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आंदोलन की खबर

पहाड़ियों को बचाने के लिए ‘अरावली विरासत जन अभियान’

Lens News Network
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ByLens News Network
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Published: December 11, 2025 9:24 PM
Last updated: December 11, 2025 9:59 PM
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जयपुर। अरावली पहाड़ियों को बचाने के लिए मुहिम का आगाज आज से कर दिया गया। मुहिम को नाम दिया गया है ‘अरावली विरासत जन अभियान’। यह अ‍भियान उस फैसले के विरोध में है, जिसमें 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाडि़यों को अरावली न मानने की परिभाषा को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दी है।

अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस के मौके पर दिल्ली-एनसीआर, दक्षिण हरियाणा और राजस्थान के विभिन्न जिलों के नागरिकों और नागरिक समाज समूहों ने जयपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर इस अभियान की औपचारिक शुरुआत की।

‘पीपल फॉर अरावली’ की संस्थापक सदस्य नीलम अहलूवालिया ने बताया कि यह अभियान पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों, सामुदायिक नेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, वकीलों और आम नागरिकों का एक बड़ा गठबंधन है।

उन्होंने कहा कि 11 दिसंबर को अंतर्राष्ट्रीय पर्वत दिवस इसलिए चुना गया क्योंकि यह दिन पहाड़ों के महत्व और उनकी रक्षा के लिए जागरूकता फैलाने का प्रतीक है। यह अभियान सीधे सर्वोच्च न्यायालय के 20 नवंबर 2025 के उस फैसले के जवाब में शुरू हुआ है, जिसमें अरावली पहाड़ियों की नई परिभाषा स्वीकार की गई। इस नई परिभाषा के अनुसार केवल वे पहाड़ियां ही अरावली का हिस्सा मानी जाएंगी, जिनकी ऊंचाई स्थानीय भू-भाग से कम से कम 100 मीटर अधिक हो।

इस फैसले से अरावली के 90 प्रतिशत से अधिक हिस्से पर खनन की छूट मिल जाएगी। राजस्थान के 15 जिलों में मौजूद 12,081 पहाड़ियों में से सिर्फ 1,048 ही इस मानक को पूरा करती हैं। हरियाणा और गुजरात में पहाड़ियां और भी कम ऊंची हैं। इससे उत्तर-पश्चिम भारत में मरुस्थलीकरण बढ़ेगा, जल पुनर्भरण रुकेगा, वन्यजीवों के घर नष्ट होंगे और लाखों लोगों की पानी और खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।

अरावली 200 से ज्यादा पक्षी प्रजातियों, तेंदुए, लकड़बग्घे, नीलगाय जैसे जानवरों का घर है। इसके जंगल हवा को साफ रखते हैं, बारिश को नियंत्रित करते हैं और गर्मी से बचाते हैं। खनन बढ़ने से धूल, प्रदूषण और मानव-पशु संघर्ष बढ़ेगा।

गरासिया जनजाति के लक्ष्मी और बाबू गरासिया ने कहा कि उनकी पूरी जिंदगी अरावली पर निर्भर है। वे जंगल से भोजन, दवाइयां, चारा और आजीविका कमाते हैं। उनके लिए ये पहाड़ भगवान जैसे हैं। खनन से उनकी संस्कृति और जीवन खतरे में है।

पर्यावरण कार्यकर्ता कैलाश मीना ने बताया कि राजस्थान और हरियाणा में पानी का संकट पहले से गंभीर है। अरावली पानी को जमीन में सोखने का बड़ा स्रोत है। खनन से भूजल स्तर और गिरेगा। किसान नेता वीरेंद्र मोर ने कहा कि उत्तर-पूर्वी राजस्थान में अरावली जल जीवनरेखा है। इसके नष्ट होने से खेती और तालाब सूख जाएंगे।

अभियान ने मांग की है कि सर्वोच्च न्यायालय अपना फैसला वापस ले, अरावली की नई परिभाषा रद्द हो और पूरी पर्वतमाला को ‘महत्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षेत्र’ घोषित किया जाए। खनन, पत्थर तोड़ने और कचरा डालने पर पूरी तरह रोक लगे। वैकल्पिक निर्माण सामग्री अपनाई जाए।

पीयूसीएल की कविता श्रीवास्तव ने लोगों से अपील की कि jhatkaa.org पर चल रही याचिका पर हस्ताक्षर करें और अरावली को बचाने में साथ दें। गौरतलब है कि अरावली को विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक माना गया है।

TAGGED:Aravali Heritage People Campaignsave aravali movementSave ArawaliTop_News
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