रायपुर। नक्सली संगठन को बड़ा झटका लगा है। 1992 में दंतेवाड़ा जेल ब्रेक का मास्टर माइंड रहा नक्सली कमांड मंडा रुबेन (Manda Ruben) ने आज तेलंगाना पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया है। दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी का सदस्य रहते हुए उसने कई नक्सली वारदातों को अंजाम दिया है। वारंगल कमिश्नर के सामने मंडा रुबेन ने सरेंडर किया है।
बस्तर में सक्रीय बड़े नक्सली कमांडर मंडा रूबेन उर्फ सुरेश ने तेलंगाना के वारंगल में सरेंडर किया। माओवादियों के दक्षिण बस्तर डिविजनल कमेटी का सचिव था। 67 वर्षीय रूबेन बीते 44 सालों से नक्सल संगठन में सक्रिय था।

1991 में पुलिस ने गिरफ्तार कर दंतेवाड़ा जेल भेजा था। करीब 1 साल जेल में बिताने के बाद उसने अपने 4 साथियों के साथ भागने का प्लान बनाया। प्लान के तहत जेल की छत काटने के बाद टॉवेल से रस्सी बना जेल से फरार हो गए थे।
तेलंगाना पुलिस ने अंडरग्राउंड नक्सलियों से तेलंगाना लौटकर सरेंडर करने और तेलंगाना के विकास में मदद करने की अपील की है। उसी के तहत मंडा रुबेन ने सरेंडर किया।
तेलंगाना पुलिस ने मंडा के बारे में जानकारी दी, जिसके तहत यह बात सामने आई कि रुबेन रीजनल इंजीनियरिंग कॉलेज वारंगल जो वर्तमान में एनआईटी वारंगल के नाम से जाना जाता है, के हॉस्टल मेस में काम करता था।

हॉस्टल में काम करने के दौरान एक घटना के बाद 1981 में बसवराजू के साथ अंडर ग्राउंड हो गया था। 1981 से 1986 तक मंडा ने नेशनल पार्क दलम में दलम सदस्य के तौर पर काम किया। उस वक्त नक्सलियों के बड़े नेता रहे लंका पापी रेड्डी कमांडर थे। हालांकि बाद में लंका पापी रेड्डी ने सरेंडर कर दिया था।
इसके बाद 1987 से 1991 के बीच मंडा ने दक्षिण बस्तर के काेंटा स्कवाॅड में दलम सदस्य के तौर पर काम किया। कोंटा दलम में रहने के दौरान जब वह हेल्थ चेकअप के लिए जा रहा था, तभी पुलिस ने 1991 में उसे गिरफ्तार किया था। 1992 में जेल से भागने के बाद उसने फिर से काेंटा दलम जॉइन किया और तब से अब तक वह कई नक्सली वारदात में शामिल रहा है।
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