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Home » अनदेखी नायिकाएं : घरेलू कामगार महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई

लेंस रिपोर्ट

अनदेखी नायिकाएं : घरेलू कामगार महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई

Poonam Ritu Sen
Last updated: June 17, 2025 6:57 pm
Poonam Ritu Sen
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WORLD DOMESTIC WORKERS DAY
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आज जब विश्व भर में WORLD DOMESTIC WORKERS DAY (अंतर्राष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस) मनाया जा रहा है एक सवाल बार-बार सामने आ रहा है, क्या भारत में इन अनदेखी नायिकाओं की मेहनत और बलिदान को कभी वास्तविक सम्मान मिलेगा? हर साल 16 जून को मनाए जाने वाले इस दिन का उद्देश्य घरेलू कामगारों, खासकर महिलाओं के योगदान को पहचानना, उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और शोषण व असमानता को खत्म करना है। लेकिन क्या यह सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह गया है?

खबर में खास
एक अधूरा वादा ?मांगें जो अनसुनी रह गईंसवाल जो मांगते हैं जवाब

एक अधूरा वादा ?

2011 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने कन्वेंशन नंबर 189 को अपनाकर घरेलू कामगारों के लिए उचित कार्य और अधिकारों की गारंटी दी थी। घरों में सफाई, खाना पकाने, बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल जैसे कार्यों से हमारे जीवन को आसान बना रहें हैं। ILO के अनुसार वैश्विक स्तर पर 7.5 करोड़ से अधिक घरेलू कामगार हैं, जिनमें ज्यादातर महिलाएं हैं। भारत में ई-श्रम पोर्टल पर 2.89 करोड़ पंजीकृत कामगारों में 95.8% महिलाएं हैं जबकि एक संस्था कोहेसन फॉउंडेशन के अनुसार हमारे देश में लगभग 9 करोड़ घरेलू कामगार महिलायें हैं जबकि एन.एस.एस.ओ के 2004-05 के 61वें चरण के सर्वे के अनुसार देश में लगभग 4.75 करोड़ घरेलू कामगार महिलायें हैं।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने घरेलू कामगार महिलाओं के अधिकारों और सुरक्षा को लेकर महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं। 29 जनवरी 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि घरेलू कामगारों, खासकर महिलाओं के साथ बहुत शोषण हो रहा है और उनके लिए कानून में कमी है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को विशेष कानून बनाने का निर्देश दिया साथ ही श्रम, महिला एवं बाल विकास, विधि और सामाजिक न्याय मंत्रालयों की विशेषज्ञ समिति गठित करने का आदेश दिया जिसे छह महीने में रिपोर्ट देनी है।

अदालत ने केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों की घरेलू कामगारों के लिए सामाजिक सुरक्षा और न्यूनतम मजदूरी जैसे प्रावधानों की सराहना की। केरल ने घरेलू कामगारों के लिए न्यूनतम मजदूरी अधिनियम लागू किया और मातृत्व लाभ तथा दुर्घटना बीमा जैसी सुविधाएं प्रदान की हैं, तमिलनाडु ने घरेलू कामगारों के लिए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित की है और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं जैसे स्वास्थ्य बीमा और पेंशन की शुरुआत की है, जबकि महाराष्ट्र ने 2008 में ‘महाराष्ट्र घरेलू कामगार कल्याण नियम’ लागू कर उनके पंजीकरण और लाभ सुनिश्चित किए हैं, इन राज्यों के कदमों से घरेलू कामगार महिलाओं को कुछ राहत मिली है।

इसके अलावा 1995 के ‘दिल्ली डोमेस्टिक वर्किंग वीमेन फोरम’ मामले में बलात्कार पीड़िताओं के लिए कानूनी सहायता और संवेदनशीलता बढ़ाने तथा घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत ‘साझा घर’ अधिकार को विस्तारित करने जैसे ऐतिहासिक निर्णय भी लिए गए हैं। हालांकि इन फैसलों के बावजूद कार्यान्वयन में कमी और घरेलू काम को औपचारिक कार्यस्थल न मानने से चुनौतियां बनी हुई हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से ठोस कदम उठाने की बार-बार अपील की है लेकिन कई राज्यों में इस दिशा में अब तक कोई कदम नहीं उठाये गए हैं ।

भारत में घरेलू कामगार महिलाओं की हालत चिंताजनक है। सरकार और राज्यों ने प्रावधान बनाए 2013 का यौन उत्पीड़न अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी (आंध्र प्रदेश, बिहार, केरल में), सामाजिक सुरक्षा (मध्य प्रदेश में जॉब कार्ड) और केंद्र ने 2018 में महिला सुरक्षा प्रभाग व 2019 में ट्रैकिंग प्रणाली शुरू की। लेकिन क्या इनका असर जमीन पर दिखता है? कार्यान्वयन की कमी, घरेलू काम को कार्यस्थल न मानना, कम वेतन, लंबे कार्य घंटे और कोविड-19 के बाद बढ़ा भेदभाव इन महिलाओं को असुरक्षा के जाल में जकड़े हुए हैं। अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने से सामाजिक सुरक्षा से वंचित रहना और आर्थिक निर्भरता शोषण को बढ़ावा दे रही है। जागरूकता की कमी और शिकायत दर्ज करने में हिचक क्या ये सवाल नहीं उठाते कि हमारा सिस्टम कितना संवेदनशील है?

मांगें जो अनसुनी रह गईं

‘घरेलू कामगार कल्याण समिति, रायपुर’ और ‘कोहेसन फाउंडेशन ट्रस्ट’ जैसे संगठन इन महिलाओं के लिए लड़ रहे हैं। उनकी मांगें साफ हैं, छुट्टी और मातृत्व अवकाश, न्यूनतम वेतन, मजदूर सुरक्षा, बंधुआ मजदूरी से मुक्ति, सामाजिक कल्याण में शामिल करना, सुरक्षित कार्यस्थल, स्वच्छता का अधिकार, संगठन बनाने की आजादी और मालिकों से न्यायिक संरक्षण। कोहेसन का अभियान 15 दिनों में 1000 महिलाओं तक पहुंचने और 7000 लोगों को जागरूक करने का लक्ष्य रखता है। लेकिन क्या ये प्रयास पर्याप्त हैं जब तक नीतियां धरातल पर लागू न हों? कम वेतन, अनियमित कार्य घंटे, कार्यस्थल पर शोषण, सामाजिक सुरक्षा तक सीमित पहुंच और कानूनी संरक्षण की कमी ये चुनौतियां इन महिलाओं के लिए एक अनसुलझी पहेली बन गई हैं।

सवाल जो मांगते हैं जवाब

द लेंस आज छत्तीसगढ़ घरेलू कामगार कल्याण संघ के बीच पहुंचकर उनसे इन समस्याओं के बारे में बात की, इस संघ की अध्यक्ष सपना तांडी ने कहा कि ‘हर घरेलू कामगार महिला सरकार के सभी तरह के सामाजिक और आर्थिक योजनाओं की हकदार है’ सचिव स्वाति ने कहा ‘हमारी 11 सूत्रीय मांगे हैं और हम उसे पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है इसके लिए हम शासन प्रशासन के सभी स्तर पर बात करने की दिशा में प्रयास कर रहें हैं, इसके अलावा द लेंस ने जब कुछ और घरेलू कामगार महिलाओं से बात की तो किसी ने बताया की अधिकांश कार्य करने वाले घरों पर शौचालय का उपयोग नहीं करने दिया जाता, बारिश के दिनों में आने जाने के लिए छाता मांगे जाने पर छाता नहीं दिया जाता, चोरी के इल्जाम लगने के बाद अन्य घरों में काम मिलना मुश्किल होता है चाहे चोरी की गयी हो या नहीं, काम की अनिश्चितता और कम वेतन दिए जाने का डर हर पल उन्हें सताता है ऐसे ही कई सवाल हैं जिसके जवाब किसी के पास नहीं ।

क्या घरेलू काम को राष्ट्रीय कार्यस्थल के रूप में मान्यता देकर इन महिलाओं को सम्मान मिलेगा? क्या 95.8% महिलाओं की मेहनत के बिना समाज चल सकता है फिर उन्हें क्यों नजरअंदाज किया जाता है? क्या समय नहीं आ गया कि इन अनदेखी नायिकाओं के अधिकारों को प्राथमिकता बनाया जाए? घरेलू कामगार महिलाओं की स्थिति बेहतर करने के लिए मजबूत नीतियों, जागरूकता और संसाधनों की सख्त जरूरत है। आज वर्ल्ड डोमेस्टिक वर्कर्स डे पर क्या हम इनके सम्मान और अधिकारों के लिए वादा करेंगे या यह दिन भी सिर्फ एक खामोश स्मृति बनकर रह जाएगा?

TAGGED:HOUSE MAID IN INDIAILOLESS WAGESNSSO SURVEYPOOR CONDITION OF WOMEN IN INDIASOCIAL SECURITYTop_NewsWORLD DOMESTIC WORKERS DAY
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पूनम ऋतु सेन युवा पत्रकार हैं, इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद लिखने,पढ़ने और समाज के अनछुए पहलुओं के बारे में जानने की उत्सुकता पत्रकारिता की ओर खींच लाई। विगत 5 वर्षों से वीमेन, एजुकेशन, पॉलिटिकल, लाइफस्टाइल से जुड़े मुद्दों पर लगातार खबर कर रहीं हैं और सेन्ट्रल इण्डिया के कई प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में अलग-अलग पदों पर काम किया है। द लेंस में बतौर जर्नलिस्ट कुछ नया सीखने के उद्देश्य से फरवरी 2025 से सच की तलाश का सफर शुरू किया है।
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