छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अगुआई वाली भाजपा सरकार ने आखिरकार बिजली बिल माफ करने की योजना का दायरा 100 यूनिट से बढ़ा कर 200 यूनिट कर दिया है, लेकिन यह राहत राज्य की पिछली कांग्रेस सरकार के समय मिल रही राहत से अब भी कम है।
पच्चीस साल पहले नवंबर, 2000 में अपनी स्थापना के समय छत्तीसगढ़ जिस तरह बिजली के मामले में सरप्लस स्टेट था, वैसी स्थिति आज भले न हो, लेकिन देश के एक बड़े बिजली उत्पादक होने के नाते यहां दूसरे राज्यों की तुलना में बिजली के दाम कम ही रहे हैं। कोयला और जलसंपदा से समृद्ध इस प्रदेश में बिजली पैदा करने की अकूत क्षमता है, जिसका दोहन भी किया जा रहा है, और यही वजह है कि बिजली का मुद्दा यहां की सियासत के साथ ही आम लोगों से सीधे जुड़ा रहा है।
2018 में राज्य की सत्ता में आने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार ने बिजली हाफ योजना को अमल में लाते हुए 400 यूनिट तक की खपत पर बिजली बिल आधा कर दिया था। उनके इस फैसले को राज्य की आर्थिक स्थिति के लिए बोझ बताने वालों की भी कमी नहीं थी, लेकिन आम तौर पर इसे जनता से जुड़े फैसले के तौर पर ही देखा गया।
दरअसल भूपेश सरकार की हाफ बिजली योजना का कैसा असर था, यह तब दिखा जब इसी साल अगस्त में राज्य की विष्णुदेव साय सरकार ने उस योजना में संशोधन कर बिजली बिल हाफ करने का दायरा घटाकर न केवल सौ यूनिट कर दिया बल्कि इससे ऊपर एक भी यूनिट होने पर उपभोक्ता पर पूरे बिल का बोझ लाद दिया था। इस कदम से राज्य के निम्न तथा मध्य वर्ग लाखों परिवार प्रभावित हो गए और विरोध की आवाजें मुखर होने लगीं। द लेंस ने अपनी रिपोर्ट्स में मुखरता से इस मुद्दे को उठाया था।
वास्तव में साय सरकार 400 यूनिट से घटाकर 100 यूनिट करने के अपने फैसले को लेकर कोई तार्किक और व्यावहारिक आधार प्रस्तुत नहीं कर सकी। इसके उलट ऐसी खबरें आईं कि यह कदम स्टील इंडस्ट्री को लाभ पहुंचाने के लिए उठाया गया था। यही नहीं, जिस पीएम सूर्य घर योजना के जरिये उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाने के दावे किए गए, उसकी व्यावहारिक स्थिति भी ऐसी नहीं है। इस योजना का लक्ष्य ही 1,30,000 हितग्राहियों तक लाभ पहुंचाना था और फिर इसके जरिये लाभ सब्सिडी के रूप में मिलना था।
यह भी अजीब है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा साय सरकार द्वारा 200 यूनिट तक बिजली बिल माफ करने के फैसले का उसी तरह से जश्न मना रही है, जैसा कि उसने हाल ही में जीएसटी की दरों में की गई कमी के बाद मनाया था!
बिजली की अपनी सियासत है, जैसा कि चुनावों में किसानों और आम उपभोक्ताओं को मुफ्त या सस्ती बिजली देने के वादों से समझा जा सकता है। यह ऊर्जा की बढ़ती चुनौतियों को देखते हुए चिंता का कारण भी होना चाहिए। लेकिन दूसरी ओर हकीकत यह भी है, और जैसा कि छत्तीसगढ़ में देखा जा सकता है कि निजी क्षेत्र की दिग्गज कंपनी अडानी ने एक तरह से कोयला खनन के मामले में वर्चस्व कायम कर लिया है। दरअसल ऐसे में यही सवाल उठता है कि छत्तीसगढ़ के लाखों परिवारों को एक खास उद्योगपति को लाभ पहुंचाने की कीमत क्यों चुकानी चाहिए?

