छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में बांग्लादेशी होने के संदेह के आधार पर हिरासत में लिए पश्चिम बंगाल के नौ श्रमिकों को भले ही उनके राज्य वापस भेज दिया गया हो, लेकिन प्रवासी मजदूरों पर जिस मनमाने ढंग से कार्रवाई की जा रही है, उसका संज्ञान लिया जाना जरूरी है। वास्तविकता यह है कि पश्चिम बंगाल से तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने जब एक्स पर वीडियो जारी कर छत्तीसगढ़ सरकार और पुलिस पर उनके क्षेत्र के प्रवासी मजदूरों के कथित अपहरण करने का आरोप लगाया तो सारा तंत्र हरकत में आ गया। पश्चिम बंगाल पुलिस की ओर से मीडिया में आए बयानों में तो यह भी दावा किया गया है कि बंगाल के 750 से भी अधिक प्रवासी मजदूरों को दिल्ली और ओडिशा सहित देश के अन्य राज्यों में बांग्लादेशी होने के शक में हिरासत में लिया गया है। यह स्थिति सचमुच चिंताजनक है और इससे लगता है कि इस तरह की कार्रवाइयां पूरे देश में एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) लागू किए जाने का पूर्वाभ्यास है। ऐसे में यह महज संयोग नहीं है कि जिन प्रवासी मजदूरों पर कार्रवाई की गई है, वे सब मुस्लिम हैं। इन प्रवासी मजदूरों पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के तहत उन्हें संदिग्ध मानकर कार्रवाई की गई और यह सब तब सामने आया जब उन मजदूरों की ओर से बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं का कोर्ट ने संज्ञान लिया। ओडिशा में हिरासत में लिए गए एक व्यक्ति के बारे में तो यह भी पता चला है कि पुलिस ने उसके आधार कार्ड और वोटर आई कार्ड को स्वीकार नहीं किया और उससे जन्म प्रमाण पत्र की मांग की। निस्संदेह केंद्र सरकार अवैध नागरिकों को देश से बाहर निकालने को लेकर गंभीर है, जैसा कि गृह मंत्रालय के इसी साल मई में सारे राज्यों को भेजे गए निर्देश से पता चलता है, लेकिन इसके साथ यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि देश के एक भी नागरिक को मनमानी कार्रवाई के जरिये देश निकाला न दे दिया।

