नई दिल्ली। रविवार को कांग्रेस पार्टी ने अपने स्टार प्रचारकों की सूची जारी कर दी है। तमाम केंद्रीय नेता बिहार पहुंच चुके हैं लेकिन जो सवाल सबके मुंह पर है वो यह है कि बिहार के रणक्षेत्र में कांग्रेस क्यों नजर नहीं आ रही है? राहुल गांधी क्यों नजर नहीं आ रहे हैं?
दक्षिण अमेरिकी यात्रा के बाद से राहुल गांधी सोशल मीडिया पर इक्का दुक्का की गई पोस्ट्स के अलावा चुनावी जमीन से पूरी तरह गायब हैं। राहुल गांधी का हाइड्रोजन बम कब फूटेगा, इसकी भी कोई जानकारी नहीं है। नतीजा यह है कि कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता बेहद हतोत्साहित और निराश है वहीं महागठबंधन के राजद समेत अन्य सदस्य भी खुश नहीं है।
नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने आखिरी बार 1 सितंबर को बिहार का दौरा किया था, जब उन्होंने पटना में अपनी ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ की समापन रैली को संबोधित किया था। उसके बाद से वो नदारद हैं।
सर्वे एजेंसी पीपुल पल्स के अमित पांडे कहते हैं कि राहुल ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ ने जनमत को महागठबंधन की ओर मोड़ दिया है, लेकिन उसके बाद से लगभग दो माह तक राहुल गांधी ने बिहार की सुध नहीं ली है जिससे स्थिति खराब हुई है। राहुल अगर पटना में होते या हस्तक्षेप करते तो उस कदर विवाद नहीं होता जैसा अभी हो रहा है।
गजब यह है कि बीच में राहुल गांधी दिल्ली में दीपावली के मौके पर इमरती बनाते नजर आए। एक दलित कांग्रेसी नेता कहते हैं कि कितना अच्छा होता कि दिल्ली में इमरती की जगह राहुल बिहार में वहां की कुछ सुप्रसिद्ध मिठाइयों को बनते नजर आते।
बिहार प्रभारी पर चौतरफा हमला
बिहार में असंतुष्ट कांग्रेस नेताओं ने पार्टी के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु को तुरंत बदलने की मांग की है। उन्होंने सार्वजनिक रूप से अल्लावरु पर ‘कॉर्पोरेट एजेंट’ और ‘भाजपा के वैचारिक स्रोत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्लीपर सेल’ होने का आरोप लगाया है।
गुरुवार को विरोध प्रदर्शन के दौरान, इन नेताओं ने अपनी बाहों पर काले रिबन बाँधे और हाथों में तख्तियाँ लिए हुए थे जिन पर लिखा था, ‘टिकट चोर, बिहार छोड़।’ यह नारा राहुल गांधी के ‘वोट चोर, गद्दी छाेड़’ नारे से मिलता-जुलता है, जो अब एक रैप गीत भी बन गया है। हालांकि व्यापक विरोध के बावजूद लालू प्रसाद यादव और तेजस्वी से बातचीत के लिए राहुल गांधी ने राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कृष्णा को ही बिहार भेजा था।
राजद लड़ रहा असल लड़ाई
यह कहने में कोई दो राय नहीं है कि बिहार की असल लड़ाई राजद लड़ रहा है कांग्रेस और वाम दल सहयोगियों की भूमिका में है लेकिन यह भी सच है कि इस पूरी लड़ाई के रवानी राहुल गांधी की वजह से ही आई थी। जनता राहुल गांधी को सुनना चाहती है मगर राहुल अब तक नामौजूद रहे हैं।
चुनाव समीक्षक संजीव चंदन कहते हैं कि यह वह वक्त था जब राहुल गांधी को बिहार के गांवों की खाक छाननी थी राजीव गांधी होते तो यही करते। संजीव कहते हैं कि शायद कांग्रेस यह चुनाव खोने को तैयार है।
पार्टी के नेताओं की शिकायत को मंच नहीं
वरिष्ठ कांग्रेस नेता आनंद माधब ने 23 अक्टूबर को संवाददाताओं से कहा, ‘हम चाहते हैं कि हमारी आवाज राहुल गांधी तक पहुंचे। पार्टी में शिकायतों के निवारण के लिए कोई मंच नहीं है। इसलिए हम आपसे बात कर रहे हैं।’
उन्होंने कहा, ‘कृष्णा अल्लावरु ने बिहार विधानसभा चुनावों में पार्टी की संभावनाओं को चौपट कर दिया है और राहुल गांधी की दो सप्ताह लंबी मतदाता अधिकार यात्रा से बनी गति को धूमिल कर दिया है। हम उन्हें तुरंत हटाने की मांग कर रहे हैं ताकि नुकसान की भरपाई की जा सके।’
29 से चुनाव मैदान में उतरेंगे राहुल
यह समाचार लिखने तक जानकारी ली थी कि राहुल 29 अक्टूबर से प्रचार में उतरेंगे। साथ में सोनिया गांधी और प्रियंका भी होंगे। लेकिन लम्बा वक्त बीत चुका है, वोटर सेट हो चुके हैं। ऐसे में अंतिम समय में राहुल गांधी की मौजूदगी से कितना परिवर्तन आएगा यह देखने वाली बात होगी।
पटना वूमेंस कॉलेज की प्रोफेसर ज्योति पांडे कहती है कि कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि वह जीतते हुए दिख नहीं रही है जबकि दिखना भी जरूरी है। एक तरफ नरेंद्र मोदी और बीजेपी के तमाम वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री बिहार में कैंप कर रहे,कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति के नेता कहीं नजर नहीं आ रहें

