प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को नवी मुंबई में नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट के पहले चरण का उद्घाटन किया है, इससे निश्चिय ही देश की आर्थिक राजधानी के छत्रपति महाराज शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर बढ़ता दबाव कम होगा और यात्रियों को बड़ी राहत मिलेगी।
दरअसल तीन दशक पहले नवंबर, 1997 में इंद्र गुजराल की अगुआई वाली संयुक्त मोर्चा के समय मुंबई में एक नए एयरपोर्ट की जरूरत महसूस की गई थी और अब तीन दशक बाद नवी मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट के रूप में देश को एक नया हवाई अड्डा मिला है, तो निश्चय ही यह आधारभूत संरचना की दिशा में एक बड़ा कदम है।
हालांकि इस तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि इसके प्रबंधन का जिम्मा अडानी समूह से जुड़ी अडानी एयरपोर्ट होल्डिंग लिमिटेड (एएएचएल) के पास है और अब उसके पास देश के आठ हवाई अड्डों का जिम्मा है, जिनमें से सात अन्य हवाई अड्डे हैं- अहमदाबाद, मंगलुरू, जयपुर, गुवाहाटी, लखनऊ, तिरुवनंतपुरम और मुंबई एयरपोर्ट।
बीते 11 सालों में मोदी सरकार के कार्यकाल के दौरान अडानी समूह का यह विकास वाकई हैरान करने वाला है, तो इसके पीछे कुछ गंभीर सवाल भी हैं। हैरत नहीं होनी चाहिए कि अगस्त 2019 में अस्तित्व में आए एएएचएल के पास आज जिन हवाई अड्डों का जिम्मा है, वहां से देश के कुल एक चौथाई यात्री उड़ान भरते हैं और यही नहीं, इन्हीं हवाई अड्डों से 33 फीसदी माल की आवाजाही होती है।
बेशक, एएएचएल को टेंडर की प्रक्रिया के जरिये ही सफल बोली लगाने की वजह से ये हवाई अड्डे मिले हैं, लेकिन गौर करने वाली बात है कि जब कैबिनेट ने नवंबर 2018 में इनमें से छह हवाई अड्डों के निजीकरण का फैसला किया था, तब यह कंपनी अस्तित्व में ही नहीं थी!
सवाल तब इसलिए उठे थे, क्योंकि हवाई अड्डों के निजीकरण के लिए पीपीपी एप्रवूल कमेटी यानी पीपीपीएसी ने यह शर्त हटा ली कि जिस कंपनी के पास पूर्व अनुभव नहीं है, वह भी इसमें बोली लगा सकती है। यही नहीं, उसने यह शर्त भी हटा ली कि किसी कंपनी को दो से अधिक हवाई अड्डे नहीं दिए जा सकते।
उस वक्त मीडिया में खबरें आई थीं कि वित्त मंत्रालय और नीति आयोग इन ढीलों के खिलाफ थे। हैरत नहीं कि एएएचएल को अस्तित्व में आने के कुछ महीने के भीतर ही उसे छह हवाई अड्डे दिए गए जिनमें रणनीतिक महत्व के साथ ही सर्वाधिक मुनाफा कमाने वाले हवाई अड्डे भी थे!
बेशक, 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद देश में निजीकरण के लिए रास्ता खुला है, और उसका लाभ भी आर्थिक विकास और आम लोगों की जिंदगी में आए बदलाव के रूप में दिखता है।
सच यह भी है कि उसके बाद की सारी सरकारें भी उसी राह पर चलती आई हैं, लेकिन जिस तरह से मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद एक दो उद्योगपतियों का एकाधिकार बढ़ा है, उस पर सवाल उठते हैं, तो यह लाजिमी है। कंपनियों के अस्तित्व में आने से पहले ही यदि उनके अनुकूल नियम कायदों में ढील दी जाए, तो उससे नीति के साथ ही नीयत पर भी शक पैदा होता है।
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