकना मुश्किल है। एनडीए और महागठबंधन दोनों प्रवासियों को लुभाने के लिए बड़े वादे कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने 62,000 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट्स, औद्योगिक हब और आईटीआई को अपग्रेड कर प्रवासियों को बेहतर नौकरियों के अवसर देने का वादा किया है। दूसरी ओर, महागठबंधन के प्रमुख घटक राजद के नेता तेजस्वी यादव और कांग्रेस के नेता कन्हैया कुमार ने हर परिवार को एक सरकारी नौकरी और 2 लाख जीविका दीदियों को ₹30,000/महीने की स्थायी नौकरी देने का वादा किया है।

फिर भी, अविश्वास गहरा है। प्रवासी पहले भी ऐसे वादे सुन चुके हैं। उन्होंने नौकरी देने वाली योजनाओं को शुरू होते और चुपके से बंद होते देखा है। कल्याणकारी विभागों के फंडिंग का ऐलान और फंड का कभी न मिलना देखा है। उन्होंने मतदाता सुधारों की चर्चा भी सुनी है और उन पर अमल न होना भी देखा है।

1951 से हर चुनाव में कम से कम एक-तिहाई भारतीय मतदाता वोट नहीं दे पाए। प्रवास इसका एक बड़ा कारण है। फिर भी, अपनी आर्थिक भागीदारी और चुनावी महत्व के बावजूद, प्रवासी मजदूर लोकतांत्रिक प्रक्रिया से बाहर रहते हैं—न तो उनके कार्यस्थल पर और न ही उनके गृह निर्वाचन क्षेत्रों में।

समावेशन की ओर

अगर भारत सचमुच सभी को लोकतंत्र में शामिल करना चाहता है, तो उसे केवल चुनाव के समय दिखावा बंद करना होगा। प्रवासी मजदूरों को छठ या अन्य त्योहारों के दौरान सिर्फ मदद नहीं, बल्कि ऐसी व्यवस्थाओं की जरूरत है, जो उनकी आवाजाही को स्वीकार करें। उनके अधिकारों की रक्षा करें और उनकी बात साल भर सुनी जाए।

इसके लिए रिमोट वोटिंग, पोर्टेबल कल्याण योजनाएं, आसान मतदाता पंजीकरण और प्रवासियों के लिए खास कल्याण संस्थान बनाने होंगे। प्रवासियों को सिर्फ वोटर नहीं, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था, समाज और लोकतंत्र का अहम हिस्सा मानना होगा। जब तक ऐसा नहीं होता, मताधिकार का इस्तेमाल कई लोगों के लिए सपना ही रहेगा।

नम्रता राजू कहती हैं, “प्रवासियों को भारत के चुनावी दायरे में लाना जरूरी है। चाहे वे मेहनत की कमाई घर भेजें या कड़ी धूप में सड़कें बनाएं, प्रवासी देश की रीढ़ हैं और समाज का अहम हिस्सा हैं। उनकी मांगें सुनी जानी चाहिए। किसी भी नीति में उन्हें अनदेखा नहीं करना चाहिए।”

TAGGED:BiharBihar assembly electionscchhath pujaLatest_NewsMigrant workers
Previous Article SIR छत्तीसगढ़, UP सहित देशभर के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में कल से शुरू होगा मतदाता सूची का SIR
Next Article Chaitanya Baghel पूर्व सीएम के बेटे को राहत नहीं, ईडी कोर्ट ने चैतन्य बघेल की जमानत अर्जी की खारिज
Lens poster

Popular Posts

उत्तर भारत में लू का कहर, कुछ राज्यों में जल्द बारिश की उम्मीद

द लेंस डेस्क। उत्तर भारत के कई हिस्सों में भीषण गर्मी और लू ने लोगों…

By पूनम ऋतु सेन

चैम्पियंस ट्रॉफी : 12 साल बाद मिली जीत, टीम इंडिया को सांसदों ने दी बधाई

नई दिल्ली। 12 साल बाद चैम्पियंस ट्रॉफी तीसरी बार जीतने पर सोमवार को संसद के…

By The Lens Desk

छत्तीसगढ़ में IAS अफसरों के कार्यभार में बदलाव, 5 अधिकारियों को सौंपा गया अतिरिक्त प्रभार

रायपुर। छत्तीसगढ़ में भारतीय प्रशासनिक सेवा के 5 अधिकारियों के कार्यभार में वृद्धि की गई…

By नितिन मिश्रा

You Might Also Like

MAUSAM ALERT
देश

भारत में भारी बारिश का कहर, उत्तरकाशी में बादल फटा, राजस्थान में 5 की मौत, कई राज्यों में अलर्ट, जानें अपने राज्य का हाल

By पूनम ऋतु सेन
आईपीएस वाई पूरन कुमार
देश

दलित आईपीएस की सुसाइड के मामले में आईएएस पत्नी ने डीजीपी और एसपी के खिलाफ एफआईआर की करी मांग

By आवेश तिवारी
Odisha Bandh
अन्‍य राज्‍य

ओडिशा बंद : महिला सुरक्षा को लेकर कांग्रेस का हल्‍ला बोल, प्रभारी अजय कुमार लल्लू हिरासत में

By अरुण पांडेय
UDHAMPUR ENCOUNTER PAHALGAM ATTACK
देश

पहलगाम हमले के बाद उधमपुर में सुरक्षाबलों और आतंकियों के बीच मुठभेड़, एक जवान शहीद

By Lens News

© 2025 Rushvi Media LLP. 

Facebook X-twitter Youtube Instagram
  • The Lens.in के बारे में
  • The Lens.in से संपर्क करें
  • Support Us
Lens White Logo
Welcome Back!

Sign in to your account

Username or Email Address
Password

Lost your password?