छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से साठ किलोमीटर दूर बन रही एक एथेनाल फैक्टरी के खिलाफ चल रहे आंदोलन से संबंधित द लेंस की एक खास रिपोर्ट पर्यावरण को बचाने के लिए दुनियाभर में लड़ी जा रही सैकड़ों लड़ाइयों की तरह कोई एक कहानी भर नहीं है, बल्कि यह हौसले और अनथक संघर्ष की दास्तान है, जिसका नेतृत्व बूढ़ी दादियां कर रही हैं। बेमेतरा जिले के पथर्रा में यह आंदोलन चल रहा है। इस जिले में आठ एथेनाल प्लांट बनाने का प्रस्ताव है। सरकारें मनमाने ढंग से कैसे काम करती हैं, यह इसका भी एक उदाहरण है। दरअसल जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की बढ़ती चुनौती के बीच जबसे जैविक ईंधन को बढ़ावा देने की बात चली है, भारत में भी एथेनाल प्लांट पर जोर दिया जा रहा है, लेकिन इसकी वजह से होने वाले नुकसान को अक्सर नजरंदाज कर दिया जाता है। एथेनाल फैक्टरी से निकलने वाले अपशिष्ट खेती के लिए नुकसानदेह हैं और ऐसी फैक्टरी के आसपास रहने वालों के लिए मुश्किलें खड़ी करते हैं। मसलन, पथर्रा को ही देखिए, ये दादियां बता रही हैं कि फैक्टरी से निकलने वाली बदबू और अपशिष्ट पर्यावरण को खराब कर रहे हैं। वहां आसपास रहने वाले लोगों का जीवन दूभर हो गया है। इन दादियों के परिजनों को इस संघर्ष की भारी कीमत भी चुकानी पड़ रही है। उनके परिजनों को गिरफ्तार किया गया है, खुद उनके खिलाफ भी मामले दर्ज किए गए हैं। उन्हें तो शायद यह पता भी न हो कि दुनिया में इस समय सबसे बड़ा संकट जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग है, जिसे अस्तित्व के संकट के तौर पर भी देखा जा रहा है। संघर्ष की नई इबारत लिखती ये दादियां जिस हौसले से डटी हुई हैं, इसमें आने वाली पीढ़ियों के लिए चिंता साफ देखी जा सकती है।
नई इबारत लिखती दादियां

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