दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की करारी हार महज बारह साल में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल करने वाली इस पार्टी के बिखराव की कहानी कह रही है, जिसने देश में नए तरह की राजनीति करने का दावा किया था। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और उनके सबसे भरोसेमंद मनीष सिसौदिया का अपनी सीटें भी न बचा पाना सिर्फ चुनावी हार नहीं है, बल्कि यह उस पार्टी के क्षरण को दिखा रहा है, जिसने दिल्ली के लोगों से वादे तो बड़े बड़े किए थे, लेकिन जिन्हें जमीन पर उतार नहीं सकी। उलटे कथित शराब घोटाले सहित भ्रष्टाचार से जुडे अन्य मामलों ने केजरीवाल को कठघरे में खड़ा कर दिया। आम आदमी पार्टी और केजरीवाल वैचारिक धरातल पर तो खैर पहले ही कमजोर थे। दूसरी ओर दिल्ली की सत्ता में सत्ताइस साल बाद वापसी करने वाली भाजपा के सामने यह चुनौती होगी कि वह उन वादों और दावों को पूरा करे जिन्हें लेकर उसने केजरीवाल को तिहाड़ तक का रास्ता दिखाया है। जाहिर है, दिल्ली में एक भी सीट न जीत पाने वाली कांग्रेस और इंडिया गठबंधन फिर उस चौराहे पर खड़े हैं, जहां से भाजपा 2024 के चुनाव के बाद काफी आगे निकल चुकी है! वास्तव में यह चुनाव अरविंद केजरीवाल के लिए याद रखा जाएगा, जिन्होंने सड़क के रास्ते सत्ता हासिल की थी, और अब दिल्ली की जनता ने उन्हें वापस सड़क पर भेज दिया है। मगर लाख टके का सवाल यही है कि क्या सत्ता पर सवार हो चुके केजरीवाल आंदोलन के लिए तैयार हैं?
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