उर्दू है जिस का नाम हमीं जानते हैं ‘ दाग़ ’
हिंदोस्तां में धूम हमारी जबाँ की है
दाग़ देहलवी का यह शेर याद आता है। इस समय उर्दू की चर्चा जो हो रही है। यह चर्चा उर्दू ज़बान की खूबसूरती की नहीं है बल्कि इस चर्चा में नफरत का तड़का लगा हुआ है। दरअसल हमारे देश में भावनात्मक मुद्दों को राजनीतिक कारणों से अहम बनाने का सिलसिला चलता ही रहता है। भाषाओं को लेकर देश में झगड़े नए नहीं है, लेकिन अभी जो विवाद खड़ा करने की कोशिश की जा रही है वो आम लोगों के बीच से न हो कर सत्तारूढ़ भाजपा की ओर से है। दरअसल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदिनाथ ने उर्दू को लेकर सदन में ही एक ‘कठमुल्ला’ टिप्पणी कर दी। उधर राजस्थान में भाजपा की सरकार की उर्दू की जगह संस्कृत को तीसरी भाषा बनाने की पहल के खिलाफ उर्दू के शिक्षक आंदोलित हैं। जयपुर के महात्मा गांधी शासकीय स्कूल में तो राज्य की सरकार ने उर्दू की कक्षाएं ही यह कहते हुए बंद करवा दीं कि उर्दू पढ़ने वाले विद्यार्थी ही बहुत कम हैं ! अगर सत्तानशीं लोग ही देश की एक ऐसी भाषा के साथ नफरत भरा बर्ताव करेंगे जो भाषा इस देश की रगों में बह रही हो, जो हमारी बहुलतावादी संस्कृति की पहचान हो, जो मोहब्बत की ज़बान हो तो इस देश में प्रगतिशील मूल्यों की जगह सिर्फ नफरत भरे प्रतिगामी मूल्यों की ही जगह बची रह जाएगी और दुनिया के सामने यह एक कठमुल्ला भारत की ही तस्वीर होगी।