नई दिल्ली। जूता फेंके जाने की कोशिश की घटना के एक दिन बाद मंगलवार को सीजेआई भूषण गवई जब अदालत में पहुंचे तो अपने साथी जज से उन्होंने कहा कि आपको जो कहना है मेरे कान में कहें, सोशल मीडिया का जमाना है न जाने क्या बात बने।
कल की घटना के बाद सोशल मीडिया पर संघ समर्थित एक बड़ा वर्ग इसे जायज बता रहा है, वहीं पीएम मोदी ने घटना के लगभग 10 घंटे बाद इसकी भर्त्सना की है। हमलावर वकील ने इस घटना पर किसी भी प्रकार के पछतावे से साफ इनकार करते हुए इस कृत्य को ईश्वर का आदेश बता दिया है।
ऐसे में यह सवाल बार-बार खड़ा हो रहा है कि क्या केवल विष्णु पर टिप्पणी की वजह से यह घटना घटी या वजह कोई और भी थी?
‘सीजेआई दलित न होते तो न होता हमला’

सीनियर एडवोकेट संजय हेगड़े ने द लेंस से कहा कि यह मुमकिन है कि हमलावर ने हमला करने से पहले यह न सोचा हो कि सीजेआई दलित हैं, लेकिन यह भी सच है कि अगर सीजेआई दलित न होते, सवर्ण होते, तो इतना हंगामा न होता, जितना हुआ है। तो क्या सीजेआई पर हमला किसी सवर्णवादी एजेंडे के तहत हुआ?
संजय हेगड़े कहते हैं कि नफरतियों की एक भारी भीड़ हर तरफ मौजूद है, सोशल मीडिया इसमें बड़ी भूमिका निभा रहा है और यह कहने में कोई दो राय नहीं है कि नफरती संगठनों द्वारा इस आग में हवन किया जा रहा है। संजय हेगड़े की टिप्पणी साफ तौर पर उन संगठनों की ओर इशारा करती है, जिनके द्वारा जूते फेंकने से पहले और बाद में सीजेआई के खिलाफ माहौल बनाया जा रहा है।
जस्टिस लोया की मौत को असंदिग्ध बता कम की थीं शाह की मुश्किलें

2014 में जब बृजगोपाल हरकिशन लोया को मृत घोषित किया गया था, तब सीजेआई भूषण गवई और उनके साथी न्यायमूर्ति सुनील शुक्रे अस्पताल में थे। जस्टिस गवई पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने जस्टिस लोया की मौत में कुछ भी फाउल प्ले होने की संभावना से इनकार किया था।
इंडियन एक्सप्रेस से जस्टिस गवई ने बताया था कि उनकी मृत्यु से जुड़ी परिस्थितियों में कुछ भी संदिग्ध नहीं था। नहीं भुला जाना चाहिए कि लोया की मृत्यु लगभग उसी समय हुई, जब वे सोहराबुद्दीन शेख की कथित रूप से फर्जी मुठभेड़ में हुई हत्या से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रहे थे।
एक ऐसा मामला, जिसमें तब के बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी आरोपी थे। निश्चित तौर पर जस्टिस गवई का यह बयान अमित शाह और सरकार के लिए मुफीद साबित हुआ था।
कॉलेजियम में सूर्यकांत को पिछड़ गवई को मिला मौका
जस्टिस संजीव खन्ना के बाद सुप्रीम कोर्ट का चीफ जस्टिस बनने के लिए जस्टिस बी. आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत का नाम कॉलेजियम ने सरकार के पास भेजा था।
जस्टिस गवई का नाम लोया केस के बाद दिए गए बयानों को लेकर विवादों में था, लेकिन लॉ कमीशन ने जस्टिस गवई को अगला सीजेआई बनाने की सिफारिश की, जबकि कॉलेजियम के लिए जस्टिस सूर्यकांत पहली पसंद थे।
भांजे को बनाया गया हाईकोर्ट का जज
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अगस्त माह में हाईकोर्ट में जज के पद के लिए 14 वकीलों के नामों की सिफारिश की थी, जिनमें एक नाम राज दामोदर वाकोडे का भी शामिल था।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वाकोडे भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) बी. आर. गवई के भांजे थे। खैर, जस्टिस गवई की मौजूदगी वाले कॉलेजियम में उनके भांजे को भी जगह मिली और अब वह बॉम्बे हाईकोर्ट के जज हैं।
यकीनन यह मामला सरकार और लॉ कमीशन की नाक के नीचे हुआ। यह भी गजब था कि जस्टिस गवई के कॉलेजियम ने भाजपा की एक पूर्व प्रवक्ता को मुंबई हाईकोर्ट का जज बना दिया।
दशहरे के कार्यक्रम में जाने से मां का इंकार, RSS की किरकिरी

अभी कुछ ही दिनों पहले जब सीजेआई की मां के द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी समारोह में जाने का मामला आया, तब बहुत हो-हल्ला मच गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने आयोजन का कार्ड भी बांट दिया था।
सीजेआई के भाई राजेंद्र गवई मीडिया से बार-बार कह रहे थे कि हमने निमंत्रण स्वीकार कर लिया है। सीजेआई के भाई डॉ. राजेंद्र गवई ने एनआई से कहा, “मेरी मां को 5 अक्टूबर को अमरावती में आयोजित होने वाले आरएसएस के कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया है। उन्होंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया है।”
लेकिन बाद में स्वास्थ्य कारणों का हवाला देकर सीजेआई की माताजी कार्यक्रम में नहीं गईं। हालांकि, तब तक निमंत्रण पत्र बांटे जा चुके थे, जिससे आरएसएस की बहुत किरकिरी हुई।
भगवान विष्णु पर टिप्पणी भी नाराजगी
इसके पूर्व जस्टिस गवई ने खजुराहो में भगवान विष्णु की 7 फुट ऊंची सिर कटी मूर्ति के पुनर्निर्माण के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की मांग करने वाली जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने कथित तौर पर कहा, “जाओ और खुद भगवान से ही कुछ करने के लिए कहो।” इस याचिका पर भी कट्टर हिंदूवादियों को गहरी आपत्ति थी।
योगी को बताया पावरफुल फिर बुलडोजर जस्टिस की खिलाफत
यह साफ नजर आता है कि सीजेआई के साथ आरएसएस और बीजेपी का रुख बहुत सकारात्मक था, लेकिन आरएसएस के कार्यक्रम में उनकी मां के जाने के निर्णय फिर इनकार से बात बिगड़ गई।
इसके पहले भगवान विष्णु पर की गई टिप्पणी से संघ परिवार पहले से नाराज था। केवल इतना ही नहीं, कुछ दिनों पूर्व योगी आदित्यनाथ को पावरफुल बताने वाले सीजेआई ने बुलडोजर न्याय की आलोचना करते हुए मॉरीशस में कह दिया कि भारतीय न्याय व्यवस्था बुलडोजर के शासन से नहीं, बल्कि कानून के शासन से संचालित होती है। निस्संदेह यह बात भी बीजेपी और संघ को नागवार गुजरी होगी।