रायपुर। छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग (CGPSC CIVIL JUDGE EXAM) द्वारा आयोजित सिविल जज (जूनियर डिवीजन) की प्रारंभिक परीक्षा आज रविवार को संपन्न हुई। यह परीक्षा 57 पदों पर भर्ती के लिए थी लेकिन इस परीक्षा ने शुरू होने से पहले ही विवादों ने घेर लिया। सुबह 10 से दोपहर 12 बजे तक चली इस परीक्षा में कपड़ों के सख्त नियमों का उल्लंघन करने वाले अभ्यर्थियों को प्रवेश से रोका गया। वहीं 1000 से ज्यादा उम्मीदवारों के फॉर्म रिजेक्ट होने से भी अभ्यर्थियों में नाराजगी की लहर है।
परीक्षा एक ही पाली में हुई जिसमें 100 अंकों के 100 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQ)पूछे गए। अभ्यर्थियों को जवाब लिखने के लिए दो घंटे का समय मिला। राज्य के प्रमुख शहरों रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग-भिलाई में परीक्षा केंद्र बने। खासकर रायपुर जिले में 38 केंद्र स्थापित किए गए। CGPSC ने परीक्षा सुचारू रूप से कराई, लेकिन कई जगहों पर उम्मीदवारों को परेशानी का सामना करना पड़ा।
कपड़ों के नियम ने मचाया बवाल
CGPSC के निर्देशों में साफ था कि अभ्यर्थी हल्के रंग के सादे कपड़े और आधी बांह के पहनकर आएं। लेकिन जिन उम्मीदवारों ने प्रिंटेड या गहरे रंग के कपड़े पहने, उन्हें केंद्रों में घुसने नहीं दिया गया। कई जगहों पर केंद्र के बाहर कपड़ों की दुकानें और फेरी लगीं, जहां अभ्यर्थी नए कपड़े खरीदकर परीक्षा देने लगे। एक उम्मीदवार ने बताया, “मेरे पास पैसे नहीं थे, लेकिन फेरी वाले ने कहा- मुझे आप पर भरोसा है अभी शर्ट ले जाओ, बाद में पैसे दे देना।” कुछ अभ्यर्थियों को तो 11 सितंबर को ही सूचना दी गई कि उनका एडमिट कार्ड जारी नहीं होगा। इससे वे परीक्षा से वंचित रह गए।
लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने को मजबूर कानून के छात्र
यह परीक्षा दिसंबर 2024 में अधिसूचना जारी होने के बाद से विवादों में घिरी रही। शुरू में CGPSC ने शर्त रखी थी कि सिर्फ राज्य बार काउंसिल से नामांकन (एनरोलमेंट) वाले वकील ही आवेदन कर सकते हैं। यह नियम अन्य राज्यों की न्यायिक भर्तियों से अलग था, जहां सिर्फ कानून यानी LLB की डिग्री काफी होती है।
इस शर्त को चुनौती देते हुए विनीता यादव ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में केस दायर किया। अदालत ने विनीता के पक्ष में फैसला दिया। इसके बाद CGPSC ने ‘शुद्धी पत्र’ जारी कर जनवरी से फरवरी 2025 तक फॉर्म भरने का मौका दिया, जिसमें सभी लॉ ग्रेजुएट आवेदन कर सके।

लेकिन मुश्किलें खत्म नहीं हुईं। ऑल इंडिया जजेस एसोसिएशन का एक पुराना केस सुप्रीम कोर्ट में लंबित था, जिसमें लॉ ग्रेजुएट्स के लिए तीन साल की वकालत का अनुभव अनिवार्य करने की मांग थी। 20 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने इस पर अंतिम फैसला सुनाया। इससे पहले 18 मई को निर्धारित परीक्षा स्थगित कर दी गई थी। नए फैसले के बाद परीक्षा की तारीख 21 सितंबर तय हुई।
फ्रेशर लॉ ग्रेजुएट्स और नए उम्मीदवारों के लिए यह आखिरी मौका था। वे पूरी मेहनत से पढ़ाई में जुट गए। लेकिन 9 सितंबर की शाम को एडमिट कार्ड जारी होने पर झटका लगा। सिर्फ नामांकन वाले उम्मीदवारों को ही कार्ड मिला। बाकी दो श्रेणियों के अभ्यर्थी- सरकारी नौकरी में मौजूद लोग (जैसे ADPO, APP, लीगल ऑफिसर) और फ्रेशर ग्रेजुएट्स बाहर हो गए। छात्रों के अनुसार नामांकन मिलने में कम से कम 5 से 7 महीने लग जातें हैं।

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की दौड़
फॉर्म रिजेक्ट हुए उम्मीदवारों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन पहला और दूसरा पिटीशन खारिज हो गया। आखिरकार अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहां 24 याचिकाकर्ताओं (फ्रेशर्स और सरकारी कर्मचारी दोनों) को परीक्षा देने की इजाजत मिली। लेकिन CGPSC ने सिर्फ इन्हीं के एडमिट कार्ड जारी किए। बाकी सैकड़ों उम्मीदवार, जो एक जैसी योग्यता रखते थे वे वंचित रह गए।

उम्मीदवारों की नाराजगी
कई प्रभावित अभ्यर्थियों ने नाम न देने की शर्त पर ‘द लेंस’ को बताया, “CGPSC ने न तो फॉर्म भरने की फीस लौटाई, न ही कोई नोटिफिकेशन जारी किया कि हम क्यों रिजेक्ट हुए। अन्य राज्यों की तरह हमें भी स्पष्ट कारण बताना चाहिए था।” अनुमान है कि 1000 से ज्यादा ऐसे उम्मीदवार हैं, जिनके फॉर्म रिजेक्ट हुए हैं, इस विषय पर कई उम्मीदवारों ने कहा कि यह भेदभावपूर्ण है और उनकी मेहनत पर पानी फिर गया। यह विवाद छत्तीसगढ़ की न्यायिक भर्ती प्रक्रिया पर सवाल खड़े कर रहा है। उम्मीदवारों का कहना है कि पारदर्शिता की कमी से युवाओं का भविष्य दांव पर लग रहा है।