उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपने इस्तीफे के लिए अपनी खराब सेहत को वजह बताया है, लेकिन जिन हालात में यह अभूतपूर्व कदम उठाया गया है, उससे कई गंभीर सवाल उठते हैं। धनखड़ ने मानसून सत्र के पहले दिन सदन की कार्यवाही में हिस्सा लिया था, लेकिन शाम को उनके इस्तीफे ने सबको चौका दिया। दरअसल सुबह उन्होंने कार्यमंत्रणा समिति की अहम बैठक में हिस्सा लिया था और उसके बाद यह बैठक शाम को फिर प्रस्तावित थी, जिसमें दो केंद्रीय मंत्री जेपी नड्डा और संसदीय कार्यमंत्री किरण रिजिजू को भी शामिल होना था, लेकिन वे इसमें शामिल नहीं हुए। यदि यह सच है कि नड्डा और रिजिजू की इस बैठक में गैरमौजूदगी की राज्यसभा के तत्कालीन सभापति धनखड़ को पूर्व सूचना नहीं थी, तो यह वाकई गंभीर मामला है। दरअसल जिस तेजी से घटनाक्रम चले हैं, उन्होंने उनके इस्तीफे के इर्द गिर्द अटकलों और अंदेशों को जन्म दिया है। वास्तव में खुद धनखड़ ने महज दस दिन पहले ही कहा था कि ईश्वर ने चाहा तो वे अपना कार्यकाल पूरा करेंगे। संसदीय परंपरा और कानून के जानकार धनखड़ ने 2022 में उपराष्ट्रपति का पद संभाला था और अगस्त 2027 तक उनका कार्यकाल था। उपराष्ट्रपति बनने से पहले वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे और उन्हें प्रधानमंत्री मोदी का पसंदीदा माना जाता रहा है। हालत यह हो गई थी कि विपक्ष ने उनके खिलाफ एक समय महाभियोग के जरिये पद से हटाने की नाकाम कोशिश तक की। और आज कांग्रेस उनके इस्तीफे को लेकर सरकार को घेर रही है, तो इसके पीछे की राजनीति को भी समझने की जरूरत है। निस्संदेह धनखड़ की सेहत सबसे ऊपर है, और सरकार तथा देश को इसकी चिंता होनी ही चाहिए। लेकिन, यह भी साफ होना चाहिए कि देश की संसदीय और लोकतांत्रिक संस्थाओं की गरिमा को ठेस कौन पहुंचा रहा है। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे से देश की संसदीय परंपरा और उपराष्ट्रपति पद की मर्यादा पर छाई धुंध छंटनी चाहिए।

