नई दिल्ली। देश की सियायत का करीब चौथाई हिस्सा खानदानी है। यानी परिवारवाद की सीढ़ी के सहारे 21 फीसदी माननीय लोकसभा या विधानसभाओं तक पहुंचे हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और नेशनल इलेक्शन वॉच (ADR) रिपोर्ट में यह आंकड़ा देश की विधानसभाओं, विधान परिषद और लोकसभा सदस्यों के विश्लेषण में सामने आया है।
ADR ने कुल 5203 मौजूदा सदस्यों का अध्ययन किया गया, जिसमें से 1106 सदस्यों की जड़ें परिवार की राजनीतिक विरासत से जुड़ी हुई हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, लोकसभा में सबसे ज्यादा 31 प्रतिशत यानी 166 सांसद ऐसे हैं जो परिवारवाद के रास्ते से सियासत में आए हैं। कुल 542 लोकसभा सदस्यों में यह संख्या सबसे ऊंची है, जो दर्शाती है कि संसद के निचले सदन में परिवार की परंपरा मजबूत बनी हुई है। राज्यसभा में 21 प्रतिशत, राज्य विधानसभाओं में 20 प्रतिशत और विधान परिषदों में 22 प्रतिशत सदस्य इसी श्रेणी में आते हैं।
एडीआर की रिपोर्ट बताती है कि बड़े राज्यों में आंध्र प्रदेश सबसे ऊपर है, जहां 34 प्रतिशत यानी 86 सदस्य वंशवादी पृष्ठभूमि से हैं। महाराष्ट्र में 32 प्रतिशत (129 सदस्य), कर्नाटक में 29 प्रतिशत (94), बिहार में 27 प्रतिशत (96) और उत्तर प्रदेश में 23 प्रतिशत (141) हैं।

छोटे राज्यों में हरियाणा 35 प्रतिशत, जम्मू-कश्मीर 34 प्रतिशत और चंडीगढ़ व लक्षद्वीप में तो 100 प्रतिशत सदस्य परिवार से जुड़े हैं। पश्चिम बंगाल और असम जैसे राज्यों में यह संख्या सिर्फ 9 प्रतिशत है, जो क्षेत्रीय विविधता को रेखांकित करता है।
एक दिलचस्प उदाहरण के तौर पर, लोकप्रिय नेताओं के परिवारों का सिलसिला जारी है। जैसे, कई प्रमुख नेताओं के बेटे-बेटियां या रिश्तेदार आगे चलकर मंत्री, विधायक या सांसद बन चुके हैं, जो राजनीति को एक पारिवारिक परंपरा की तरह जोड़ता है। रिपोर्ट बताती है कि वंशवाद का असर राष्ट्रीय से लेकर स्थानीय स्तर तक फैला हुआ है, जहां परिवार का नाम, संपत्ति और ब्रांड नई पीढ़ी को मजबूत आधार देता है।
इस मामले में कांग्रेस सबसे आगे फिर भाजपा

परिवारवाद के मामले में राष्ट्रीय दलों में कांग्रेस सबसे आगे है, जहां 32 प्रतिशत सदस्यों की पृष्ठभूमि वंशवादी है। इसके बाद भाजपा में 17 प्रतिशत हैं, जबकि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया मार्क्सवादी में यह आंकड़ा 8 प्रतिशत है।
राज्य स्तर के दलों में एनसीपी शरद पवार गुट में 42 प्रतिशत, जेकेएनसी में 42 प्रतिशत, वाईएसआरसीपी में 38 प्रतिशत, टीडीपी में 36 प्रतिशत और एनसीपी में 34 प्रतिशत सदस्य परिवार की राजनीति से जुड़े हैं। समाजवादी पार्टी, जनता दल यूनाइटेड, असम गण परिषद और राष्ट्रीय जनता दल जैसे दलों में भी यह संख्या 30 प्रतिशत से ऊपर जाती है। छोटे दलों में तो कई जगह 100 प्रतिशत सदस्य ही परिवार से आते हैं, क्योंकि ये अक्सर परिवार आधारित या सीमित सदस्यों वाले संगठन होते हैं।
निर्दलीय भी 24 प्रतिशत परिवारवादी
दलों के अलावा निर्दलीय उम्मीदवारों में भी यह प्रवृत्ति दिखती है। कुल 94 निर्दलीयों में 23 यानी 24 प्रतिशत सदस्यों की जड़ें परिवार की राजनीतिक विरासत में हैं। ये निर्दलीय अक्सर पार्टियों से अलग होकर भी परिवार के ब्रांड का फायदा उठाते नजर आते हैं। अनचिन्हित दलों में भी यही आंकड़ा 24 प्रतिशत है, जहां 87 सदस्यों में 21 ऐसे हैं।
यह भी देखें: संसद के चारों ओर लगेगी करंट वाली बाड़, नेपाल हिंसक आंदोलन के बाद सुरक्षा का विस्तार