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अन्‍य राज्‍य

गुलबर्ग सोसाइटी केस : 23 साल बाद भी अधूरे न्याय की कहानी

पूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन
Byपूनम ऋतु सेन
पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की...
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Published: February 27, 2025 7:45 PM
Last updated: April 18, 2025 9:35 AM
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द लेंस डेस्क। दिन 28 फरवरी, साल 2002, स्थान – अहमदाबाद, गुजरात। ये तारीख और जगह भारत के उस काले अध्याय को उजागर करती है जिसको गुजरे 23 साल हो चुके हैं। गुलबर्ग सोसाइटी, गुजरात के अहमदाबाद में स्थित है जो कभी एक शांत मुस्लिम बहुल आवासीय कॉलोनी हुआ करती थी, लेकिन 23 साल बाद आज ये जगह वैसी नहीं रही है। यहां के बंद कमरे, सूने मकान, दर्द बयां करती सड़कें आज भी भारत के इतिहास में एक दर्दनाक और विवादास्पद घटना के रूप में जानी जाती है।

आख़िर क्या हुआ था उस दिन ?

गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में आग लगाने की घटना हुई, जिसमें 59 लोग मारे गए। इस घटना ने गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा की आग भड़का दी। अगले ही दिन, 28 फरवरी को सुबह 9 बजे के आसपास चमनपुरा इलाके में गुलबर्ग सोसाइटी के बाहर हजारों की भीड़ जमा हो गई। दोपहर तक यह भीड़ हिंसक हो चली। उग्र भीड़ ने सोसाइटी की दीवारें तोड़ दी, घरों में आग लगा दी और वहां के निवासियों पर बेरहमी से हमला किया। छह घंटे तक चले इस हमले में कम से कम 69 लोग मारे गए, जिनमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी शामिल थे। 35 से ज्यादा लोगों को जिंदा जला दिया गया या काटकर मार डाला गया, जबकि 31 लोग लापता हो गए, जिन्हें बाद में मृत मान लिया गया।

जाफरी की आखिरी लड़ाई, जकिया का निधन

एहसान जाफरी उस दिन न सिर्फ अपने परिवार, बल्कि सोसाइटी के कई निवासियों के लिए ढाल बन गए। उन्होंने अपने घर में लोगों को शरण दी और पुलिस से लेकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी तक को फोन कर मदद की गुहार लगाई। लेकिन समय पर सहायता न मिलने के कारण उन्हें भीड़ ने बेरहमी से मार डाला और जला दिया। उनकी पत्नी जाकिया जाफरी ने इसके बाद न्याय के लिए दो दशक से ज्यादा की लड़ाई लड़ी। 2006 में दायर उनकी याचिका में बड़े अधिकारियों पर साजिश के आरोप लगाए गए, लेकिन एसआईटी और कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया। जकिया का निधन भी इसी साल 1 फरवरी को 87 साल की उम्र में हो गया, लेकिन जीते जी उन्हें न्याय नहीं मिल पाया।

गुलबर्ग नरसंहार की कानूनी जंग

इस मामले में पहली एफआईआर मेघानी नगर पुलिस स्टेशन में दर्ज हुई, जिसमें 66 लोग आरोपी बनाए गए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर साल 2008 में एसआईटी ने जांच शुरू की। पूर्व सीबीआई प्रमुख आर.के. राघवन इस विशेष जांच दल के अध्यक्ष बनाए गए। एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर 2 जून 2016 को अहमदाबाद की विशेष अदालत ने 24 लोगों को दोषी ठहराया। 11 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई, 36 को बरी कर दिया गया। बरी होने वालों में बीजेपी के स्थानीय नेता बिपिन पटेल भी थे। इस बीच पीड़ितों और कार्यकर्ताओं ने पुलिस पर लापरवाही और सबूतों से छेड़छाड़ का आरोप भी लगाया जो देशभर में चर्चा का विषय बन गया था। इंस्पेक्टर के.जी. इरडा पर भी सवाल उठे, लेकिन उन्हें बरी कर दिया गया। जून 2022 में एसआईटी जांच रिपोर्ट को सही मानते हुए 60 से अधिक लोगों को गुजरात दंगों के मामले में क्लीनचिट दे दी गई।

गुलबर्ग सोसाइटी: एक छोटी सी दुनिया का अंत

29 बंगलों और 10 फ्लैटों वाली यह सोसाइटी मुस्लिम धर्म को मानने वाले उच्च-मध्यम वर्ग के परिवारों का बसेरा हुआ करती थी। एक पारसी परिवार को छोड़कर, यहां रहने वाले सभी लोग मुस्लिम थे। उस दिन की हिंसा ने इस छोटी सी दुनिया को तबाह कर दिया। आज यह जगह खंडहरों और यादों के बीच खामोश खड़ी है।

आज भी क्यों है चर्चा में?

23 साल बाद भी गुलबर्ग सोसाइटी का जिक्र पुलिस की भूमिका, धार्मिक ध्रुवीकरण और न्यायिक प्रणाली की खामियों को उजागर करता है। जकिया जाफरी की मृत्यु के बाद यह सवाल फिर उठ रहा है कि क्या पीड़ितों को कभी पूरा न्याय मिलेगा? क्या उस दिन की सच्चाई कभी पूरी तरह सामने आएगी?

TAGGED:ehsaan jafrigodharagujrat riotsgulberg societyjakiya jafri
Byपूनम ऋतु सेन
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पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की उत्सुकता पत्रकारिता की ओर खींच लाई। विगत 5 वर्षों से वीमेन, एजुकेशन, पॉलिटिकल, लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों पर लगातार खबर कर रहीं हैं और सेन्ट्रल इण्डिया के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अलग-अलग पदों पर काम किया है। द लेंस में बतौर जर्नलिस्ट कुछ नया सीखने के उद्देश्य से फरवरी 2025 से सच की तलाश का सफर शुरू किया है।
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