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लेंस संपादकीय

गजा में इस्राइल का ताजा हमलाः संघर्ष विराम के नाम पर छलावा

Editorial Board
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Published: October 29, 2025 8:41 PM
Last updated: October 29, 2025 9:05 PM
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Israel Gaza conflict
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की पहल पर तीन हफ्ते पहले इस्राइल और हमास के बीच हुए संघर्ष विराम को लेकर जो आशंकाएं जताई जा रही थीं, दुर्भाग्यपूर्ण तरीके से वह सच साबित हो रही हैं।

इस कथित संघर्ष विराम के लागू होने के महज तीन हफ्ते बाद ही इस्राइल के गजा पर किए गए भीषण हमले में सौ से ज्यादा लोग मारे गए हैं, जिनमें 46 बच्चे शामिल हैं।

सात अक्टूबर, 2023 को हमास के इस्राइली नागरिकों पर किए गए हमले और अपहरण के बाद बीते दो सालों में इस्राइल के हमले का आसान निशाना बच्चे और महिलाएं ही बनीं हैं। इस युद्ध ने गजा को भीषण मानवीय संकट में डाल दिया है और ताजा हमले से साफ है कि संघर्ष विराम सिर्फ छलावा ही साबित हुआ है।

गजा और फलस्तीनियों को लेकर इस्राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के इरादों में कोई फर्क नहीं आया है। जबकि होना तो यह चाहिए था कि संघर्ष विराम के बाद इस क्षेत्र में इस्राइल-फलस्तीन विवाद के टिकाऊ समाधान के लिए अनुकूल परिस्थितियां बनाई जातीं।

दरअसल जिस तरह से डोनाल्ड्र ट्रंप ने शांति के नोबेल की चाहत में आनन-फानन में संघर्ष विराम का ऐलान किया, उससे ही साफ था कि वह जैसे-तैसे कुछ समय तक हिंसा को टालना चाहते हैं।

इस मामले में यह भी अहम है कि अमेरिका की भूमिका इसमें तटस्थ नहीं रही है, डोनाल्ड ट्रंप और नेतन्याहू एक दूसरे के सहयोगी हैं। वह कह चुके हैं कि इस्राइल को बदला लेने का पूरा हक है। ऐसे में क्या यह याद दिलाने की जरूरत है कि फलस्तीन की समस्या की जड़ ही इस्राइल की विस्तारवादी नीति है, जिसके चलते वह पूरे गजा पर कब्जा करना चाहता है।

यह भी दोहराने की जरूरत नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप के शांति प्रयास में 1993 के ओस्लो-1 समझौते जैसी ईमानदारी भी कहीं नजर नहीं आई, जिसमें दो राष्ट्र सिद्धांत को न केवल मंजूरी दी गई थी, बल्कि इसका रोड मैप भी सामने रखा गया था। यह दुखद है कि यह समझौता कहीं बहुत पीछे छूट गया है, जिसमें इस्राइल को 1967 के छह दिनों के युद्ध के दौरान कब्जा किए गए क्षेत्रों से वापस लौटना था।

दरअसल पश्चिम एशिया के इस क्षेत्र में शांति स्थापित किए जाने के लिए जिस तरह की ईमानदारी की दरकार है, वैसा कुछ हाल के प्रयासों में नजर नहीं आया है।

यह भी सच है कि हाल के समय में इस्राइल की ताकत तो बढ़ती गई है, दूसरी ओर फलस्तीनी न केवल कमजोर हुए हैं, उनके सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। इस्राइल पर अंकुश लगाए बिना वहां शांति की कल्पना नहीं की जा सकती।

यह भी पढ़ें : सीजफायर के बाद भी गजा पर  इजरायली हमले, 104 लोगों की मौत

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