23 साल पहले 28 फरवरी 2002 को गुजरात दंगों के दौरान गुलबर्गा सोसाइटी पर हमला हुआ था। हमलों में सोसायटी के अधिकांश घर जला दिए गए थे और कांग्रेस के भूतपूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 लोग मारे गए थे। इन दंगों में जहां हजारों लोगों की जानें गईं और लाखों लोग विस्थापित हुए गुलबर्गा सोसायटी की वारदात सबसे अहम है। यह घटना तत्कालीन मुख्यमंत्री और राज्य सरकार की भूमिका को रेखांकित करती है। लेकिन, इस विभत्स घटना का सबसे महत्वपूर्ण पहलू श्रीमती जाकिया जाफ़री की न्याय के लिए लड़ाई है। इस घटना के पीछे का षड्यंत्र और राज्य की संलिप्तता को उजागर करने और सही जांच की मांग के लिए 22 साल लंबी न्यायिक लड़ाई लड़ी। इसी साल 1 फरवरी को उनकी मृत्यु हुई और उससे पहले उन्होंने अपनी इस लड़ाई को असफल होते हुए देखा। अपनी पूरी दुनिया को खोने के बावजूद उन्होंने अपने देश और उसकी न्यायप्रियता पर विश्वास बनाये रखा। बगैर किसी बदले की भावना या समाज के लिए तल्खी के न्याय की सर्वोच्च नैतिक सत्ता को बनाए रखने की कोशिश करते रहना एक असाधारण मानवीय उदाहरण है। संतत्व और देशप्रेम की ऐसी मिसाल और उसकी ऐसी अवहेलना हमारे सामूहिक चेतना के लिए प्रश्न बने रहेंगे और इस पर सामूहिक प्रायश्चित करने की आवश्यकता है।
सामूहिक चेतना पर दाग

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