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देश

कमलनाथ सरकार के पतन के लिए कौन-था जिम्मेदार? पांच साल बाद दिग्विजय सिंह का सनसनीखेज खुलासा

रशीद किदवई
Last updated: August 23, 2025 9:37 pm
रशीद किदवई
Byरशीद किदवई
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MP Congress Politics
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MP Congress Politics : मप्र में कमलनाथ सरकार के पतन के करीब पांच साल बाद पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने एक सनसनीखेज खुलासा किया है। उन्होंने दावा किया है कि साल 2020 में सरकार गिरने के जिम्मेदार स्वयं मुख्यमंत्री कमलनाथ थे, न कि ज्योतिरादित्य सिंधिया या वे खुद। कमलनाथ द्वारा ज्योतिरादित्य से किए गए वादों को पूरा न कर पाना इसकी बड़ी वजह थी।

दिग्विजय सिंह ने यह दावा शनिवार को एमपी तक के संपादक मिलिंद खांडेकर के पॉडकास्ट पर किया। उन्होंने कहा, ‘एक इंडस्ट्रियलिस्ट के घर बैठक में तय हुआ कि हम दोनों (स्वयं दिग्विजय सिंह और सिंधिया) एक विशलिस्ट बनाकर देंगे। हमने अगले दिन विशलिस्ट भी दे दी। लेकिन विशलिस्ट का पालन नहीं हुआ।’

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह @digvijaya_28 के साथ MP Tak Podcast शनिवार को @MPTakOfficial पर . मध्यप्रदेश की राजनीति को लेकर बड़ी खबर सामने आई है. pic.twitter.com/QYQPrDmX8q

— Milind Khandekar (@milindkhandekar) August 22, 2025

दिग्विजय सिंह ने उन अटकलों को भी खारिज कर दिया कि सरकार गिरने की वजह उनके और सिंधिया के बीच की लड़ाई थी। उनके मुताबिक, इसके विपरीत असल कारण तो कमलनाथ और सिंधिया के बीच का टकराव था। पॉडकास्ट में उन्होंने कहा, ‘ये प्रचारित किया गया कि मेरी और सिंधिया की लड़ाई की वजह से कमलनाथ की सरकार गिर गई। लेकिन सच्चाई यह है कि मैंने खुद सरकार गिरने को लेकर आगाह किया था।

एक बड़े इंडस्ट्रियलिस्ट हैं, जिनके कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया दोनों के साथ अच्छे संबंध हैं। मैं उनके पास गया और उनसे कहा कि देखिए, इन दोनों की लड़ाई में हमारी सरकार गिर जाएगी। आप जरा संभालिए, क्योंकि आपके दोनों से अच्छे ताल्लुकात हैं। उनके घर में भोजन रखा गया, जिसमें मैं भी शामिल हुआ। मेरे सतत प्रयासों के बाद भी कमलनाथ सरकार नहीं बच पाई। मेरा न माधवराव सिंधिया से कभी कोई विवाद था और न ही ज्योतिरादित्य सिंधिया से।’

उल्लेखनीय है कि मई 2018 तक ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ दोनों एक ही धरातल पर थे। दोनों दिग्विजय सिंह को अपना सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी मानकर चल रहे थे। कमलनाथ ने तब इस लेखक से कहा था, ‘हम एकसाथ हैं। आप ज्योति से भी बात कर सकते हैं…।’ उधर कुछ थोड़े ज्यादा सतर्क ज्योतिरादित्य ने कहा था कि पार्टी आलाकमान जिसे भी चुनेगा, वो उसका समर्थन करने के लिए तैयार रहेंगे।

शायद ज्योतिरादित्य यह मानकर चल रहे थे कि आलाकमान उन्हें ही चुनेगा, बशर्ते दिग्विजय सिंह उनकी राह में आड़े न आए। कमलनाथ को भी ऐसा ही लगता था। इसलिए उस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था कि ये दोनों क्षेत्रीय क्षत्रप एक तीसरे खिलाड़ी यानी दिग्विजय सिंह को दौड़ में शामिल होने से रोकने के लिए मिल-जुलकर प्रयास कर रहे थे, जो नर्मदा नदी की अपनी 1,100 मील लंबी परिक्रमा में व्यस्त थे।

2018 के विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की थी। राहुल गांधी की अगुवाई में युवा नेतृत्व को आगे बढ़ाने की उम्मीदें थीं, लेकिन अंततः कमलनाथ, अशोक गहलोत और भूपेश बघेल जैसे ‘अनुभवी चेहरे’ चुने गए। मध्य प्रदेश में यह सवाल तब से ही गूंजता रहा कि ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में 26 सीटें दिलाने वाले सिंधिया को दरकिनार क्यों किया गया।

2020 की शुरुआत तक मामला और उलझ गया। राज्यसभा सीटों पर नामांकन को लेकर खींचतान ने स्थिति और बिगाड़ दी। ज्योतिरादित्य को उम्मीद थी कि पहली पसंद के तौर पर उन्हें दिग्विजय सिंह पर वरीयता दी जाएगी, लेकिन कमलनाथ की यह दलील कि ‘ज्यादातर विधायक पहली पसंद के रूप में दिग्विजय को चाहते हैं’, इससे सिंधिया की नाराजगी और बढ़ गई।

जब सोनिया को ज्योतिरादित्य और दिग्विजय सिंह के बीच मची इस अनौपचारिक खींचतान के बारे में पता चला तो कहा जाता है कि उन्होंने ज्योतिरादित्य को छत्तीसगढ़ में एक सीट देेने की पेशकश की। राज्यसभा सदस्य के नामांकन के तौर पर मध्य प्रदेश से बाहर जाने के इस प्रस्ताव ने ज्योतिरादित्य को कथित रूप से और कुपित कर दिया और उन्होंने पार्टी छोड़ने का इरादा पक्का कर लिया।

अभी दो सप्ताह पहले ही भोपाल में एक निजी कार्यक्रम में दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच अचानक मुलाकात हुई थी। मंच के नीचे एक कुर्सी पर बैठे दिग्विजय सिंह को स्वयं ज्योतिरादित्य अपने साथ मंच तक लेकर गए थे।

मार्च 2020 में कमलनाथ सरकार के पतन और ज्योतिरादित्य के भाजपा में जाने के बाद से यह संभवत: पहला मौका था, जब सार्वजनिक तौर पर दोनों पूर्व प्रतिद्वंद्वियों के बीच इतनी सौजन्यता नजर आई। तभी से राज्य की राजनीति में यह सवाल भी मंडरा रहा था कि यह निजी सौजन्यता महज एक ‘संयोग’ है या इसके कुछ और भी सियासी मायने हो सकते हैं?

निकट भविष्य में नए समीकरणों को भले ही दूर की कौड़ी मानकर खारिज किया जा सकता है, लेकिन दिग्विजय सिंह के इस बयान और ज्योतिरादित्य के साथ उनकी ‘आकस्मिक सौजन्य मुलाकात’ के मप्र की सियासत के लिए काफी गहरे राजनीतिक निहितार्थ निकाले जा सकते हैं।

दिग्विजय सिंह ने संकेत दिए हैं कि वे स्वयं सत्ता की दौड़ से बाहर हैं, लेकिन मप्र में कांग्रेस के रणनीतिकार एवं ‘पावर सेंटर’ वही बने हुए हैं और वही बने रहना चाहते हैं। इसी वजह से वे पार्टी के अन्य सीनियर मोस्ट कमलनाथ को पूरी तरह से हाशिये पर देखना चाहते हैं।

लेखक वरिष्‍ठ पत्रकार हैं

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