अमेरिका के सबसे बड़े शहर न्यूयॉर्क के मेयर पद के चुनाव में जीत दर्ज कर 34 बरस के भारतवंशी जोहरान ममदानी ने इतिहास ही नहीं रचा है, बल्कि वैश्विक राजनीति में एक हलचल पैदा कर दी है। जानी-मानी भारतीय फिल्मकार मीरा नायर और मुंबई में जन्मे मुस्लिम विद्वान महमूद ममदानी के बेटे जोहरान ने 2018 में अमेरिका नागरिकता हासिल करने के महज सात साल के भीतर यह करिश्मा कर दिखाया है।
उनकी जीत इसलिए भी बड़ी है, क्योंकि खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने धमकाने वाले अंदाज में उन्हें चुनौती दी थी और उन्हें कम्युनिस्ट और यहूदी विरोधी करार दिया था।
अपने सोशलिस्ट विचारों के लिए जाने-जाने वाले ममदानी ने इस जीत के जरिये डोनाल्ड ट्रंप की संकीर्ण राष्ट्रवादी नीतियों को चुनौती दी है। वहीं यह भी साफ है कि अपने दूसरे कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप जिस तरह से अमेरिका में रह रहे दूसरे देशों के लोगों खासतौर से एशियाई मूल और के लोगों और मुस्लिमों को सीधी चुनौती दे रहे हैं, उसे देखते हुए ममदानी का उनके साथ टकराव तय है।
ममदानी ने न्यूयॉर्कवासियों के लिए सस्ते आवास, फ्री बस सेवा और पांच साल तक के बच्चों के लिए सार्वभौमिक स्वास्थ्य सुरक्षा का वादा किया है और साफ है कि इस शहर के लोगों ने उन पर भरोसा जताया है। न्यूयॉर्क के मेयर के रूप में ममदानी को इस शहर के भारी-भरकम बजट के प्रबंधन की जिम्मेदारी निभानी है।
लेकिन वास्तविकता यह भी है कि उनका इस पद तक पहुंचना सिर्फ एक प्रशासनिक मामला नहीं है। इसके दूरगामी संदेश हैं, जिन्हें दीवार पर लिखी इबारत की तरह पढ़ा जा सकता है। इसका व्यापक असर अमेरिका में इस्राइल और फलस्तीन के टकराव पर पड़ सकता है। इससे उन आवाजों को ताकत मिल सकती है, जिनका यकीन इस्राइल की निरंकुशता और विस्तारवादी नीति के बरक्स फलस्तीन की व्यापक स्वायत्तता में है।
जहां तक भारत की बात है, तो निश्चय ही एक भारतवंशी का इस मुकाम तक पहुंचना उन उदारों विचारों की जीत भी है, जिनका यकीन धर्मनिरपेक्षता और सौहार्द में है। ममदानी ने अपनी जीत के बाद उत्साहित भीड़ को संबोधित करते हुए जिस तरह से प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को याद किया है, वह सचमुच ऐतिहासक क्षण है, जिसे रेखांकित किया जाना जरूरी है।
खासकर इसलिए भी, क्योंकि 2014 में सत्ता में आने के बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू की छवि को मलिन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
ममदानी ने पंडित नेहरू के 14-15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को दिए गए ऐतिहासिक भाषण ‘नियति से साक्षात्कार’ के अंश को दोहराते हुए कहा, ‘इतिहास में कभी कभी ही ऐसा क्षण आता है, जब हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाते हैं, जब एक युग समाप्त होता है और जब एक लंबे समय से दबाई गई राष्ट्र की आत्मा अपनी अभिव्यक्ति पाती है।‘ पंडित नेहरू को इस तरह याद करने वाले ममदानी वाकई एक उम्मीद बनकर सामने आए हैं।

