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लेंस संपादकीय

कैग की चेतावनीः राज्यों की उधारी बेलगाम

Editorial Board
Last updated: September 20, 2025 10:08 pm
Editorial Board
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cag report
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नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की ताजा रिपोर्ट राज्यों के वित्तीय प्रबंधन को लेकर गंभीर चेतावनी है, जिसके मुताबिक उनका कर्ज एक दशक के भीतर बढ़कर तीन गुना हो गया है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक देश के 28 राज्यों की कुल उधारी 17.57 लाख रुपये थे, जो 2022-23 में बढ़कर 59.6 लाख करोड़ रुपये हो गई है।

कैग की रिपोर्ट जो तस्वीर पेश करती है, उससे पता चलता है कि कई राज्यों में मामला आमदनी अठन्नी खर्चा रूपया से भी ज्यादा गड़बड़ है। रिपोर्ट के मुताबिक 2014-15 में राज्यों की उधारी उनकी राजस्व प्राप्तियों की तुलना में 128 फीसदी थी, जो 2020-21 में 191 फीसदी हो गई थी।

हाल के बरसों में जिस तरह से राज्यों में सत्तारूढ़ दलों ने नकद हस्तांतरण और लोकलुभावन नीतियों को अपनी चुनावी रणनीति का हिस्सा बना लिया है और जिस तरह से सरकारी खर्च अनियंत्रित होते जा रहा है, उसने वित्तीय संतुलन के लिए गंभीर चुनौती पेश कर दी है।

बेशक, एक कल्याणकारी राज्य में यह सरकार की जिम्मेदारी है कि कोई भी व्यक्ति भूखा न रहे, लेकिन हो यह रहा है कि वे भले ही रोजगार पैदा करने वाले कार्यक्रमों पर गौर न करें, लेकिन उसके बदले नकद हस्तांतरण जैसी योजनाएं ले आएं। दूसरी ओर सरकारी उपक्रमों को कमजोर कर उन्हें निजी हाथों के हवाले भी किया जा रहा है।

सरकार को जहां होना चाहिए, वहां से वह अनुपस्थित होती जा रही है। दरअसल राज्यों की बढ़ती उधारी की ये भी वजहें हैं। और हालत यह है कि जैसा कि कैग की रिपोर्ट दिखाती है कि कई राज्यों को पुरानी उधारी चुकाने के लिए नई उधारी लेनी पड़ रही है।

रिपोर्ट के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2023 में आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, केरल, मिज़ोरम, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल सहित 11 राज्यों ने उधारी का इस्तेमाल पूंजीगत निवेश के बजाए राजस्व घाटे को पूरा करने में यानी पुरानी उधारी चुकाने में किया।

इन राज्यों पर गौर करें, तो साफ है कि मामला किसी एक दल की सरकार का नहीं है, इस मामले में भाजपा और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों के साथ ही द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे दलों की सरकारें भी एक ही पाले में हैं और उन्हें कोई फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है।

दरअसल यह बढ़ती उधारी उस उसूल के खिलाफ है, जिसके मुताबिक सरकारें केवल निवेश को बढ़ाने के लिए उधारी लें न कि मौजूदा लागत को बढ़ाने के लिए।

यह भी देखें : बस्तरः विकास के दावे और बदहाल सड़कें

TAGGED:CAG reportEditorial
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