नेशनल ब्यूरो। स्वतंत्रता आंदोलन की शानदार विरासत, अमेरिका की प्रतिष्ठित जॉर्ज वाशिंगटन यूनिवर्सिटी से एमबीए की पढ़ाई, 28 साल के उम्र में अमेरिका में जल आपूर्ति आयोग का निदेशक बनना, भारत लौटने के बाद 33 साल की उम्र में नीतीश कुमार के सलाहकार के तौर पर काम करना, नीतिगत मुद्दों पर गहरी पकड़ होना, बिहार पॉलिसी डॉयलॉग जैसे कार्यक्रम आयोजित करवाना ये बातें बेशक आपको प्रभावित कर सकती हैं लेकिन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चल रही आरजेडी को प्रभावित करने के लिये काफी नहीं हैं। अगर होती तो पूर्वी चंपारण के मधुबन विधानसभा सीट से शाश्वत गौतम का टिकट नहीं काटा जाता।
राजपूत समाज से आने वाले शाश्वत गौतम का टिकट काटा जाना इसलिये महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि मधुबन विधानसभा में राजपूतों का वोट ही निर्णायक माना जाता है। गौतम के नाम का प्रस्ताव आरजेडी के संस्थापक जगदानंद सिंह और उनके बेटे सांसद सुधाकर सिंह ने दिया था फिर भी आरजेडी नेतृत्व ने उन्हें विधासभा चुनाव का प्रत्तयाशी बनाने के योग्य नहीं समझा। अब पार्टी में इसको लेकर भारी नाराजगी है।
जानकारी मिली है कि गौतम का टिकट काटकर जिस संध्या रानी कुशवाहा को टिकट दिया गया है उनकी राजनीतिक हैसियत गौतम के मुकाबले काफी कम मानी जाती है। यहां तक कि संध्या रानी तो टिकट मिलने से पहले तक आरजेडी की सदस्य तक नहीं थीं
इतना ही नहीं चर्चा है कि संध्या रानी का देवर स्थानीय भाजपा विधायक के लिए ठेकेदारी का काम भी करता है। पिछली बार इस सीट पर बीजेपी के रणधीर सिंह ने 5878 वोट से जीत हासिल की थी जबकि आरजेडी के मदन कुमार दूसरे नंबर पर थे।
पहले माना जा रहा था गौतम की टिकट पक्की है लेकिन अंतिम वक्त में उनका नाम तेजस्वी यादव के सलाहकारों के हस्तक्षेप के बाद काट दिया गया। गौतम की पहचान एक प्रबुद्ध, कर्मठ और एक ऐसे युवा समाजवादी नेता के तौर पर की जाती है जिसकी निगाह नीति, तकनीक और अर्थव्यवस्था जैसे क्षेत्रों में भी जमी रहती है।
गौतम के दादा स्वतंत्रता सेनानी थे और मधुबन विधानसभा क्षेत्र के पहले विधायक थे. मोतिहारी में एस एन एस कॉलेज और मुंशी सिंह कॉलेज इनके ही परिवार के लोगों द्वारा स्थापित किया गए थे।
पिता के निधन के बाद शाश्वत ने 2017 में उन्होंने अमेरिका की नौकरी छोड़कर बिहार लौटने का फैसला लिया और नीतीश कुमार के सलाहकार के रूप में काम किया। जानकार बताते हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने के लिए जारी सर्वदलीय मांग पत्र भी उन्हीं के निर्देशन में तैयार हुआ। बाद में वे बिहार सरकार के वित्त विभाग के Centre for Economic Policy & Public Finance में डायरेक्टर रहे।
आरडेडी सूत्रों के मुताबिक शाश्वत गौतम को राजद से टिकट न मिलने का एक कारण उनका आरजेडी की जातिगत राजनीति में फिट न होना भी है। नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर मधुबन विधानसभा के रहने वाले एक समाजसेवी का कहना था : “लालू यादव और तेजस्वी यादव के लिए दशकों तक पूरी मजबूती के साथ खड़े रहने का इनाम जगताबाबू और सुधाकर सिंह को यही मिला कि वह एक लायक जीतने वाले राजपूत को विधानसभा का टिकट तक नहीं दिलवा पाए”।
इतना ही नहीं, सभी ग्राउंड सर्वे और रिपोर्ट में यह बात कही गई थी कि शाश्वत गौतम को अगर महागठबंधन अपना प्रत्याशी बनाता है तो मधुबन की सीट निश्चित तौर पर महागठबंधन के खाते में जाएगी।लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इससे इलाके में यह सवाल उठाये जा रहे हैं कि कहीं आरजेजी का पूरा चुनावी अभियान किसी दबाव के तहत तो संचालित नहीं हो रहा है?

