वैसे टीवी देखता नहीं, कहीं बैठा हूं देख रहा हूं, पटना में राशन डीलरों पर पुलिस लाठियां बरसा रही है। गनीमत इस बार लाठियां वैसी न बरसीं, जैसे कुछ समय पहले पानी की बौछारों के साथ बिहार लोक सेवा आयोग (BPSC) की अनियमितताओं-धांधली पर विरोध प्रकट करते छात्रों पर बरसी थीं।
बिहार में कानून व्यवस्था के सवाल पर भी लगातार प्रदर्शन होते रहे, वहीं दूसरी तरफ पहले बिहार रक्षा वाहिनी स्वयंसेवकों संघ को भी जूझते देखा। बिहार से बाढ़ पीड़ितों की भी ख़बरें हैं पर उनकी पीड़ा कैसी है ? कितनी है ? कितनी तबाही ? किस हाल में है ये बताने वाला आज कोई संवेदनशील सन्देश वाहक मुझे नहीं दीखता!
एक तरफ बाढ़ और बारिश की मार दूसरी तरफ देश और दुनिया का बड़ा सवाल बिहार से उठा कि लाखों मतदाता SIR से बाहर हो जायेंगे। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और अंततः सुप्रीम कोर्ट ने राहत देते हुए मरहम लगाया। ये कौन लोग थे, जो बाहर हो सकते थे ? ये पूरा मामला क्या था ?
क्यों नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पूरे एक पखवाड़े बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया के तहत मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं और “वोट चोरी” के खिलाफ ‘वोटर अधिकार यात्रा’ शुरू करनी पड़ रही ?

जिन मतदाताओं का नाम नहीं था या जिन्हें मृत घोषित किया गया उनसे यू – ट्यूब के पत्रकारों और मीडिया के एक छोटे हिस्से को छोड़कर कितने लोग उनकी सुध लेने पहुंचे ? आज बिहार में बहुत कुछ घट रहा है, पर उस संदेश को लाने वाले संदेश वाहक और डाकिये कहां गुम हो गए ?
हम कॉर्पोरेट मीडिया को भूल भी जाएं, तो ये दिनकर, राहुल सांकृत्यायन ,नागार्जुन और फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ के बिहार से ये सवाल बनता है कि कहां गए वो साहित्यकार कवि जिनके शब्दों में बिहार का प्रेम, पीड़ा और मुद्दे कुछ ऐसे झलकते ,चमकते कि पूरा देश उसे पढ़ता, समझता और साथ खड़ा होता।
जब आज बिहार में बाढ़ आई है, तो बाढ़ पीड़ितों की पीड़ा को व्यक्त करने के लिए उनके बीच खड़े होकर ,रहकर कोई डाक आती दीख रही है क्या ?
इसी बिहार के धरती पुत्र रेणु ने पीड़ितों के दर्द को जिस तरह ‘ऋणजल-धनजल’ में लिखा वो रिपोर्ट वो वृत्तांत हर बारिश ,हर बाढ़ में सामने आ जाती है। 1975 की बाढ़ के बीच रेणु जी ने ‘ कुत्ते की आवाज़ ‘ ,’ जो बोले सो निहाल ‘ , ‘ पंछी की लाश ‘ , ‘कलाकारों की रिलीफ पार्टी ‘ , ‘ मानुष बने रहो ‘ के साथ बाढ़ का पल -पल का जो विवरण दिया, वो बाढ़ग्रस्त बिहार की तस्वीर ही नहीं ,ऐतिहासिक रिपोर्ट ही नहीं एक अहम् दस्तावेज है।
लिखते हैं – ” पानी बढ़ता जा रहा है, लेकिन , अब डर नहीं लग रहा। अब काहे का डर ?….दिन में सुवर के बच्चे जिस तरह डूबते बहते हुए मर रहे थे, उसी तरह मरने को तैयार हूं। किन्तु , चिचियाऊंगा नहीं उनकी तरह। मृत्यु की वंदना जाता हुआ मरूंगा …”
” दिल्ली के समाचार के बाढ़ , पटना के फतुहा ‘कैंप केंद्र ‘ से एक आवश्यक सूचना प्रसारित की जा रही है, आज किसी पेशेवर अनाउंसर की आवाज़ है —
भीषण बाढ़ के कारण , पटना नगर में पानी की आपूर्ति में बाधा पड़ गई है, अतः पेयजल का भीषण अभाव हो गया है …नागरिकों से अनुरोध है कि वे किसी भी प्रकार के पानी को भी पंद्रह मिनट तक उबालने के बाढ़ काम में ला सकते हैं …
किसी भी तरह के पानी का मतलब हुआ कि बाढ़ के पानी को भी पंद्रह मिनट तक उबालकर [छानकर नहीं ] पी सकते हैं ? …मैंने अपने कमरे के कोने में बैठे देवता से कहा –‘ अब इस शहर के सभी नागरिक ”परमहंस ” हो जायेंगे …तुमने कहा है न जिस दिन नाले के गंदे पानी और गंगा जल में कोई भेद नहीं मानोगे …लेकिन मैं परमहंस नहीं होना चाहता। दया करके मेरे ‘टैप’ को ‘ठप्प ‘ मत करना। ”
” यों पटना शहर भी बीमार ही है। इसके एक बांह में हैजे की सुईं का और दूसरी में टाइफाइड के टीके का घाव हो गया है। पेट में ‘टेप ‘ करके जलोदर का पानी निकाला जा रहा है। आँखें जो कंजंक्टिवाइटिस [जोय बांग्ला]– से लाल हुई थीं , तरह -तरह की नकली दवाओं के प्रयोग के कारण क्षीणज्योति हो गयी हैं।
कान तो एकदम चौपट ही समझिये –हियरिंग ऐड से भी कोई फायदा नहीं . बस , ‘आयरन लंग्स ‘ अर्थात रिलीफ की सांस के भरोसे अस्पताल के बेड पर पड़ा हुआ किसी तरह ‘हुक -हुक ‘ कर जी रहा है। ” ॐ सर्वविघ्नानुत्सराय हुं फट स्वाह ..”
इसी तरह 1966 के सूखे और अकाल पर रेणु ने अहसास करवाया भूख क्या है , बिहार कहाँ खड़ा है ? और हिन्दुस्तान की असली तस्वीर क्या है ?
रेणु की ये रिपोर्ट्स और साहित्य ही नहीं उनके संघर्ष ,आंदोलन और नेपाल क्रांति में शामिल होने की यादें अमर रहेंगी। राणाशाही के खिलाफ कोइराला के साथ उनके संघर्ष ‘नेपाली क्रांति कथा ‘ में दर्ज़ हैं। न जाने कितने किसान आंदोलनों में उन्होंने हिस्सा लिया ,जेल गए।
इसलिए रेणु सिर्फ एक महान लेखक ही नहीं ,सच्चे सामाजिक कार्यकर्ता ,सेनानी और उस दौर में ‘सम्पूर्ण क्रांति ‘ पर साफ़ समझ – दूर दृष्टि रखने वाले बुद्धिजीवी थे। इसे ‘मैला आँचल ‘ परती-परिकथा ‘ में सहज तौर पर महसूस किया जा सकता है।
रेणु के पात्र आज भी बिहार में जब दर्द झेल रहे ,जूझ रहे तो लगता है आज के बिहार के लिए रेणु कितने ज़रूरी हैं। जरूरत है, आज रेणु जैसे महान संदेश वाहक की जिनके हर शब्द पीड़ा ,यातना और मजबूरी का वैसा ही वर्णन लेकर निकलते और झकझोर जाते ।आज भी रेणु का साहित्य उतना ही प्रासंगिक है जितना तब था।
आज अगर रेणु बिहार में होते, तो जो देखते ,सोचते ,बोलते वही लिखते। बाढ़ पीड़ितों के साथ होते ,छात्रों के साथ,किसानों के साथ और वोट से कोई वंचित न हो इस बात के लिए प्रतिबद्ध रहते। रेणु की कलम ही नहीं चलती रही परिवर्तन के लिए उनकी मुट्ठियां भी उतनी ही तनती रही है। इसलिए, आज जब बिहार की तरफ नजर उठती है, तो रेणु बार -बार याद आते हैं।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं
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