छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले (Dhamtari News) में गंगरेल बांध के किनारे बसे मां अंगारमोती मंदिर की एक पुरानी रस्म अब सवालों के घेरे में आ गई है। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ. दिनेश मिश्रा ने इस परंपरा को अमानवीय और अंधविश्वासपूर्ण बताते हुए कलेक्टर को पत्र लिखा है। उन्होंने मांग की है कि संतान प्राप्ति के नाम पर निसंतान महिलाओं के ऊपर बैगाओं के चलने वाली यह कुरीति तत्काल बंद हो।
हर साल दिवाली के बाद पहले शुक्रवार को लगने वाले ‘मड़ई’ मेले में सैकड़ों महिलाएं पेट के बल लेटकर बैगाओं का दल अपने शरीर पर गुजरने देती हैं, मानना है कि इससे मां की कृपा से संतान सुख मिलेगा। पिछले साल नवंबर में ही 350 से ज्यादा महिलाओं ने यह ‘परण’ रस्म निभाई थी, जहां वे नींबू-नारियल जैसी पूजा सामग्री लेकर बाल खोलकर लेटी रहीं।
संतानहीनता की समस्या सिर्फ महिलाओं की नहीं
आसपास के 54 गांवों से देवी-देवताओं के ध्वज लेकर बैगा मंदिर पहुंचते हैं, लेकिन डॉ. मिश्रा इसे महिलाओं के सम्मान का अपमान मानते हैं।डॉ. मिश्रा का कहना है कि संतानहीनता की समस्या सिर्फ महिलाओं की नहीं, बल्कि पुरुषों की भी हो सकती है फिर भी उन्हें ही बैगाओं के पैरों तले लेटना पड़ता है जो शारीरिक और मानसिक रूप से हानिकारक है। यह पूरी प्रक्रिया अवैज्ञानिक है, क्योंकि आज के दौर में आईवीएफ और अन्य चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हैं, जिनका लाभ दंपतियों को मिलना चाहिए।
कुरीतियों के बजाय फैलानी चाहिए जागरूकता
प्रशासन को ऐसी कुरीतियों के बजाय जागरूकता फैलानी चाहिए और आधुनिक उपचार की दिशा में कदम उठाने चाहिए। डॉ. मिश्रा ने चेतावनी दी कि इस रस्म से महिलाओं को आंतरिक चोटें भी लग सकती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए खतरा है। धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता सबको है लेकिन यह महिलाओं को खतरे में डालने का बहाना नहीं बन सकती।
इस मुद्दे पर डॉ. मिश्रा ने मंदिर समिति के पदाधिकारियों और महिला आयोग से चर्चा करने की योजना बनाई है। साथ ही जनजागरण अभियान चलाकर लोगों को सही जानकारी देंगे, ताकि ऐसी हानिकारक परंपराएं खत्म हों। धमतरी प्रशासन ने अभी पत्र पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

