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देश

क्या सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल पाकिस्तान को आतंकवाद का पनाहगार साबित कर पाया ?

आवेश तिवारी
आवेश तिवारी
Published: June 6, 2025 7:56 PM
Last updated: June 7, 2025 2:06 PM
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स्पेन के विदेश मंत्री और उच्च अधिकारियों के साथ भारतीय प्रतिनिधि मंडल।
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नई दिल्ली। भारत का सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल 33 देशों की राजधानियों का पिछले कई दिनों से दौरा कर रहा है। अलग-अलग दलों के 51 सांसदों के अलावा कई राजनयिक, पूर्व केंद्रीय मंत्री और नौकरशाह पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को प्रश्रय देने की राजनीति के खिलाफ समर्थन हासिल करने में जुटे हैं। लेकिन बड़ा सवाल यह खड़ा होता है कि क्या यह प्रतिनिधिमंडल अपने उद्देश्यों में सफल रहा है?

खबर में खास
कितना सफल रहा सर्वदलीय दौराक्या बदली पाकिस्तान की वैश्विक स्थितिमहत्वपूर्ण देशों में पहुंचा प्रतिनिधिमंडलन बड़े नेता मिले, न मीडिया कवरेजसिर्फ दौरों से नहीं बनेगी बात

प्रतिनिधिमंडल में शामिल घोसी सांसद राजीव राय द लेंस को कहते हैं कि थोड़ा-बहुत फर्क तो जरूर पड़ता है, लेकिन पाकिस्तान भी उन-उन देशों में अपने प्रतिनिधिमंडल भेज रहा है, जहां-जहां हम गए। द लेंस ने इस दौरे के नतीजों को अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों से बातचीत में टटोलने की कोशिश की, तो एक बात साफ समझ में आई कि सभी दौरे के परिणामों से ज्यादा इसके होने पर संतुष्ट दिखे।

कितना सफल रहा सर्वदलीय दौरा

यह स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं है कि केंद्र सरकार इस सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के माध्यम से न केवल अंतरराष्ट्रीय राजनीति को, बल्कि घरेलू राजनीति को भी साधने की कोशिश कर रही थी। यकीनन ऑपरेशन सिंदूर के बाद अचानक हुए सीजफायर से न केवल विपक्ष, बल्कि भाजपा समर्थक भी अवाक थे।

पनामा के प्रधानमंत्री से मिलता भारतीय प्रतिनिधिमंडल।

इस प्रतिनिधिमंडल के जाने से और विपक्ष के सांसदों को इसमें शामिल करने से कुछ हद तक घरेलू मोर्चे पर फैली हुई निराशा कम हुई और विपक्ष की धार भी कमजोर पड़ी।

प्रोफेसर अमिताभ मट्टू, जेएनयू

शशि थरूर जैसे नेता ने पार्टी लाइन से हटकर किसी तीसरे देश की मध्यस्थता से इनकार कर दिया, जबकि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी उसी वक्त मध्य प्रदेश की अपनी सभा में ट्रंप के सामने प्रधानमंत्री मोदी के सरेंडर की बात कह रहे थे, जिसकी बीजेपी ने जमकर आलोचना की। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और डीन अमिताभ मट्टू साफ कहते हैं कि सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का भेजा जाना निस्संदेह एक बढ़िया कदम था, जिसके नतीजों की व्याख्या अभी नहीं की जा सकती।

क्या बदली पाकिस्तान की वैश्विक स्थिति

एक बड़ा सवाल यह है कि इस सर्वदलीय दौरे से पाकिस्तान की वैश्विक स्थिति में कोई परिवर्तन आया है या नहीं? क्या वे देश, जो दो तरफा सूचनाओं के बीच बिना तथ्यों को जाने अपना-अपना पक्ष चुन लेते थे, उनकी इस पूरे प्रकरण को समझने की मुश्किलें आसान हुईं? क्या हम पाकिस्तान को अलग-थलग करने की अपनी रणनीति में सफल हुए?

राजीव राय, सांसद, सदस्य सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल

राजीव राय कहते हैं, “पाकिस्तान की आर्मी के मुंह में खून लगा है। जब कोई गंभीर व्यक्ति वहां राष्ट्राध्यक्ष बनता है, तो वहां की आर्मी उसे टिकने नहीं देती। यही बेनजीर भुट्टो के मामले में हुआ, यही नवाज शरीफ के मामले में हुआ, यही इमरान खान के मामले में हुआ। ऐसे में बड़ा सवाल खड़ा होता है कि भारत किससे बात करे? अटल जी बात करने की कोशिश करते हैं, तो आप घुसपैठ करा देते हो। ऐसे में हिंदुस्तान को अपना पक्ष रखना ही होगा, और हमने रखा।” वह कहते हैं कि असर ज्यादा नहीं, तो थोड़ा-बहुत पड़ा ही है।

महत्वपूर्ण देशों में पहुंचा प्रतिनिधिमंडल

यह नहीं भूलना चाहिए कि पहलगाम हमले के बावजूद पाकिस्तान को आईएमएफ, एडीबी जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की मदद अनवरत मिल रही है और इन फंडिंग को रोकने को लेकर भारत की कोशिशें सफल नहीं रही हैं। ऐसे में इस सर्वदलीय शिष्टमंडल से अपेक्षाएं ज्यादा थीं।

प्रोफेसर गुलशन सचदेवा, जेएनयू

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ यूरोपियन स्टडीज के प्रोफेसर गुलशन सचदेवा कहते हैं, विदेशों में हमारे मिशन समय-समय पर अपनी बात वहां की सरकारों को पहुंचाते रहते हैं, लेकिन जब कोई बात तात्कालिक तौर पर पहुंचानी हो, तो ऐसे शिष्टमंडल को भेजे जाने की आवश्यकता जरूर आन पड़ती है।

प्रोफेसर सचदेवा कहते हैं कि भारत सरकार ने जिन देशों का चुनाव इस दौरे के लिए किया, वे ऐसे ही देश नहीं हैं। ये वे देश हैं, जो आने वाले समय में उन फोरम का हिस्सा होंगे, जहां पर भारत-पाकिस्तान को लेकर मुद्दे उठेंगे। अब जैसे अल्जीरिया, सियरा लियोन, साउथ कोरिया या फिर पनामा हैं, ये ऐसे देश हैं, जो 2025 या 2026 में सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य होंगे। अब इस डेलिगेशन ने पनामा में प्रेसिडेंट जॉस राउल से भी मुलाकात की, तो ऐसे में भविष्य में जब कभी कोई रेजॉल्यूशन आएगा, हमारी स्थिति स्पष्ट रहेगी और हम मजबूत रहेंगे।

न बड़े नेता मिले, न मीडिया कवरेज

इस दौरे में एक बड़ी बात यह कही जा रही है कि इक्का-दुक्का देशों को छोड़कर कहीं भी किसी देश के शीर्ष नेताओं से प्रतिनिधिमंडल की मुलाकात नहीं हो पाई। इसमें कुछ हद तक सच्चाई भी है। यह भी एक सच है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल को कोई विशेष कवरेज भी नहीं मिला। जैसे अल्जीरिया, बहरीन और खाड़ी के तमाम देशों में इस प्रतिनिधिमंडल की यात्रा को सौहार्द यात्रा के तौर पर देखा गया। अगर इन अलग-अलग देशों की मीडिया कवरेज को देखें, तो ज्यादातर की कवरेज में पाकिस्तान का नाम तक नजर नहीं आया।

सिर्फ दौरों से नहीं बनेगी बात

यह जरूरी है कि इस यात्रा को ही इस मुहिम का आखिरी पड़ाव नहीं मान लेना चाहिए। प्रोफेसर सचदेवा कहते हैं कि सिर्फ आधे घंटे की मुलाकात में ही उद्देश्यों को हासिल नहीं किया जा सकता। अब मिशन की यह जिम्मेदारी है कि पाकिस्तान की स्थिति को लेकर बार-बार सरकारों के साथ संवाद करें। दूसरी तरफ, यह भी जरूरी है कि भारत सरकार अपनी कूटनीति की मीमांसा करती रहे और वक्त एवं जरूरतों के हिसाब से उसे बदले।

राजीव राय कहते हैं कि पहले की सरकारें नियमित अंतराल पर सांसदों को विदेश दौरों पर भेजती थीं, जिससे विदेश नीति और मजबूत होती थी। यह काम फिर से शुरू करना चाहिए। वहीं, प्रोफेसर गुलशन सचदेवा कहते हैं कि यह दौरा वक्त की जरूरत था, परिणामों के लिए इंतजार करना होगा।

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