लेंस डेस्क। भारत में आय और संपत्ति की खाई दुनिया के सबसे गंभीर स्तरों में से एक बनी हुई है। देश की कुल राष्ट्रीय आय का 58% हिस्सा सबसे अमीर 10% लोगों के पास है, जबकि आबादी के निचले 50% लोगों को महज 15% मिलता है। संपत्ति का असंतुलन इससे भी ज्यादा चौंकाने वाला है।
बुधवार को विश्व असमानता लैब की ओर से जारी रिपोर्ट में बताया गया है कि सबसे धनी 10% के पास कुल संपत्ति का करीब 65% है और सबसे अमीर 1% अकेले 40% संपत्ति पर काबिज हैं।

2022 की पिछली रिपोर्ट की तुलना में अमीरों का हिस्सा थोड़ा और बढ़ा है। तब शीर्ष 10% के पास 57% आय थी और निचले 50% को 13% मिलता था।
संपादक लुकास चांसल, रिकार्डो गोमेज़-कारेरा, रोवैदा मोशरिफ और थॉमस पिकेट्टी की तैयार की गई रिपोर्ट बताती है कि भारत में प्रति व्यक्ति औसत सालाना आय करीब 6,200 यूरो और औसत संपत्ति लगभग 28,000 यूरो है।
महिलाओं की श्रम बल भागीदारी बेहद कम (15.7%) बनी हुई है और पिछले दशक में इसमें कोई सुधार नहीं हुआ। कुल मिलाकर आय, संपत्ति और लिंग के आधार पर गहरी असमानता भारतीय अर्थव्यवस्था में जड़ें जमाए हुए है।

वैश्विक स्तर पर भी संपत्ति अपने ऐतिहासिक उच्चतम स्तर पर है, लेकिन उसका बंटवारा बेहद असमान है। दुनिया के सबसे अमीर 0.001% लोग (लगभग 60 हज़ार से भी कम अति-धनकुबेर) के पास उतनी ही संपत्ति है जितनी पूरी मानवता के निचले आधे हिस्से के पास है यानी तीन गुना ज्यादा। 1995 में इनका हिस्सा 4% के करीब था जो अब 6% से ऊपर पहुंच गया है।
थॉमस पिकेट्टी ने कहा, “विश्व असमानता रिपोर्ट 2026 ऐसे समय में आई है जब राजनीतिक माहौल चुनौतीपूर्ण है, लेकिन समानता की दिशा में आगे बढ़ना पहले से कहीं ज्यादा जरूरी है। आने वाले दशकों की सामाजिक और जलवायु चुनौतियों का सामना तभी कर पाएंगे जब हम असमानता कम करने की ऐतिहासिक यात्रा को जारी रखेंगे।”
दुनिया के बाकी देशों का हाल
दुनिया की कुल संपत्ति का तीन-चौथाई हिस्सा शीर्ष 10% लोगों के पास है, जबकि निचले 50% के पास सिर्फ 2% है। शीर्ष 1% (जितनी आबादी ब्रिटेन की है) अकेले 37% वैश्विक संपत्ति रखता है। यह निचले 50% की कुल संपत्ति से 18 गुना ज्यादा है। दुनिया के सबसे अमीर एक-इन-ए-मिलियन लोग (करीब 56 हज़ार वयस्क) 3% वैश्विक संपत्ति रखते हैं। जो पूरी निचली आधी आबादी से ज्यादा है।
1980 से 2025 के बीच वैश्विक आय वर्गों का भौगोलिक चित्र पूरी तरह बदल गया है। 1980 में वैश्विक कुलीन वर्ग मुख्य रूप से उत्तरी अमेरिका, ओशिनिया और यूरोप में केंद्रित था। उस समय चीन में वैश्विक अमीरों की लगभग शून्य मौजूदगी थी, जबकि भारत, बाकी एशिया और उप-सहारा अफ्रीका लगभग पूरी तरह सबसे निचले हिस्से में थे।
2025 तक चीन ने लंबी छलांग लगाई है। उसकी बड़ी आबादी अब मध्य 40% में पहुंच गई है और कुछ हिस्सा ऊपरी-मध्य वर्ग में भी शामिल हो गया है। लेकिन भारत की स्थिति उल्टी दिशा में गई है। 1980 में उसकी अपेक्षाकृत ज्यादा आबादी मध्य 40% में थी, आज लगभग पूरी आबादी निचले 50% में सिमट गई है। उप-सहारा अफ्रीका भी निचले हिस्से में ही बना हुआ है।
क्या कहता है लिंग आधारित आंकड़ा
लिंग के आधार पर भी तस्वीर निराशाजनक है। बिना वेतन वाले काम को छोड़ दें तो भी महिलाएं प्रति घंटे पुरुषों के मुकाबले सिर्फ 61% कमाती हैं। घरेलू-गृह कार्य जोड़ने पर यह आंकड़ा गिरकर 32% रह जाता है। दुनिया भर में कुल श्रम आय का महज 25% से थोड़ा ज्यादा हिस्सा महिलाओं को मिलता है और 1990 से इसमें कोई खास बदलाव नहीं आया। क्षेत्र के हिसाब से मध्य पूर्व व उत्तरी अफ्रीका में महिलाओं का हिस्सा सिर्फ 16%, दक्षिण व दक्षिण-पूर्व एशिया में 20%, उप-सहारा अफ्रीका में 28% और पूर्वी एशिया में 34% है। यूरोप, उत्तरी अमेरिका और रूस-मध्य एशिया में यह 40% के आसपास है, फिर भी आधे से कम।
जलवायु संकट के मोर्चे पर
जलवायु संकट के मोर्चे पर भी यही अमीर-गरीब खाई साफ दिखती है। निजी पूंजी से जुड़े कार्बन उत्सर्जन का सिर्फ 3% हिस्सा दुनिया की सबसे गरीब आधी आबादी के खाते में है, जबकि शीर्ष 10% के हिस्से 77% उत्सर्जन आता है। सबसे अमीर 1% अकेले 41% उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं, जो बाकी पूरे 90% आबादी के उत्सर्जन से दोगुना है।
रिपोर्ट नीतिगत सुझाव भी देती है। कर प्रणाली अक्सर वहीं फेल हो जाती है जहां सबसे ज्यादा जरूरत है। अति-धनकुबेर और अरबपति प्रभावी रूप से बहुत कम कर देते हैं, जबकि मध्यम और निम्न आय वर्ग ज्यादा दर से कर चुकाता है। प्रगतिशील करारोपण, मुफ्त गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सार्वजनिक स्वास्थ्य, बाल देखभाल, पोषण कार्यक्रम और नकद हस्तांतरण जैसी पुनर्वितरण योजनाएं असमानता घटाने के सिद्ध तरीके हैं।

