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लेंस रिपोर्ट

World View : भारतीय बाजारों के लिए खतरनाक होता चीनी प्रतिबंध

सुदेशना रुहान
सुदेशना रुहान
Byसुदेशना रुहान
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Published: June 20, 2025 3:00 PM
Last updated: June 21, 2025 9:58 AM
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रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REE) यानि  दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर चीन द्वारा अचानक रोक लगाये जाने से, भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग एक गहराते संकट से गुज़र रहा है। सरकार ने इसके सँदर्भ में हालिया निर्देश जारी किये हैं जिसके तहत, भारतीय उपक्रम, इंडियन रेयर अर्थ लिमिटेड (IREL), को जापानी कंपनी टयोत्सू- टोयोटा से अपने 13 साल के करार को स्थगित करने कहा गया है। ऑटोमोबाइल और उद्योग प्रमुखों के साथ हुई एक बैठक में भारतीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने IREL से कहा है कि दुर्लभ धातुओं, विशेष रूप से नियोडिमियम का निर्यात बंद कर दिया जाए। इसका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों में होता है। ऑटोमोबाइल के अलावा, सेमीकंडक्टर, मोबाइल फ़ोन और मेडिकल इंस्टूमेंट बनाने के लिए भी इन धातुओं की ज़रुरत पड़ती है। 

खबर में खास
क्यों है दुर्लभ धातु जरूरी…चीन की मनमानीभारत पर इसका असरआगे क्या...

रॉयटर्स के अनुसार, चीन दुर्लभ धातुओं के मामले में 90% की हिस्सेदारी के साथ दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है। अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ और निर्यात नियंत्रणों के जवाब में, अप्रैल 2025 से चीन ने दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं। इससे  दुनियाभर के ऑटोमोबाइल और हाई-टेक उद्योग प्रभावित हो रहे हैं, विशेषकर भारत। रणनीतिक दबाव बनाये रखने हेतु, भारत को चीन केवल एक महीने की आपूर्ति के लिए ही ये धातु निर्यात करता है। जबकि अमरीका और यूरोप के लिए ऐसी बाध्यता नहीं है। 

आज भारत की चिंता चीन से केवल निर्यात के रोक को ख़त्म करना ही नहीं, बल्कि घरेलू बाज़ार को आत्मनिर्भर बनाना भी है- जिससे चीन के औद्योगिक और सामरिक दमन को ख़त्म किया जा सके। 

क्यों है दुर्लभ धातु जरूरी…

दुर्लभ धातु या रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs) दरअसल, 17 रासायनिक तत्वों का समूह हैं, जिसमें 15 लैंथेनाइड्स, स्कैंडियम और यिट्रियम जैसे धातू शामिल हैं। ये ज़रूरी इसलिए हैं क्योंकि इनके गुण दूसरी धातुओं के प्रदर्शन को बेहतर बनाते हैं। इसकी वजह से किसी भी तकनीकि सामान को छोटा और हल्का बनाया जा सकता है। रोज़मर्रा के उपकरण जैसे मोबाइल फोन और कंप्यूटर से लेकर, हाईटेक मेडिकल इंट्रूमेंट जैसे MRI मशीन, सर्जरी उपकरण, और कुछ कैंसर की दवाओं में भी ये दुर्लभ धातु प्रयोग होते  हैं।

रक्षा तकनीक जैसे- सैटेलाइट कम्युनिकेशन, गाइडेंस सिस्टम और हवाई जहाज़ में। इसके अलावा ग्रीन टेक्नोलॉजी, इलेक्ट्रिक वाहन और सबसे ज़रूरी- ऑटोमोबाइल बैटरी में इसका विधिवत इस्तेमाल होता है।  

चीन की मनमानी

दुर्लभ धातु वास्तव में बहुत दुर्लभ नहीं हैं, और अपने नाम के विपरीत, धरती की सतह पर प्रचूर मात्रा में पाए जाते हैं। लेकिन इसकी खनन प्रक्रिया बहुत महंगी और जटिल है— खासकर उन देशों में जहां खनन और पर्यावरण क़ानून सख़्त हैं। दुर्लभ धातुओं का व्यावसायिक उपयोग शुरू हुआ था 60 के दशक में। उस समय अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य में इनका ज़्यादातर खनन होता था।

मगर 1990 तक कहानी बदल गयी और चीन इनका सबसे बड़ा उत्पादक बन गया। कारण- सस्ते मज़दूर और पर्यावरण के नियमों का ज़ोरदार उल्लंघन। साल 2000 तक दुनिया के 95% से ज़्यादा दुर्लभ धातुओं का खनन सिर्फ चीन में होने लगा जिससे चीन ने “माइन से लेकर मैग्नेट तक” एक मज़बूत इंडस्ट्री खड़ी कर ली। इस प्रक्रिया में दुर्लभ धातुओं को उच्च क्षमता वाले परमानेंट मैग्नेट में परिवर्तित किया जाता है। ये मैग्नेट इलेक्ट्रिक वाहन, पवन टरबाइन और रक्षा प्रणालियों के लिए बेहद ज़रूरी होते हैं।  

अमरीकी सरकार ने चीन की इस सप्लाई चेन को राष्ट्रीय चिंता का विषय माना है। 2021 के “Foreign Policy Research Institute” की एक रिपोर्ट के अनुसार- अमरीका और सहयोगी देशों के लिए 1970 के अरब तेल संकट के बाद ये दूसरा सबसे बड़ा संकट है। 

इसी को केंद्र में रखकर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बड़ा रणनीतिक क़दम उठाया है। 30 अप्रैल 2025 को अमेरिका ने यूक्रेन के साथ एक महत्वपूर्ण समझौते पर करार किया- जिसके तहत यूक्रेन को सैन्य समर्थन देने के बदले,  भविष्य में उसके सभी दुर्लभ धातुओं के खदान और खनन में अमरीका को प्राथमिकता दी जाएगी। माना जा रहा है कि यूक्रेन के पास ग्रेफाइट, टाइटेनियम और लिथियम जैसे रणनीतिक खनिजों का विशाल भंडार है, जो अब अमरीका के हवाले है।  

भारत पर इसका असर

चीन सरकार ने इस वर्ष अप्रैल से कुछ दुर्लभ धातु और उनसे जुड़े मैग्नेट के निर्यात पर विशेष लाइसेंस अनिवार्य कर दिया है। इन सामग्रियों के निर्यात पर लगाई गई रोक का असर अब भारत के ऑटोमोबाइल और घरेलू उपकरण क्षेत्र पर दिखने लगा है। मई 2025 के अंत तक, भारत सरकार ने करीब 30 भारतीय कंपनियों के आयात अनुरोधों को स्वीकृति दी थी, लेकिन चीन की ओर से अब तक किसी भी अनुरोध को मंज़ूरी नहीं मिली है- और एक भी शिपमेंट भारत नहीं पहुंचा है।

रिपोर्ट्स के अनुसार, इस आपूर्ति में देरी के कारण देश में 2 से 6 महीने तक निर्माण कार्य रुक सकता है, और उत्पादों की क़ीमत में 5–8 % तक की बढ़ोतरी हो सकती है। जून की शुरुआत में मारुति सुज़ुकी ने बताया कि फिलहाल उत्पादन पर इसका सीधा असर नहीं पड़ा है, लेकिन कंपनी इस विषय पर सरकार के साथ संपर्क बनाए हुए है। सुज़ुकी मोटर्स ने पहले ही अपने “स्विफ्ट कार” का उत्पादन चीन के प्रतिबंधों के चलते भारत में स्थगित कर दिया है। 

नए प्रतिबंधों के बीच भारत ने रणनीतिक स्तर पर अपनी आपूर्ति श्रृंखला को सुरक्षित करने की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाए हैं। इस मुद्दे पर वाणिज्य सचिव सुनील बर्थवाल ने पत्रकारों को बताया “भारत सरकार इन उद्योगों की मदद कर रही है, ताकि वे चीन में अपने साझेदारों से बातचीत कर सकें। साथ ही, विदेश मंत्रालय और वाणिज्य विभाग ने भी चीन के राजदूत से इस विषय पर चर्चा की है।” 

इसके साथ ही भारत- ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम और ब्रिटेन जैसे देशों के साथ वैकल्पिक साझेदारी  भी तलाश रहा है, ताकि चीन पर निर्भरता को कम किया जा सके। 

आने वाले वर्षों में दुर्लभ धातुओं की संभावित कमी से निपटने के लिए व्यापक घरेलू तैयारी भी ज़रूरी है। इस दिशा में, IREL, विशाखापट्नम में एक अत्याधुनिक “रेयर-अर्थ-परमानेंट-मैग्नेट-प्लांट” स्थापित कर रही है, जहां “समेरियम-कोबाल्ट मैग्नेट” का उत्पादन किया जाएगा।

साथ ही, भारत घरेलू खनन, प्रसंस्करण तकनीक और रीसाइक्लिंग क्षमताओं को बेहतर बनाने के लिए अनुसंधान में भी निवेश कर रहा है। सरकार ‘नेशनल क्रिटिकल मिनरल मिशन’ के तहत रीसाइक्लिंग और सर्कुलर इकोनॉमी को विशेष बढ़ावा दे रही है, जिससे प्राकृतिक खनिज आयात पर निर्भरता को कम किया जा सके। 

आगे क्या...

भारत के पास दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा दुर्लभ धातुओं का भंडार है — करीब 69 लाख मीट्रिक टन, लेकिन बावजूद इसके देश में अब तक मेटल-टू-मैग्नेट बनाने जैसी कोई घरेलू सुविधा उपलब्ध नहीं है। इसी की वजह से चीन के निर्यात प्रतिबंधों ने भारत को आपूर्ति संकट के मुहाने पर ला कर खड़ा दिया है। बेज़िंग से पर्मिट हासिल करना आज पहली प्राथमिकता है।

विशेषज्ञों के अनुसार भविष्य में भारत को एक किफ़ायती तकनीकी इकोसिस्टम की ज़रुरत पड़ेगी- जो केवल बड़े शहरों में न होकर, मझले और छोटे शहरों में विकसित हों। लघु आपूर्ति के लिए निर्यात को कम कर, थाईलैंड और म्यांमार से आयात बढ़ाने पर भी ज़ोर देना होगा। देश में रेयर अर्थ मैग्नेट्स के उत्पादन के लिए वित्तीय प्रोत्साहन और रीसाइकिलिंग भी प्रभावी क़दम होंगे।

और हाँ, इन सबके बीच ऐसी औद्यगिक परिस्थितियां बनानी होंगी जो पृथ्वी के लिए अनुकूल होने के साथ- दुर्लभ धातु और चीन पर हमारी निर्भरता को हमेशा के लिए खत्म कर दे।

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