नेशनल ब्यूरो। नई दिल्ली
अपने भांजे को हाईकोर्ट का जज बनाने पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के जज अभय ओका खुलकर खड़े हो गए हैं। जस्टिस के भांजे को हाईकोर्ट का जज बनाने पर जस्टिस अभय ओका ने बोला है कि मैं होता तो ऐसा नहीं करता।
जस्टिस अभय एस. ओका का कहना था कि स्वाभाविक रूप से उस न्यायाधीश को कॉलेजियम से अलग हो जाना चाहिए, जिसके रिश्तेदार के नाम पर चर्चा होनी हो।
गौरतलब है कि चीफ जस्टिस गवई उस कॉलेजियम में शामिल थे जिनमें उनके भांजे राज वाकोड़े की नियुक्ति को हरी झंडी दे दी है। गौरतलब है कि कॉलेजियम की बैठक में पिछले दिनों जस्टिस नाग रत्ना ने गुजरात से पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को सुप्रीम कोर्ट के पैनल में शामिल करने का विरोध किया था उन पर संघ समर्थित होने के गंभीर आरोप हैं।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस बीआर गवई के भांजे राज वाकोडे का नाम बॉम्बे हाई कोर्ट के जज के लिए भेजा गया है। बीते सप्ताह ही उनके नाम की सिफारिश कॉलेजियम की ओर से की गई थी। इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस अभय एस. ओका का कहना है कि सीजेआई बीआर गवई को उस कॉलेजियम से अलग होना जाना चाहिए था, जिसने उनके नाम को मंजूर किया है।
बार ऐंड बेंच को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि मैं अपनी बात बिलकुल साफ़ कहना चाहता हूं। यदि किसी ऐसे उम्मीदवार का नाम हाई कोर्ट की सिफारिश से आता है, जिसका कोई रिश्तेदार कॉलेजियम में हो और खासतौर पर चीफ जस्टिस का ही परिजन हो तो उन्हें अलग हो जाना चाहिए।
जस्टिस अभय एस. ओका ने कहा कि स्वाभाविक रूप से उस न्यायाधीश को कॉलेजियम से अलग हो जाना चाहिए, जिसके रिश्तेदार के नाम पर चर्चा होनी हो। एक सवाल यह भी है कि यदि कोई उम्मीदवार वास्तव में योग्य है तो क्या उसे न्यायपालिका से दूर रखना चाहिए या उसे एंट्री से वंचित करना चाहिए। लेकिन यह कहूंगा कि ऐसे मामले में मुख्य न्यायाधीश को अलग हो जाना चाहिए था।
जस्टिस अभय ओका का कहना था कि मुझे नहीं पता कि उन्होंने ऐसा किया या नहीं। उन्हें अलग होकर कॉलेजियम का विस्तार कर एक और वरिष्ठ न्यायाधीश को शामिल करना चाहिए था। उस नए कॉलेजियम के सामने ही संबंधित व्यक्ति का नाम रखा जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि दूसरा मुद्दा मर्यादा का है कि क्या ऐसा होना चाहिए था। जहां तक मर्यादा का सवाल है, इसकी परिभाषा हर व्यक्ति के लिए अलग हो सकती है। यही नहीं उनसे जब सवाल किया गया कि यदि वह खुद चीफ जस्टिस होते और ऐसी स्थिति उत्पन्न होती तो वह क्या करते।
इस पर जस्टिस अभय ओका ने कहा कि यह काल्पनिक सवाल है, लेकिन मैं यहीं कहूंगा कि ऐसी स्थिति पैदा होने से बचता। न्यायपालिका में नियुक्ति में विचारधारा भी महत्वपूर्ण होती है और क्या आपके पिता आरएसएस से जुड़े थे, इसलिए सुप्रीम कोर्ट में आने का मौका मिला? इस तीखे सवाल का भी जस्टिस ओका ने खुलकर जवाब दिया।
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उन्होंने कहा, ‘मैं करेक्ट कर देता हूं। मेरा पिताजी 2017 तक जीवित रहे। मैं 2003 में जज बना था। अपने बचपन से मैंने उन्हें कभी आरएसएस की शाखा में जाते नहीं देखा था।
वह ऐसे एक या दो ट्रस्ट से शायद जुड़े थे, जिनसे आरएसएस के लोगों का भी ताल्लुक था। इसलिए कोई यह नहीं कह सकता कि मेरे पिताजी आरएसएस के मेंबर थे।’ जस्टिस ओका ने कहा कि जब जज के तौर पर शपथ लेते हैं तो अलग ही व्यक्ति होते हैं।
आप संविधान की शपथ लेते हैं और उसकी रक्षा के लिए ही काम करते हैं। आपका कोई भी काम संविधान के आदर्शों और उसके आलोक में ही होता है। आप हर फैसले में तय कानूनों के आधार पर ही फैसला लेते हैं। उससे अलग कुछ नहीं
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