रांची। जन संस्कृति मंच (जसम) का 17वां राष्ट्रीय सम्मेलन (JSM National Conference) 12 और 13 जुलाई को झारखंड की राजधानी रांची के सोशल डेवलपमेंट सेंटर में धूमधाम से संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में देश भर से 300 से अधिक लेखक, कवि, कलाकार और बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया। फासीवाद की विभाजनकारी संस्कृति के खिलाफ एकता, सृजन और संघर्ष का संकल्प लेते हुए नए पदाधिकारियों और राष्ट्रीय कार्यकारिणी का चुनाव किया गया। मशहूर रंगकर्मी जहूर आलम को अध्यक्ष और लेखक-पत्रकार मनोज कुमार सिंह को महासचिव चुना गया।
फासीवाद के खिलाफ मजबूत आवाज
सम्मेलन का उद्घाटन सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. नवशरण सिंह ने किया। उन्होंने कहा कि आज देश में फासीवादी ताकतें हर तरफ हमला कर रही हैं। लोगों का आपस में मिलना-जुलना भी अपराध माना जा रहा है। उन्होंने उमर खालिद जैसे बुद्धिजीवियों को जेल में डाले जाने का जिक्र करते हुए कहा कि सत्ता दमन और विभाजन के हथियारों का खुलकर इस्तेमाल कर रही है। डॉ. सिंह ने सीएए के खिलाफ महिलाओं के आंदोलन और किसान आंदोलन की तारीफ की, उन्होंने जोर देकर कहा कि प्यार, एकता और हमारी सांस्कृतिक विरासत से ही फासीवाद को हराया जा सकता है।

लोकतंत्र पर खतरे की घंटी
जसम के राष्ट्रीय अध्यक्ष रविभूषण ने कहा कि 2014 के बाद से देश में विभाजनकारी ताकतें पहले कभी इतनी मजबूत नहीं थीं। उन्होंने चिंता जताई कि आज देश में कोई भी लोकतांत्रिक या संवैधानिक संस्था स्वतंत्र नहीं बची है। सभी लोकतांत्रिक स्तंभ ढह चुके हैं। वहीं, दस्तावेजी फिल्मकार बीजू टोप्पो ने झारखंड के विस्थापन विरोधी आंदोलनों का जिक्र किया और कहा कि यहाँ की जनता ने जल, जंगल, जमीन और संस्कृति को बचाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। उन्होंने गीत, कविता और नाटकों के जरिए फासीवाद से लड़ने की बात कही।
फासीवाद का तांडव
प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के महादेव टोप्पो ने कहा कि फासीवाद अब केवल आशंका नहीं, बल्कि खुलेआम तांडव मचा रहा है। उन्होंने मार्क्सवादी विचारक एजाज अहमद के हवाले से कहा कि भारत में सदियों से चली आ रही हिंसा ने फासीवाद के लिए रास्ता तैयार किया। उमर खालिद से लेकर फादर स्टेन स्वामी तक के मामलों में सत्ता का क्रूर चेहरा सामने आया है। प्रलेस फासीवाद के खिलाफ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने को तैयार है।
सांस्कृतिक आंदोलन की जरूरत
जम्मू विश्वविद्यालय के प्रो. राशिद ने कहा कि आज ऐसी घटनाएँ हो रही हैं, जिनके बारे में पहले सोचना भी मुश्किल था। उन्होंने गाजा में इजराइल की बर्बरता और ईरान पर साम्राज्यवादी हमलों का जिक्र किया। दस्तावेजी फिल्मकार संजय काक ने सुझाव दिया कि यूट्यूब, इंस्टाग्राम जैसे नए मंचों का उपयोग कर जनता तक अपनी बात पहुंचानी होगी। उन्होंने कहा कि जनता के मुद्दों पर बनी फिल्में अब ज्यादा लोगों तक पहुंच रही हैं, लेकिन सत्ता उनकी स्क्रीनिंग पर रोक लगा रही है। जलेस के एम जेड खान ने कहा कि आज देश को राजनीतिक से ज्यादा सांस्कृतिक आंदोलन की जरूरत है, क्योंकि सांप्रदायिक फासीवाद खुलेआम एक समुदाय को निशाना बना रहा है।
सुंदर दुनिया का सपना
इप्टा के शैलेन्द्र ने कहा कि हम एक सुंदर दुनिया के सपने से बंधे हैं। उन्होंने कहा कि बाजार और कॉरपोरेट हमारी सोच को नियंत्रित कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी को कॉरपोरेट का “पॉलिटिकल प्रोडक्ट” बताते हुए उन्होंने संस्कृति के जरिए इस व्यवस्था से लड़ने की बात कही। प्रो. आशुतोष ने कहा कि फासीवाद एक सांस्कृतिक प्रतिक्रांति है, जो आजादी की जगह भक्ति और समानता की जगह पितृसत्ता को बढ़ावा दे रही है। प्रो. उमा ने उमर खालिद की रिहाई के लिए एकजुटता का आह्वान किया।
नए पदाधिकारी और सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ
सम्मेलन के दूसरे दिन संगठनात्मक सत्र में मनोज कुमार सिंह ने फासीवाद की चुनौतियों और जसम की कार्ययोजना पर रिपोर्ट पेश की। विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों ने अपने सुझाव दिए, जिन्हें शामिल कर प्रतिवेदन पारित किया गया। जहूर आलम को अध्यक्ष और मनोज कुमार सिंह को महासचिव चुना गया। इसके अलावा, 52 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी और 213 सदस्यीय राष्ट्रीय परिषद का गठन हुआ। दोनों दिन शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए, जिनमें झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा और तेलंगाना के कलाकारों ने गीत, नृत्य, नाटक और कविताएँ प्रस्तुत कीं। ये प्रस्तुतियाँ सम्मेलन का मुख्य आकर्षण रहीं।

संकल्प के साथ समापन
सम्मेलन ‘हम होंगे कामयाब’ के गायन और फासीवाद के खिलाफ सांस्कृतिक आंदोलन को तेज करने के संकल्प के साथ समाप्त हुआ। प्रतिनिधियों ने अपने-अपने क्षेत्रों में जनता के बीच जाकर संस्कृति और एकता के जरिए फासीवाद से लड़ने की प्रतिबद्धता जताई। यह सम्मेलन लेखकों और कलाकारों को एक मंच पर लाया साथ ही देश में बढ़ते फासीवादी खतरों के खिलाफ एक मजबूत आवाज भी बुलंद की।