रायपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट (CG High Court) ने सोमवार को मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्त के पदों की चयन प्रक्रिया पर लगी रोक हटा दी है। न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार व्यास की एकलपीठ ने कहा कि सर्च कमेटी द्वारा तय 25 वर्ष का अनुभव और 65 वर्ष से कम आयु की पात्रता शर्त वैध और तार्किक है।
इसके साथ ही कोर्ट ने सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए राज्य सरकार को नियुक्ति प्रक्रिया जारी रखने की अनुमति दी।
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने अक्टूबर के आखिरी हफ्ते में सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए देशभर में केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) और राज्य सूचना आयोगों में खाली पड़े आयुक्तों के पदों पर नियुक्ति को लेकर अलग-अलग राज्यों को निर्देश दिए थे।
सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट को 4 हफ्तों के भीतर अंतिम निपटारा करने के आदेश दिए थे। इसके बाद हाई कोर्ट में 11 नवंबर को सुनवाई हुई जिसके बाद सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की राह खोल दी गई।
नियुक्ति प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग वाली 5 याचिकाओं की एक साथ सुनवाई के बाद यह फैसला आया। इनमें याचिकाकर्ता अनिल तिवारी, राजेन्द्र कुमार पाध्ये और डॉ. दिनेश्वर प्रसाद सोनी सहित अन्य आवेदक थे।
छत्तीसगढ़ में सूचना आयुक्तों के पदों के लिए आवेदनकर्ताओं ने पात्रता शर्तों को चुनौती दी थी। याचिकाकर्ताओं ने सर्च कमेटी के नियुक्ति प्रक्रिया के बीच में 25 साल अनुभव और 65 वर्ष आयु सीमा तय किए जाने की गलत बताया था।
याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि चयन प्रक्रिया के बीच में नियम बदले गए।
इस पर न्यायालय ने कहा कि सर्च कमेटी द्वारा 25 वर्ष अनुभव की पात्रता तय करना संवेदनशील पदों की प्रकृति के अनुसार उचित और तार्किक है। यह चयन प्रक्रिया के बीच ‘रूल ऑफ गेम्स’ बदलना नहीं, बल्कि आवेदनों की छंटनी के लिए अपनाया गया व्यावहारिक तरीका है।
यह मामला उस समय सामने आया जब राज्य सरकार ने सूचना आयुक्तों के पदों के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे। याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि पात्रता मानदंड बीच में बदले गए। हालांकि, राज्य का कहना था कि यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सर्च कमेटी द्वारा लिया गया है।
हाई कोर्ट के इस फैसले के बाद राज्य सरकार सूचना आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकेगी, जो 29 मई 2025 के अंतरिम आदेश के कारण रुकी हुई थी।
छत्तीसगढ़ में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति का क्या था विवाद?
दरअसल, मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया चलाई जा रही थी। याचिकाकर्ताओं ने इन पदों के लिए आवेदन किया था, लेकिन बाद में राज्य सरकार की सर्च कमेटी ने यह तय किया कि केवल 25 वर्ष या उससे अधिक प्रशासनिक अनुभव वाले उम्मीदवारों को ही पात्र माना जाएगा। इसके अलावा 65 वर्ष से अधिक आयु वाले उम्मीदवार अयोग्य होंगे।
इस पर याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि यह मापदंड आवेदन प्रक्रिया के बीच में जोड़ा गया, जिससे पात्र उम्मीदवारों को मनमाने ढंग से बाहर कर दिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत में तर्क दिया कि यह ‘रूल ऑफ गेम्स बदलने’ जैसा है, जो कानूनी रूप से अनुचित है। RTI अधिनियम की धारा 15(5) और 15(6) में ऐसी कोई पात्रता नहीं दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के अंजली भारद्वाज बनाम भारत संघ मामले में कहा गया था कि शॉर्टलिस्टिंग के मानक पहले से सार्वजनिक होने चाहिए। इसलिए चयन प्रक्रिया रद्द की जाए या उन्हें साक्षात्कार में शामिल होने की अनुमति दी जाए।
इस पर राज्य शासन की ओर से कहा गया कि चयन प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुरूप की गई है। सर्च कमेटी को अधिकार है कि वह अधिक आवेदनों की स्थिति में शॉर्टलिस्टिंग करे। 25 वर्ष का अनुभव तय करना संवेदनशील पदों की प्रकृति के अनुसार उचित है। किसी भी उम्मीदवार का चयन ‘अधिकार’ नहीं है, केवल विचार किए जाने का अवसर होता है।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास ने अपने आदेश में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों जैसे 2025 का तेज प्रकाश पाठक, 2019 का अंजली भारद्वाज, 1994 का नवनीत कुमार और 2009 के त्रिदिप कुमार दिंगाल में यह स्पष्ट किया गया है कि शॉर्टलिस्टिंग एक वैध प्रक्रिया है, जब तक वह तार्किक, पारदर्शी और गैर-भेदभावपूर्ण हो।
कोर्ट ने कहा कि सर्च कमेटी द्वारा 25 वर्ष के अनुभव की शर्त लगाना, पद की संवेदनशीलता को देखते हुए, व्यावहारिक और उचित निर्णय है। यह चयन प्रक्रिया के बीच नियम बदलना नहीं, बल्कि छंटनी का एक प्रशासनिक तरीका है।
अपने आदेश में कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने यह नहीं दिखाया कि इससे उन्हें वास्तविक नुकसान या पक्षपात हुआ।

