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सरोकार

क्वांटम युग का आगाज: आधुनिक विज्ञान और भारत का प्राचीन दर्शन

अजय कुमार भोई
अजय कुमार भोई
Byअजय कुमार भोई
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Published: October 16, 2025 8:52 PM
Last updated: October 16, 2025 8:52 PM
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The Dawn of the Quantum Age
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अल्बर्ट आइंस्टीन ने 4 दिसंबर, 1926  को अपने सहकर्मी नील्स बोर को एक पत्र में लिखा —“क्वांटम मैकेनिक्स निश्चित रूप से प्रभावशाली है, लेकिन भीतर की आवाज़ कहती है कि यह अभी असली सत्य नहीं है। यह सिद्धांत बहुत कुछ कहता है, पर हमें ‘ईश्वर’ के रहस्य के और करीब नहीं लाता। कम-से-कम मैं तो यह मानता हूँ कि ईश्वर पासे नहीं फेंकता।”

खबर में खास
विज्ञान का सफ़र : अरस्तू से गैलीलियो तककोपरनिकस से न्यूटन तक : ब्रह्मांड का पुनर्जागरणआइंस्टीन का क्रांतिकाल : समय और स्थान का वक्रणक्वांटम युग का उदय : प्लांक, बोर और इलेक्ट्रॉन की पहेलीक्वांटम भौतिकी का विकास : वैश्विक और भारतीय योगदानयंग का डबल–स्लिट प्रयोग : पदार्थ या तरंग?क्वांटम एनटैंगलमेंट: दूरी को मात देने वाला जुड़ावसंभावनाओं का युग : Quantum Futureचुनौतियां भी कम नहीं…क्वांटम फील्ड थ्योरी और भारतीय दर्शनएक नए युग की दहलीज पर

“God doesn’t play dice with the universe.” (“ईश्वर ब्रह्मांड के साथ पासे नहीं खेलता।”)

इस एक वाक्य ने विज्ञान के इतिहास में हलचल मचा दी। आइंस्टीन यह नहीं कह रहे थे कि क्वांटम भौतिकी गलत है, बल्कि उन्हें इस बात पर आपत्ति थी कि यह अधूरी है — क्योंकि यह हमें संभावनाओं की भाषा में जवाब देती है, निश्चितताओं की नहीं।

कुछ वर्ष बाद, 1927 के सॉल्वे कॉन्फ्रेंस (ब्रसेल्स) में जब बोर और आइंस्टीन आमने-सामने हुए, तो यह बहस केवल दो वैज्ञानिकों की नहीं, बल्कि निश्चितता बनाम अनिश्चितता, वास्तविकता बनाम संभावना की बहस बन गई।

विज्ञान का सफ़र : अरस्तू से गैलीलियो तक

कभी प्राचीन यूनान में अरस्तू ने कहा था — भारी वस्तु हल्की वस्तु से तेज़ गिरती है। सदियों तक यह बात “सत्य” मानी जाती रही।
परंतु सोलहवीं सदी में गैलीलियो गैलीली ने इस “सत्य” को प्रयोग से परखा। उन्होंने पीसा की झुकी मीनार से एक भारी और एक हल्की गेंद गिराई —और सबके सामने सिद्ध कर दिया कि दोनों एक साथ नीचे गिरीं।

यहीं से प्रायोगिक भौतिकी (Experimental Physics) की शुरुआत हुई —अब सत्य केवल किताबों में नहीं, प्रयोगशाला में परखा जाने लगा।

कोपरनिकस से न्यूटन तक : ब्रह्मांड का पुनर्जागरण

फिर आया दौर कोपरनिकस और जोहान्स केप्लर का —जिन्होंने बाइबल के पृथ्वी-केंद्रित (Earth-Centric) मॉडल को नकारते हुए कहा, “पृथ्वी नहीं, सूर्य सौर मंडल का केंद्र है।” कोपरनिकस ने सटीक रूप से कहा कि ग्रह सूर्य के चारों ओर घूमते हैं और केप्लर ने ग्रहों की गति के नियम खोजे। उनकी गणनाओं ने मार्ग दिखाया आइज़ैक न्यूटन को, जिन्होंने गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम से यह समझाया — “जिस शक्ति से सेब धरती पर गिरता है, वही शक्ति चंद्रमा को पृथ्वी की कक्षा में बाँधे रखती है।”

यह युग निश्चितता (Determinism) का युग था — जहाँ हर घटना का कारण और परिणाम गणितीय समीकरणों में बंधा था।

आइंस्टीन का क्रांतिकाल : समय और स्थान का वक्रण

लेकिन बीसवीं सदी की शुरुआत में आइंस्टीन ने कहा —गुरुत्वाकर्षण कोई बल नहीं, बल्कि स्पेस-टाइम का वक्रण (Curvature of Space-Time) है। द्रव्यमान, स्वयं अंतरिक्ष को झुका देता है और यही झुकाव गति को नियंत्रित करता है।

ब्रह्मांड अब स्थिर नहीं, बल्कि गतिशील, लोचदार और रहस्यमय बन गया था। फिर भी, आइंस्टीन के समीकरण तब तक सटीक रहे जब तक बात सूक्ष्म जगत परमाणुओं और इलेक्ट्रॉनों की दुनिया  तक नहीं पहुँची।

क्वांटम युग का उदय : प्लांक, बोर और इलेक्ट्रॉन की पहेली

सन् 1900 में मैक्स प्लांक ने बताया कि ऊर्जा निरंतर नहीं, बल्कि छोटे-छोटे पैकेट्स (क्वांटा) के रूप में उत्सर्जित होती है। यही विचार आगे चलकर क्वांटम सिद्धांत की नींव बना।

बाद में जब वैज्ञानिकों ने पाया कि इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर घूमता तो है, पर नाभिक में गिरता क्यों नहीं, तो क्लासिकल फिजिक्स इसके उत्तर देने में असफल रही। नील्स बोर ने प्लांक के विचार को अपनाते हुए बताया कि — इलेक्ट्रॉन केवल नियत ऊर्जा स्तरों में ही रह सकता है और उन स्तरों में ऊर्जा नहीं खोता, इसलिए वह नाभिक में नहीं गिरता।

वह तभी ऊर्जा छोड़ता या ग्रहण करता है जब वह एक स्तर से दूसरे स्तर पर क्वांटम छलांग (quantum jump) लगाता है। बाद में Schrödinger, Heisenberg और Dirac ने इस विचार को और गहराई से समझाया कि इलेक्ट्रॉन किसी निश्चित पथ में नहीं घूमता, बल्कि एक संभाव्यता बादल (probability cloud) के रूप में नाभिक के चारों ओर मौजूद रहता है।

यही वह क्षण था जब भौतिकी ने क्लासिकल सीमाओं को पार किया — क्वांटम मेकेनिक्स ने न केवल ब्रह्मांड को अधिक सटीक रूप में समझाया, बल्कि अनंत संभावनाओं के एक नए भविष्य का द्वार खोल दिया।

क्वांटम भौतिकी का विकास : वैश्विक और भारतीय योगदान

यंग का डबल–स्लिट प्रयोग : पदार्थ या तरंग?

पहले तो थॉमस यंग ने यह प्रयोग प्रकाश के साथ किया था। लेकिन जब यही प्रयोग इलेक्ट्रॉन के साथ किया गया तो परिणामों ने
विज्ञान को हिला दिया।

इलेक्ट्रॉन जब ऑब्जर्व नहीं किया गया तो उसने तरंग की तरह व्यवहार किया, और जब उसे ऑब्जर्व किया गया, तो वह कण (particle) बन गया।

यानी ऑब्जर्वेशन  मात्र से वस्तु का स्वरूप बदल जाता है। जिसे वैज्ञानिक रूप से Wavefunction Collapse कहते हैं। जड़ पदार्थ में जैसे कोई “चेतन प्रतिक्रिया” छिपी हो।

क्वांटम एनटैंगलमेंट: दूरी को मात देने वाला जुड़ाव

क्वांटम एनटैंगलमेंट वह अद्भुत घटना है जिसमें दो या अधिक कण इतने गहरे स्तर पर जुड़े होते हैं कि एक कण की स्थिति या गुण में बदलाव तुरंत दूसरे कण को प्रभावित करता है — चाहे वे कण अरबों किलोमीटर दूर क्यों न हों।

क्वांटम एनटैंगलमेंट आज क्वांटम कंप्यूटिंग, क्वांटम क्रिप्टोग्राफी और भविष्य की क्वांटम संचार तकनीकों का आधार बन रहा है। यह दिखाता है कि प्रकृति के नियम केवल दूरी या समय की सीमाओं में बंधे नहीं हैं — बल्कि संभावनाओं और रिश्तों की अनोखी दुनिया में कार्य करते हैं।

संभावनाओं का युग : Quantum Future

आज क्वांटम सिद्धांत केवल विज्ञान नहीं, बल्कि तकनीकी क्रांति का आधार है —

  • क्वांटम कंप्यूटर, जो आज के सुपरकंप्यूटर से लाखों गुना तेज़ गणना कर सकते हैं।
  • क्वांटम संचार, जो हैकिंग-रहित सुरक्षित नेटवर्क बना सकते हैं।
  • क्वांटम सेंसर, जो अतिसूक्ष्म बदलावों को भी माप सकते हैं।

2024 तक, दुनिया भर में क्वांटम टेक्नोलॉजी पर निवेश 30 अरब डॉलर से अधिक पहुँच चुका है। भारत में “राष्ट्रीय क्वांटम मिशन (NQM)” के तहत 6000 करोड़ रुपये का निवेश घोषित किया गया है, ताकि देश 2030 तक क्वांटम कंप्यूटिंग और संचार में अग्रणी बन सके।

चुनौतियां भी कम नहीं…

  • क्वांटम कंप्यूटरों में क्यूबिट्स का स्थायित्व (Decoherence) बड़ी चुनौती है।
  • वर्तमान क्वांटम मशीनें बहुत संवेदनशील हैं —
    तापमान, चुंबकीय क्षेत्र या धूल का एक कण भी उन्हें बिगाड़ सकता है।
  • प्रशिक्षित मानव संसाधन की भारी कमी है —
    भारत में क्वांटम टेक्नोलॉजी से जुड़े विशेषज्ञों की संख्या
    1000 से भी कम आंकी गई है।

फिर भी, जैसा कि कवि रॉबर्ट फ़्रॉस्ट ने कहा था — “The woods are lovely, dark and deep, But I have promises to keep…”

क्वांटम फील्ड थ्योरी और भारतीय दर्शन

क्वांटम फील्ड थ्योरी (QFT) कहती है — सभी कण मूलतः सम्बंधित फील्ड की लहरें (Excitations of Fields) हैं। परन्तु यह सिद्ध होना बाकी है कि सभी प्रकार की  फ़ील्ड्स  एक ही मूलभूत फील्ड से उत्पन्न हुई हैं, इस दिशा में वैज्ञानिक प्रयासरत हैं।
यदि यह सिद्ध हो जाए कि सभी प्रकार की फील्ड्स एक ही मूलभूत फील्ड से उत्पन्न हुई हैं, तो यही बनेगी — “Theory of Everything”। और तब ऐसा लगेगा मानो आधुनिक विज्ञान भारत के प्राचीन दर्शन के उस कथन को सिद्ध कर रहा है — “सर्वं खल्विदं ब्रह्म” — (छांदोग्य उपनिषद 3.14.1) अर्थात सभी चीजें एक ही परम सत्य या ब्रह्म का ही हिस्सा हैं।

एक नए युग की दहलीज पर

गैलीलियो ने प्रयोग से सत्य को परखा। न्यूटन ने नियमों में बाँधा। आइंस्टीन ने ब्रह्मांड को मोड़ा। और क्वांटम ने हमें यह सिखाया — कि सत्य स्थिर नहीं, संभावनाओं से भी जन्म लेता है क्वांटम युग का यह आगाज़ शायद विज्ञान का नहीं, मानव चेतना के विस्तार का संकेत है हम एक ऐसे युग की दहलीज पर हैं जहाँ सूक्ष्म जगत की अनिश्चितता विष्य की तकनीकी निश्चितता में बदल रही है।

  • लेखक भौतिकी के व्याख्याता हैं।
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