रायपुर। छत्तीसगढ़ की प्रसिद्ध पंडवानी गायिका तीजन बाई (TEEJAN BAI) को बेहतर इलाज के लिए 3 नवंबर को रायपुर एम्स लाया गया था, दरअसल तीजनबाई बीते कुछ वर्षों से बीमार चल रहीं हैं।
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1 नवम्बर को अपने रायपुर दौरे के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीजन बाई की बहु वेणु देशमुख को फोनकर उनके स्वास्थ्य की जानकारी ली थी, जिसके बाद प्रशासन ने सतर्कता बरतते हुए बेहतर इलाज के लिए परिवार वालों से सम्पर्क किया था।
इसके बाद उन्हें रूटीन चेकअप के लिए एम्स रायपुर लाया गया था, इसके बाद द लेंस ने तीजनबाई के परिवार से सम्पर्क किया।बातचीत में पता चला कि उन्हें भिलाई चरोदा नगर निगम क्षेत्र गनियारी में स्थित गांव के घर में ले जाया गया है। वहां पहुंचकर हमने परिवार वालों से बात की और उनका हालचाल जाना।
तीजनबाई की बहु वेणु देशमुख ने सभी पहलुओं पर बात की। प्रशासनिक सहयोग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बातचीत का ज़िक्र भी किया। बातचीत के दौरान उन्होंने रोजगार या परिवार में से किसी को सरकारी नौकरी दिलाने की अपील की, क्योंकि 32 लोगों का परिवार तीजनबाई द्वारा पंडवानी गायन से चल रहा था। लेकिन, अब पारिवारिक खेती से ही परिवार का भरण पोषण किया जा रहा है।
ऐसे में स्वास्थ्य का देखभाल करना परिवार के लिए भी मुश्किल हो रहा है। हालांकि तीजनबाई को मिली सहयोग राशि से इलाज का खर्च उठाया जा रह है और हर महींने 5 हजार रुपये पेंशन मिल रहा है।
नहीं है अगली पीढ़ी पंडवानी गायन में
इसके अलावा द लेंस ने तीजनबाई की छोटी बहन रम्भा देवी जो खुद भी पहले पंडवानी गायन करती रहीं हैं। उनसे भी पंडवानी गायन और पंडवानी के भविष्य के बारे में जाना। उनका कहना था की पंडवानी अब धीरे धीरे खत्म होते जा रहा है और लोग अब इस कला से मुँह मोड़ते जा रहें हैं।
परिवार से भी अब कोई पंडवानी गायन में आगे नहीं आया ये रूचि का विषय है और दिखने में जितना आसान है उतना है नहीं। अब इसकी प्रसिद्धि भी उस तरह नहीं रही है जैसे पहले के समय में हुआ करता था।
तीजनबाई की उपलब्धियां
तीजनबाई ने महाभारत की कथाओं को अपनी आवाज दी और दुनिया भर में मशहूर कर दिया। उनकी जीवन यात्रा को साल दर साल देखें तो संघर्ष से शुरू होती है। 1956 में, दुर्ग जिले के गनीयारी गांव में एक साधारण परिवार में उनका जन्म हुआ। बचपन से ही उनके नाना की महाभारत की कथाओं ने उन्हें प्रेरित किया जो बाद में उनकी कला का आधार बनीं।
फिर आया 1968 का साल, मात्र 12 साल की उम्र में उनका विवाह हो गया लेकिन पांडवानी गायन के जुनून ने उन्हें अपनी ही जनजाति से निष्कासित कर दिया। वे अकेली झोपड़ी में रहने लगीं और संघर्ष की इस राह पर कदम रखा।
अगले ही साल, 1969 में 13 साल की छोटी उम्र में उन्होंने अपना पहला सार्वजनिक मंचन किया। चंद्रखुरी गांव में ‘कपालिक’ शैली में पांडवानी गाकर उन्होंने 10 रुपये कमाए और इतिहास रच दिया और किसी महिला के द्वारा इस शैली में पहली बार गायन किया गया।
1970 के दशक में उनकी प्रसिद्धि पड़ोसी गांवों तक फैल गई। त्योहारों और खास मौकों पर निमंत्रण आने लगे। वे धीरे-धीरे लोकप्रिय होती गईं।
1980 के दशक में आया जीवन का टर्निंग पॉइंट। मशहूर रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उनकी प्रतिभा को पहचाना। वे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने प्रदर्शन करने पहुंचीं।
यहीं से शुरू हुईं अंतरराष्ट्रीय यात्राएं इंग्लैंड, फ्रांस, स्विट्जरलैंड, जर्मनी, तुर्की जैसे देशों में वे भारत की सांस्कृतिक राजदूत बनीं। इसी दौर में दूरदर्शन के लोकप्रिय धारावाहिक ‘भारत एक खोज’ में उन्होंने महाभारत के दृश्यों को अपनी आवाज दी।
1985 में फ्रांस से लौटकर उन्होंने भिलाई स्टील प्लांट में मास्टर-रोल मजदूर के रूप में नौकरी शुरू की, लेकिन कला को कभी नहीं छोड़ा। फिर 1988 में आया पहला बड़ा सम्मान।
भारत सरकार ने उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से नवाजा कला के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए। 1995 में मिला संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार भारत की राष्ट्रीय संगीत, नृत्य और नाटक अकादमी का यह सम्मान उनकी कला की मुहर लगा गया।
2003 में पद्म भूषण पुरस्कार मिला, साथ ही साहित्य में मानद डॉक्टरेट डिग्री भी मिली। उनकी उपलब्धियां सांसें लेने लगीं। 2009 में फ्रांस में एक प्रमुख प्रदर्शन ने फिर से दुनिया को चौंकाया।
2018 में जापान का प्रतिष्ठित फुकुओका प्राइज मिला जो आदिवासी महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए था।
इसके बाद 2019 में पद्म विभूषण राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने 16 मार्च को प्रदान किया।
तीजनबाई की यह यात्रा सिर्फ एक कलाकार की नहीं, बल्कि संघर्ष, साहस और संस्कृति की संरक्षक की है। वे कई वर्षों तक युवाओं को पांडवानी सिखाती रहीं और भिलाई प्लांट में काम करते हुए भी अपनी धुन पर थिरकती रहीं।
तीजनबाई से मुलाक़ात के दौरान उन्होंने द लेंस के माइक को पकड़ा और शायद कुछ बोलने की कोशिश कर रहीं थी। लेकिन, पैरालाइज्ड होने की वजह से कुछ बोल नहीं पा रहीं थीं। फिलहाल उन्हें बेड रेस्ट में रखा गया है और परिवार में ही देखभाल किया जा रहा है। हालांकि डॉक्टरों की टीम परिवार के साथ सम्पर्क में है और बेहतर इलाज के प्रयास में है।

