मई, 2023 में कुकी-जो और मैतेई समुदायों के बीच भड़की हिंसा के सवा दो साल बाद मणिपुर पहुंचकर प्रधानमंत्री मोदी ने राज्य के लिए 8500 करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास कर यही जतलाने की कोशिश की है कि केंद्र सरकार इस संकटग्रस्त राज्य को लेकर फिक्रमंद है।
इस पैकेज को देखें तो इसमें से 7300 करोड़ रुपये की परियोजनाएं कुकी बहुल हिंसा से सर्वाधिक प्रभावित चुराचांदपुर के लिए है और 1200 करोड़ रुपये की परियोजनाएं मैतेई बहुल राजधानी इम्फाल के लिए। प्रधानमंत्री ने कहा है कि सारा देश और उनकी सरकार मणिपुर के लोगों के साथ है, जिसे उन्होंने देश का मणि तक कहा है।
प्रधानमंत्री ने अपने प्रवास के दौरान हिंसा से विस्थापित लोगों से भी मुलाकात की है। जाहिर है, उनकी इस यात्रा के लिए केंद्र से लेकर राज्य के प्रशासनिक तंत्र तक खासी तैयारी की गई थी और बारिश ने उन्हें यह मौका भी दिया कि वह मेघालय से चुराचांदपुर तक सड़क के रास्ते से पहुंचें।
चुराचांदपुर और इम्फाल दोनों जगहों पर उन्होंने अपने संबोधन में जिस तरह बार-बार यह जतलाने की कोशिश की कि सरकार मणिपुर के लोगों के साथ है, उसमें यह बताने की जरूरत नहीं है कि उन्हें इस बात का एहसास रहा होगा कि कई महीनों तक चली जातीय हिंसा ने कुकी और मैतेई समुदाय के बीच तो खाई पैदा की ही है, उनकी सरकार को लेकर भी राज्य में विश्वास का गहरा संकट है।
दरअसल यह संकट उस मंशा से पैदा हुआ है, जिसके जरिये मणिपुर में जाने अनजाने समुदायों के बीच खाई पैदा कर दी गई। नवंबर, 2022 में मणिपुर सरकार ने एक आदेश जारी कर 1970-80 के पुराने आदेशों को दरकिनार कर कुछ गांवों को प्रस्तावित चुराचांदपुर-खोपुम रिजर्व फॉरेस्ट से बाहर कर दिया था।
इसने कुकी समुदाय को नाराज कर दिया और बची खुची कसर अप्रैल, 2023 में मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल करने की मांग पर विचार करने के मणिपुर हाई कोर्ट के राज्य सरकार को दिए गए आदेश से पूरी हो गई। इस आदेश को कुकी समुदाय ने अपने खिलाफ माना।
दरअसल इससे मैतेई समुदाय को कुकी बहुल पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन खरीदने का हक मिल गया! वैसे कुकी-जो समुदाय लंबे समय से स्वायत्तता की मांग कर ही रहा था और इस आदेश ने आग में घी डालने का काम किया। नतीजतन वहां भीषण न केवल हिंसा भड़क गई, बल्कि देखते ही देखते मणिपुर जलने लगा।
इस लंबी हिंसा और आगजनी में करीब 260 लाख लोग मारे गए और 60 हजार लोग विस्थापित हो गए। यही नहीं, महिलाओं को निर्वस्त्र करने और उनके साथ बलात्कार की घटनाएं भी सामने आईं। इस भयानक स्थिति के बावजूद केंद्र की मोदी सरकार ने राज्य की भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह का इस्तीफा लेना तक मंजूर नहीं किया।
वास्तव में विपक्षी दल ही नहीं, स्थानीय समुदाय भी केंद्र से तत्काल हस्तक्षेप की मांग कर रहे थे। इस साल 13 फरवरी को बीरेन सिंह के इस्तीफे के बाद वहां राष्ट्रपति शासन लगाया गया है, लेकिन विधानसभा को भंग नहीं किया गया है, बल्कि भाजपा के वहां सरकार बनाने के दावे सामने आते रहे हैं। समचमुच किसी राज्य के साथ ऐसी बेरुखी का यह अनूठा मामला है, जहां सरकार अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने में नाकाम रही है।
अब जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने देर से ही सही, मणिपुर पहुंचकर वहां के लोगों से कहा है कि भारत सरकार आपके साथ है, तो यह उम्मीद भी की जानी चाहिए कि वहां हजारों करोड़ों की परियोजनाओं के साथ ही विश्वास बहाली की दिशा में सकारात्मक कदम उठाए जाएंगे। इसके लिए वहां मौजूदा विधानसभा को भंग कर चुनाव कराए जाने चाहिए, ताकि लोग लोकप्रिय सरकार चुन सकें।
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