लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने गुरुवार को प्रेस कांफ्रेंस कर देश के मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार पर कर्नाटक और महाराष्ट्र में मतदाता सूची में गड़बड़ियां करने वालों का बचाव करने के गंभीर आरोप लगाए हैं, यह बेहद गंभीर और अभूतपूर्व है।
यह मामला इसलिए भी चिंता का कारण होना चाहिए, क्योंकि देश के संसदीय इतिहास में इससे पहले देश के किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त पर कभी भी चुनावों से संबंधित गड़बड़ियों में संलिप्त रहने के इतने स्पष्ट आरोप नहीं लगाए गए।
राहुल ने सात अगस्त को अपनी पिछली प्रेस कांफ्रेंस में कर्नाटक के बंगलुरू सेंट्रल लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली महादेवपुरा विधानसभा सीट में एक लाख से अधिक फर्जी वोट जोड़े जाने का आरोप लगाया था और इसे ‘वोट चोरी’ कहा था।
अपने आरोपों के पक्ष में उन्होंने बकायदा दस्तावेज प्रस्तुत किए थे। राहुल ने महाराष्ट्र में भी मतदाता सूची में गड़बड़ियों के आरोप लगाए थे, और तब करीब दस दिन बाद मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस कर उलटे राहुल को ही धमकाने वाले अंदाज में कहा था कि वह हलफनामा दें या हफ्ते भर में माफी मांगें।
यह दुखद है कि जिस संस्था पर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की साख जुड़ी हुई है, उसके मुखिया उस संस्था पर लग रहे गंभीर आरोपों को लेकर राजनीतिक बयानबाजी में उलझ गए हैं। जबकि यह व्यक्तिगत मामला नहीं है, बल्कि इससे एक ऐसी स्वायत्त संवैधानिक संस्था की प्रतिष्ठा जुड़ी हुई है, जिस पर देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था की साख को बनाए रखने की महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी है।
ज्ञानेश कुमार के दो पूर्ववर्ती मुख्य चुनाव आयुक्तों एस वाई कुरेशी और ओपी रावत तथा एक अन्य पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने राहुल गांधी के आरोपों को न केवल गंभीरता से लिया है, बल्कि साफ कहा है कि वह इन आरोपों की जांच करवाते।
राहुल गांधी ने गुरुवार को बकायदा प्रेस कांफ्रेंस में कर्नाटक के ऐसे लोगों को मीडिया के सामने पेश कर दिया, जिनके नाम से वोटरों के नाम मतदाता सूची से डिलीट कर दिए गए, जबकि उन्हें इसकी कोई जानकारी भी नहीं थी!
सचमुच यह बेहद गंभीर मामला है, और राहुल के आरोपों को खारिज करने का यह कोई आधार नहीं हो सकता कि वह जिस सीट आलंद को लेकर आरोप लगा रहे हैं, वहां से कांग्रेस के उम्मीदवार की जीत हुई थी।
दरअसल सबसे बड़ा सवाल देश में चुनाव की पूरी प्रक्रिया की पारदर्शिता को लेकर खड़ा हो गया है। यह कहने से भी गुरेज नहीं किया जाना चाहिए कि राहुल गांधी ने बकायदा पूरी तैयारी के साथ दिखाया है कि हमारी पूरी चुनाव प्रक्रिया पर गहरी धुंध छा गई है। उन्होंने जो सवाल उठाए हैं, उन पर गौर करने की जरूरत है कि आखिर कर्नाटक की मतदाता सूची से नाम डिलीट करने के लिए दूसरे राज्यों के मोबाइल नंबर और आईपी क्यों इस्तेमाल किए गए?
क्या यह इत्तफाक है कि मतदाता सूची में सिर्फ सीरियल नंबर वन वाले मतदाताओं के जरिये नाम डिलीट किए गए? क्या इसके पीछे साफ्टवेयर के जरिये कोई खेल किया गया? जब कर्नाटक के राज्य निर्वाचन आयोग और वहां की सीआईडी इस मामले में जांच को तैयार है, तो फिर केंद्रीय चुनाव आयोग को क्यों एतराज है?
राहुल गांधी के बेहद संतुलित तरीके से सामने रखे गए तथ्यों को पऱखने की जरूरत है, लेकिन उनकी प्रेस कांफ्रेंस के बाद चुनाव आयोग ने किसी तरह की जांच करवाना तो दूर जिस तत्परता से उनके आरोपों को खारिज किया है, वह देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए कोई शुभ संकेत नहीं है।
हैरानी इस बात की भी है कि चुनावों में गड़बड़ियों को लेकर चुनाव आयोग पर लगाए गए राहुल गांधी के आरोपों के बचाव में भाजपा सबसे पहले सामने आ जाती है! यह हिट ऐंड रन का मामला नहीं है, राहुल लोकसभा में विपक्ष के नेता हैं और यदि उनके आरोपों में दम नहीं है, तो चुनाव आयोग को उन्हें तथ्यों के साथ साबित करना चाहिए।
चूंकि राहुल ने यह भी कहा है कि वह अभी ‘हाइड्रोजन बम’ भी लेकर आएंगे, यानी इससे भी बड़ी गड़बड़ी को उजागर करेंगे, तब तो यह और भी जरूरी हो जाता है।
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