रायपुर। वो वर्ष 2016 की दिल्ली की एक शाम थी ।
अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस का प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका पत्रकारिता पुरस्कार समारोह था जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य अतिथि थे।
2016 का यह पुरस्कार समारोह कई कारणों से याद किया जाएगा ।
किताबों की श्रेणी में जिस किताब को इस पुरस्कार के लिए चुना गया था वो थी चर्चित लेखक अक्षय मुकुल की किताब – geeta press and the making of Hindu India. इस किताब का हिंदी अनुवाद भी हुआ – गीता प्रेस और हिंदू भारत का निर्माण ।
इस किताब की सराहना करते हुए चर्चित लेखिका अरुंधति रॉय ने लिखा था – ‘…मुकुल हमें हिंदुत्व परियोजना के बीजारोपण से लेकर जनमानस में उसे मजबूत किए जाने के पूरे वाकये से रूबरू करवाते हैं । ’
अरुंधती रॉय की इस टिप्पणी से किताब के तेवर समझे जा सकते हैं ।
इस किताब को श्री मोदी के हाथों पुरस्कार प्राप्त हुआ था । हालांकि अक्षय मुकुल स्वयं पुरस्कार लेने के लिए मौजूद नहीं थे । पुरस्कार लेने किताब के प्रकाशक पहुंचे थे ।
पुरस्कारों में एक श्रेणी थी – Reporting on politics and government
इस श्रेणी में जिन्हें पुरस्कार के लिए चुना गया वे इंडियन एक्सप्रेस के ही पत्रकार आशुतोष भारद्वाज थे।
आशुतोष भारद्वाज तब इस अखबार के छत्तीसगढ़ स्टेट हेड थे और उन्होंने छत्तीसगढ़ में रहते हुए 2015 में जो रिपोर्ट्स तैयार की थीं उस आधार पर निर्णायक मंडल ने उन्हें इस पुरस्कार के लिए चुना था ।
आशुतोष भारद्वाज को जब प्रधानमंत्री श्री मोदी के हाथों पुरस्कार लेने के लिए आमंत्रित किया गया, तब वे वहां थे ही नहीं।
इस दिलचस्प वाकये को समारोह के उस वीडियो में देखा जा सकता है जो आज भी यू ट्यूब पर मौजूद है ।
जब नाम पुकारा गया और आशुतोष भारद्वाज नजर नहीं आए तो उनकी ढूंढ मची। स्वयं पत्र समूह के चेयरमैन विवेक गोयनका उनके बारे में पूछते नजर आ रहे थे ।
तब यह चर्चा थी कि यह एक तरह से आशुतोष भारद्वाज का नरेंद्र मोदी के हाथों पुरस्कार न लेने का निर्णय था। सीधे शब्दों में बहिष्कार ।
2016 के इस समारोह की इन दो घटनाओं की चर्चा तो कम हुई लेकिन सबसे ज्यादा जिस बात की चर्चा थी वो इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक राजकमल झा का आभार वक्तव्य था।

दरअसल उस दिन नरेंद्र मोदी ने एक्सप्रेस समूह के संस्थापक रामनाथ गोयनका के योगदान की चर्चा करते हुए अपने भाषण में पत्रकारिता की विश्वसनीयता को लेकर टिप्पणियां की थीं और कहा था कि पत्रकारिता का स्वरूप अब बदल गया है।
समारोह के अंत में जब राजकमल झा आभार वक्तव्य देने के लिए आए, तो उन्होंने अपनी जिन टिप्पणियों से तालियां बटोरीं, उन्हें एक तरह से श्री मोदी को एक पत्रकार का जवाब ही माना गया ।
श्री झा ने रामनाथन गोयनका के एक चर्चित वाकये का जिक्र किया और बताया कि कैसे जब एक राज्य के मुख्यमंत्री ने उनके संस्थान के एक पत्रकार के काम की तारीफ कर दी थी तो उन्होंने ( रामनाथ गोयनका ने ) उस पत्रकार को काम से ही हटा दिया था ।
राजकमल झा ने कहा था कि सरकार की आलोचना तो किसी पत्रकार के लिए सम्मान की बात है । उन्होंने उस वर्ष पुरस्कारों के लिए रिकॉर्ड संख्या में आईं प्रविष्टियों की जानकारी देते हुए कहा था कि ये उनको जवाब है जो कहते हैं कि अच्छी पत्रकारिता समाप्त हो रही है ।
उस दिन श्री झा ने यह भी कहा था कि अच्छी पत्रकारिता और बेहतर हो रही है जबकि पांच बरस पहले के मुकाबले आज ( वर्ष 2016 पढ़ें ) खराब पत्रकारिता का शोर ज्यादा है।
प्रधानमंत्री के सामने ही पत्रकारिता के हक में कही गईं राजकमल झा की इन बातों को पत्रकारिता के क्षेत्र में एक संपादक के हौसले की तरह दर्ज किया गया और उस दिन के उनके भाषण को आज भी इसी तरह याद किया जाता है ।
अब आते हैं 2025 में ।
दिल्ली की ही 17 नवंबर 2025 की शाम ।
अवसर था रामनाथ गोयनका लेक्चर ( अवॉर्ड नहीं )।
मुख्य अतिथि थे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ।
श्री मोदी ने अपने भाषण में रामनाथ गोयनका की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से टकराहट,तब सरकार की धमकियों के आगे उनके ना झुकने के हौसले से लेकर उनके जयप्रकाश नारायण और नानाजी देशमुख तक से निकट रिश्तों का जिक्र किया ।
उन्होंने याद दिलाया कि रामनाथ गोयनका ने किस तरह जनसंघ की टिकट पर विदिशा से चुनाव भी लड़ा और जीता भी। उन्होंने एक तरह से रामनाथ गोयनका और संघ परिवार की निकटता के साथ ही गोयनका परिवार से अपनी निकटता का भी उल्लेख किया।
अपने भाषण में श्री मोदी ने भारत में तेज विकास का जिक्र किया और कहा कि आज भारत एक emerging market ही नहीं है, एक emerging model भी है।
उन्होंने अपने भाषण में लोकतंत्र की कसौटियों से लेकर बिहार चुनाव के नतीजों तक का जिक्र किया,आपातकाल की चर्चा की ,कांग्रेस पार्टी को आड़े हाथों लिया और अपनी सरकार के कामकाज की खूब सराहना की ,पर इस बार नरेंद्र मोदी ने सीधे पत्रकारिता पर कम बात की।
उन्होंने बस बस्तर में माओवाद के खिलाफ सरकार के अभियान का जिक्र करते हुए बस्तर ओलंपिक का जिक्र किया और कहा – ‘छत्तीसगढ़ का बस्तर, वो आप लोगों का तो बड़ा फेवरेट रहा है। एक समय आप पत्रकारों को वहां जाना होता था, तो प्रशासन से ज्यादा दूसरे संगठनों से परमिट लेनी होती थी, लेकिन आज वही बस्तर विकास के रास्ते पर बढ़ रहा है। मुझे नहीं पता कि इंडियन एक्सप्रेस ने बस्तर ओलंपिक को कितनी कवरेज दी, लेकिन आज रामनाथ जी ये देखकर बहुत खुश होते कि कैसे बस्तर में अब वहां के युवा, बस्तर ओलंपिक जैसे आयोजन कर रहे हैं। ’
प्रधानमंत्री ने बस्तर की उस पत्रकारिता पर इंडियन एक्सप्रेस के उस कार्यक्रम में यह टिप्पणी की, जिसके पत्रकार आशुतोष भारद्वाज ने छत्तीसगढ़ में रहते हुए बस्तर के ढेर सारे मुद्दों को इसी अखबार के जरिए राष्ट्रीय पटल पर उठाया बल्कि उन्होंने बस्तर की अपनी अनगिनत यात्राओं के दौरान की रिपोर्टिंग के आधार पर एक महत्वपूर्ण किताब भी लिखी – The death script .

इस बार भी दिल्ली में प्रधानमंत्री के भाषण पर तालियां बजीं ।
लेकिन इस बार जो नहीं था वो इंडियन एक्सप्रेस के इस महत्वपूर्ण माने जाने वाले आयोजन में किसी भी रूप में अखबार के चीफ एडिटर का वक्तव्य !
इस बार जो नहीं था वो इंडियन एक्सप्रेस के इस व्याख्यान में पत्रकारिता का पक्ष , जिसकी अपेक्षा इस अखबार के पाठक समूह को होती है ।
इसे लेकर पत्रकारिता के प्रेक्षक हैरान थे और इसे एक्सप्रेस समूह की अपनी परम्परा के विपरीत मान रहे हैं।
सवाल उठा कि ऐसा क्या इसलिए हुआ कि आज भी इंडियन एक्सप्रेस के चीफ एडिटर राजकमल झा ही हैं, जिन्होंने 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को , पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर उनकी टिप्पणियों के लिए , उसी मंच से हौसले के साथ जवाब दे कर तालियां बटोरीं थीं ?
राजकमल झा दर्शक दीर्घा में तो नजर आए थे।खुद प्रधानमंत्री ने अपने भाषण की शुरुवात में श्री झा के नाम का उल्लेख भी किया लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की ओर से मंच पर स्वागत भाषण से लेकर आभार प्रदर्शन तक अगर कोई मौजूद था तो वो था सिर्फ प्रबंधन।
- रुचिर गर्ग , जर्नलिस्ट, The Lens

