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लेंस संपादकीय

बिहार में बर्बरता

Editorial Board
Last updated: July 8, 2025 9:23 pm
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murder in purnia
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बिहार के पूर्णिया के एक गांव में जिंदा जला दिए गए आदिवासी परिवार के पास चुनाव आयोग के नए फरमान के मुताबिक मतदाता होने के प्रमाण थे या नहीं, पता नहीं, लेकिन उनके साथ की गई बर्बरता बताती है कि आजादी के आठ दशक बाद भी अशिक्षा, अंधविश्वास और असमानता की जड़ें कितनी गहरी हैं। मानवता को झकझोक देने वाली इस घटना के बारे में पता चला है कि पूर्णिया के मुफस्सिल थाने में एक परिवार को शक था कि हाल ही में उनके यहां हुई कुछ मौतों के लिए गांव की एक बुजुर्ग महिला जिम्मेदार है, जिसने जादू टोना कर उन्हें मार डाला! यह लोकतंत्र की कैसी कवायद है कि इस मध्ययुगीन बर्बरता के लिए बकायदा पंचायत बुलाकर मंजूरी ली गई और करीब दो सौ लोगों की भीड़ ने डायन बताई गई इस बुजुर्ग महिला, उसके बेटे और पोते तथा उनकी पत्नियों पर हमला बोला और फिर इन पांचों को पेट्रोल डालकर फूंक दिया गया। इस मामले में एक ओझा सहित कुछ लोगों की गिरफ्तारियां हुई हैं, लेकिन यह घटना बताती है कि कैसे आज भी अंधविश्वास की जड़ें कितनी गहरी हैं। और इस अंधविश्वास के निशाने पर महिलाएं हैं, जिन्हें छत्तीसगढ़ से लेकर बिहार और झारखंड में डायन या टोन्ही बताकर मार डाला जाता है। पूर्णिया की यह अकेली घटना यह बताने के लिए भी काफी है कि देश में आदिवासियों की क्या स्थिति है। यह कैसा विरोधाभास है कि भारत ने अभी अंतरिक्ष यात्राी शुभम शुक्ल की सफल अंतरिक्ष यात्रा का जश्न मना रहा है, दूसरी ओर बिहार के एक कोने में ज्ञान और विज्ञान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। दरअसल इस स्थिति के लिए सरकारों की प्राथमिकताएं भी जिम्मेदार हैं, मसलन बिहार को ही देखें तो साक्षरता के मामले यह देश का सबसे फिसड्डी राज्य है और यहां स्वास्थ्य का बजट राज्य के जीडीपी का सिर्फ 1.85 फीसदी है! 2013 से 2022 के बीच के उपलब्ध आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक नौ सालों में पूरे देश में अंधविश्वास के कारण 1064 लोगों की जान चली गई। अंधविश्वास के साथ ही गैरबराबरी से लड़ाई भी उतनी ही जरूरी है, क्योंकि अंततः ऐसी घटनाओं के पीछे गांव की आर्थिक-सामाजिक गैरबराबरी भी जिम्मेदार है, जैसा कि पूर्णिया के मामले में भी देखा जा सकता है, जहां मुख्य आरोपी रसूखदार है।

TAGGED:Bihar Law & OrderLens SampadkiyaPurnia
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