द लेंस डेस्क । MBBS-BAMS INTEGRATION आज के दौर में बढ़ती स्वास्थ्य समस्याओं ने लोगों का नजरिया बदल दिया है। कई लोग अब एलोपैथी छोड़कर होलिस्टिक मेडिसिन की ओर बढ़ रहे हैं। अमेरिका की नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के मुताबिक होलिस्टिक मेडिसिन स्वास्थ्य को देखने का एक तरीका है, जो शरीर, मन, आत्मा और भावनाओं को जोड़कर सेहत को बेहतर बनाने पर जोर देता है। लेकिन इस बीच केंद्र सरकार के जवाहरलाल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्टग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (JIPMER), पुडुचेरी में MBBS और BAMS को एकीकृत करने के प्रस्ताव ने बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने इसे ‘अवैज्ञानिक’ और मरीजों के लिए जोखिम भरा बताते हुए कड़ी निंदा की है। IMA का कहना है कि यह मिश्रण न डॉक्टरों के लिए और न ही मरीजों के लिए फायदेमंद है।
MBBS आधुनिक विज्ञान पर आधारित है जिसमें एनॉटमी, रोगों का अध्ययन और क्लिनिकल ट्रायल्स शामिल हैं। दूसरी ओर, BAMS आयुर्वेद पर आधारित है, जो शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कुछ खास विचारों पर काम करता है। इसमें दोष (जैसे वात, पित्त, कफ – शरीर के तीन मुख्य ऊर्जा प्रकार), प्राण (जीवन शक्ति या सांस की ऊर्जा), और धातु (शरीर के सात मूल तत्व, जैसे रक्त, मांसपेशियाँ) जैसी अवधारणाएँ शामिल हैं। ये आयुर्वेद के पारंपरिक तरीके हैं, जो प्रकृति और शरीर के संतुलन पर ध्यान देते हैं, लेकिन ये आधुनिक विज्ञान के तरीकों से काफी अलग हैं। इन दोनों को एक साथ पढ़ाना शैक्षणिक रूप से गलत और लापरवाही भरा है क्योंकि यह छात्रों को किसी एक प्रणाली में पूरी तरह निपुण होने से रोक सकता है। दोनों ही कोर्स 5.5 साल के हैं और इन्हें एक साथ सिखाना शिक्षा की गुणवत्ता को कमजोर करेगा। IMA और FAIMA डॉक्टर्स एसोसिएशन ने चेतावनी दी है कि इससे ‘हाइब्रिड डॉक्टर’ तैयार होंगे जो न तो MBBS में और न ही BAMS में पूरी तरह माहिर होंगे, जिससे मरीजों की जान खतरे में पड़ सकती है। चीन का उदाहरण भी सामने है जहाँ आधुनिक और पारंपरिक चिकित्सा को मिलाने की कोशिश नाकाम रही।

इस प्रस्ताव को सरकार की ‘हिंदू सांस्कृतिक विरासत’ को बढ़ावा देने की नीति से जोड़ा जा रहा है। आयुर्वेद को स्वास्थ्य सुधार से ज्यादा सांस्कृतिक प्रतीक के तौर पर पेश किया जा रहा है जिससे गैर-हिंदू समुदाय हाशिए पर महसूस कर सकते हैं। कुछ समर्थक जैसे डॉ. राकेश नागर और डॉ. योगेश यादव इसे राष्ट्रीय स्वास्थ्य जरूरतों का हिस्सा मानते हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की सिफारिशों का हवाला देते हैं। लेकिन IMA ने सरकार से अपील की है कि चिकित्सा की शुद्धता को बनाए रखा जाए और इस ‘गलत कदम’ का विरोध किया जाए। विशेषज्ञ सुझाव देते हैं कि होलिस्टिक मेडिसिन को जीवनशैली बदलने के तरीके के रूप में अपनाया जा सकता है लेकिन इसे गंभीर बीमारियों के इलाज की तुलना में नहीं देखना चाहिए। सरकार को बुनियादी ढांचे, कर्मचारी कमी और स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच जैसी समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए।
डॉ राकेश गुप्ता, MS ENT, राज्य अध्यक्ष, AHPI (Association of Healthcare Providers) ने इस विषय पर द लेंस से कहा आयुर्वेद और मॉडर्न मेडिसिन को एक साथ जोड़ने की कोशिश पहले भी कई बार हुई है लेकिन इंडियन मेडिकल एसोसिएशन और अन्य संगठनों के विरोध के कारण यह रुक गया। दोनों प्रणालियाँ अलग-अलग हैं, और इन्हें मिलाना न तो इनके लिए फायदेमंद है और न ही मरीजों के लिए। सबसे बड़ी बात यह है कि कोई भी चिकित्सा पद्धति इन्हें एक साथ पढ़ाने की अनुमति नहीं देती, क्योंकि दोनों की शिक्षा का स्तर और दृष्टिकोण अलग है। इसलिए दोनों को अलग-अलग रखना बेहतर है। मरीजों का इलाज भी अलग-अलग होना चाहिए। अन्य देशों, जैसे चीन में, दोनों को मिलाने का प्रयोग असफल रहा है। इस तरह के कदम बिना शिक्षा विशेषज्ञों की सलाह के उठाना ठीक नहीं होगा। बेहतर होगा कि पहले विशेषज्ञों की राय ली जाए और फिर वैज्ञानिक शोध के आधार पर आगे बढ़ा जाए। भारत में जड़ी-बूटियों का खजाना है, जिसे वैज्ञानिक स्तर पर विकसित करना चाहिए। आयुर्वेद और मॉडर्न मेडिसिन को अलग-अलग रखते हुए दोनों का उपयोग करना चाहिए। आजकल कुछ लोग होलिस्टिक मेडिसिन की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। होलिस्टिक मेडिसिन में कई पद्धतियों को मिलाकर इलाज किया जाता है, लेकिन कुछ बीमारियों के इलाज का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं होता। इससे मरीजों की स्थिति जटिल हो सकती है। इसलिए आयुर्वेद और मॉडर्न मेडिसिन को अलग रखकर, वैज्ञानिक शोध के साथ आगे बढ़ना चाहिए ताकि दोनों का सही उपयोग हो सके।
इसके अलावा डॉ. संजय शुक्ला, गवर्नमेंट आयुर्वेद कॉलेज, रायपुर में प्रोफेसर है उन्होंने द लेंस से बातचीत में बताया कि MBBS और BAMS को एक साथ लाने का प्लान तभी कामयाब होगा जब आयुर्वेद और मॉडर्न मेडिसिन को एक-दूसरे के खिलाफ देखने की बजाय एक-दूसरे का साथी बनाया जाए। उनके मुताबिक दोनों का अपना-अपना फायदा है और अगर इन्हें सही तरीके से जोड़ा जाए, तो हेल्थकेयर में बड़ा बदलाव आ सकता है।
डॉ. शुक्ला बताते हैं कि आयुर्वेद लाइफस्टाइल को ठीक करने और बीमारियों से बचने में जबरदस्त है। जैसे कि तनाव, डायबिटीज, या BP जैसी लाइफस्टाइल की बीमारियों को कंट्रोल करने में योग, मेडिटेशन, और आयुर्वेदिक दवाइयाँ बहुत काम आती हैं। ये इम्यूनिटी बढ़ाने और शरीर को बैलेंस में रखने में मदद करते हैं। लेकिन जब बात गंभीर बीमारियों की आती है, जैसे कैंसर, हार्ट अटैक, या इमरजेंसी सर्जरी, तो वहाँ मॉडर्न मेडिसिन की जरूरत पड़ती है, क्योंकि ये साइंस और टेस्टिंग पर बेस्ड है।

वो सुझाव देते हैं कि सरकार को इस एकीकरण को लागू करने से पहले कुछ जरूरी चीजें करनी होंगी। सबसे पहले, आयुर्वेद के तरीकों पर ढंग से साइंटिफिक रिसर्च होनी चाहिए, ताकि ये साबित हो कि वो कितने असरदार हैं। बिना प्रूफ के कुछ भी लागू करना रिस्की हो सकता है। दूसरा, हेल्थकेयर का ढांचा मजबूत करना होगा – जैसे हॉस्पिटल्स में बेहतर सुविधाएँ, ट्रेंड स्टाफ, और गाँव-देहात में मेडिकल सर्विसेज की पहुंच बढ़ानी होगी। डॉ. शुक्ला का मानना है कि इस एकीकरण का मकसद ‘आधा-अधूरा डॉक्टर’ बनाना नहीं होना चाहिए, जो न आयुर्वेद में पूरा जानता हो और न मॉडर्न मेडिसिन में। इसके बजाय, डॉक्टरों को दोनों की बेसिक समझ दी जाए, ताकि वो मरीज की जरूरत के हिसाब से सही ट्रीटमेंट चुन सकें। मिसाल के तौर पर, आयुर्वेद से बीमारी को रोकने या लाइफस्टाइल सुधारने में मदद ली जा सकती है, और गंभीर केस में मॉडर्न मेडिसिन का सहारा लिया जा सकता है।
वो ये भी कहते हैं कि सरकार को एक साफ और सॉलिड पॉलिसी बनानी होगी, जिसमें मरीजों की सेफ्टी, एजुकेशन की क्वालिटी, और दोनों मेडिकल सिस्टम्स की खासियत को बरकरार रखा जाए। अगर ये कदम सही दिशा में और साइंस के साथ उठाया जाए, तो भारत हेल्थकेयर में दुनिया के लिए मिसाल बन सकता है।