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लेंस संपादकीय

पचास साल बाद

Editorial Board
Last updated: June 25, 2025 10:08 pm
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Emergency in India
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आपातकाल के काले दौर को पचास साल बाद सिर्फ इसलिए याद किए जाने की जरूरत नहीं है, कि एक मनमाने फैसले के जरिये कैसे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने नागरिक आजादी को कठघरे में डाल दिया था, बल्कि इसलिए भी कि, आखिर उससे क्या सबक लिए गए। जेपी की अगुआई में विपक्ष के आंदोलन और 12 जून, 1975 के इलाहाबाद हाई कोर्ट के इंदिरा गांधी के लोकसभा के निर्वाचन को अवैध घोषित करने वाले फैसले की पृष्ठभूमि में लागू किए गए आपातकाल के बाद बड़ी संख्या में विपक्षी नेताओं को तो जेल में डाला ही गया था, बल्कि मीडिया पर भी सेंसरशिप लागू कर दी गई थी। बची-खुची कसर संविधानेतर सत्ता की तरह काम कर रहे संजय गांधी की सरपरस्ती में चले जबरिया नसबंदी कार्यक्रम ने पूरी कर दी थी। कुल मिलाकर वह काला दौर था, जिसने देश के संविधान को लेकर गंभीर चुनौती पेश की थी। 20204 में मोदी सरकार ने आपातकाल की याद को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए 25 जून को “संविधान हत्या दिवस” के रूप में मनाने का फैसला किया और आज सरकार और खासतौर से भाजपा ने इसे इस रूप में मनाया भी है, तो यह भी देखने की जरूरत है कि आखिर देश में नागरिक आजादी, संवैधानिक संस्थाओं और मीडिया की क्या स्थिति है? यही उदाहरण काफी होगा कि, पिछले दो सालों से जातीय हिंसा से जूझ रहे मणिपुर के हालात एक बानगी हैं, जहां जाने का वक्त अब तक प्रधानमंत्री को नहीं मिला है। संवैधानिक संस्थाओं की स्थिति को सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले से समझा जा सकता है, जिसमें उसने तमिलनाडु के राज्यपाल के राज्य सरकार के बिलों को रोकने के कदम को असंवैधानिक बताया था। सबसे बुरा हाल मीडिया का है, आपातकाल के दौर में जिसके बारे में पूर्व उप प्रधानमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था, कि आपको झुकने के लिए कहा था, आप तो रेंगने लगे। कल ही हमने यहां ओडिशा की घटना पर लिखा था, जहां दो दलितों को किस तरह से कथित तौर पर मवेशी चोरी के आरोप में अपमानित किया गया था। यह सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि प्रवृत्ति है। आखिर इस संविधान ने सरकार को इतना नाजुक तो नहीं बनाया है कि वह एक महिला प्रोफेसर से डर जाए और सिर्फ अपनी आलोचना के खिलाफ उस पर मामले थोप दे? हमारा संविधान जीवंत दस्तावेज है और यही वक्त है, जब केंद्र और राज्य की सरकारें संविधान की राह पर चलकर नागरिक आजादी को महफूज रखें।

TAGGED:EditorialEmergency in Indiaindra gandhiNarendra Modi
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